भारत की स्वर कोकिला कही जाने वाली महान गायिका लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं हैं। मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में आज सुबह उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। 92 साल की लता मंगेशकर को बीती 8 जनवरी को कोविड पॉजिटिव पाया गया था, जिसके बाद उन्हें ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। उन्हें कोविड के साथ-साथ निमोनिया भी हो गया था। कुछ दिनों पहले उनकी तबीयत सीरियस होने की खबर आई थी और फिर उनके परिवार ने एक बयान जारी कर बताया था कि उनकी तबीयत में सुधार है। लेकिन बीते 2-3 दिनों में उनकी तबीयत अचानक बिगड़ी थी, जिसके बाद उन्हें आईसीयू में रखा गया था और आज उनका निधन हो गया।
खत्म हो गया संगीत का एक युग
लता मंगेशकर के गायन और संगीत के बारे में कुछ भी लिखना सूरज को दिया दिखाने जैसा है। उन्होंने भारतीय संगीत को जो उंचाई, जो समृद्धि दी है, वो अतुलनीय है। यही कारण है कि उन्हें 'सुर सामाग्री', 'स्वर कोकिला' जैसे नामों से जाना जाता रहा। लता मंगेशकर जितनी महान गायिका थीं, उतनी ही ज्यादा सादगी थी उनमें। यही कारण है कि 92 साल की उम्र में भी फिल्म इंडस्ट्री के नए-पुराने सभी कलाकार उन्हें लता दीदी या लता ताई कहकर बुलाते थे। लता मंगेशकर का पहला गाना साल 1942 में आया था। तब से आज 8 दशक बाद भी उनकी आवाज़ का जादू कभी कम नहीं हुआ।
ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी
ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी- हम में से ज्यादातर लोगों का लता जी से पहला परिचय स्कूल के दिनों में शायद इसी गीत से हुआ होगा क्योंकि 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन यह गीत किसी राष्ट्रीय गीत की तरह गाया-गुनगुनाया जाता है। भारत का कोई भी राष्ट्रीय त्योहार इस गीत के बिना न मनाया गया है और न शायद मनाया जा सकेगा। आज लता मंगेशकर जब इस दुनिया को अलविदा कहके सुर-लोक के अंतिम सफ़र पर निकल गई हैं, तब उन्हें याद करते हुए वतन के सारे लोगों की आंख में पानी भरा हुआ है।
साक्षात् सरस्वती मानते थे संगीतज्ञ
संगीत के जानने वाले मानिन्द लोग लता मंगेशकर को साक्षात् सरस्वती मानते थे। उन्होंने लगभग हर बड़े संगीतकार के साथ काम किया था। गीत चाहे श्रंगार के रहे हों या करुणा के, लता की आवाज़ ने जिस गीत को छू लिया, वो भी उन्हीं की तरह अमर हो गए। लता मंगेशकर को वैसे तो भारत के संगीत प्रेमियों से जो सम्मान मिला, उसकी तुलना किसी दूसरे सम्मान से नहीं हो सकती। लेकिन उन्हें 1969 में पद्म भूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 1999 में पद्म विभूषण और 2001 में देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न भी मिला।
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