अनियमित पीरियड्स या हेवी ब्लीडिंग जैसी परेशानियों को ज्यादातर महिलाएं मामूली समझकर नजरअंदाज कर देती हैं पर यूट्रस में फाइब्रॉयड होने की वजह से भी ऐसा हो सकता है। इस समस्या को सामान्य बोलचाल की भाषा में गर्भाशय की रसौली भी कहा जाता है।
क्या है बीमारी
अधिकतर मामलों में फाइब्रॉयड डिलिवरी के दौरान नजर आता है। रिप्रोडक्टिव एज ग्रुप (25-40 वर्ष) की स्त्रियों में इसकी आशंका सबसे अधिक देखने को मिलती है। यह फाइब्रॉयड यूट्रस के जिस हिस्से में स्थित होता है, उसी के आधार पर इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जो प्रकार है—
सबसेरोसल फाइब्रॉयड : यह फाइब्रॉयड यूट्रस के बाहरी हिस्से में स्थित होता है। इसकी वजह से मासिक चक्र पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन कमर में दर्द और यूरिन का अधिक दबाव महसूस करने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
सबम्यूकस फाइब्रॉयड : यह यूट्रस के भीतर जिस हिस्से में पनपता है, उसे कैविटी एरिया कहा जाता है। इंटरम्यूरल यह गांठ यूट्रस की मांसपेशियों की दीवारों में पाया जाता है।
पेडन्क्यूलेटेड फाइब्रॉयड : गर्भाशय के बाहरी हिस्से में पाया जाने वाला यह फाइब्रॉयड सर्विक्स और आसपास के हिस्सों में तेज़ी से फैलता है।
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क्या है वजह
इस समस्या के सही कारणों को अभी तक पहचाना नहीं जा सका है। फिर भी ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि स्त्री के शरीर में मौज़ूद सेक्स हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन और एस्ट्रोजेन की अधिकता से उसे यह समस्या हो सकती है क्योंकि मेनोपॉज़ के बाद इसका आकार अपने आप छोटा होने लगता है और कुछ समय बाद खत्म हो जाता है। आनुवंशिकता भी इसकी एक वजह हो सकती है।
प्रमुख लक्षण
पेट के निचले हिस्से और कमर में भारीपन, पीरियड्स के दौरान ऐंठन भरा दर्द, कई दिनों तक हेवी ब्लीडिंग, पीरियड्स खत्म होने के बाद बीच में कभी भी ब्लीडिंग की शुरुआत, सहवास में दर्द और बार-बार यूरिन का प्रेशर महसूस होना आदि।
क्या है नुकसान
फाइब्रॉयड कैंसर रहित गांठें होती हैं। आमतौर पर इनकी वजह से स्त्री की सेहत को जयादा नुकसान नहीं होता लेकिन इनकी वजह से प्रेग्नेंसी में स्त्री को मिसकैरेज, प्रीमच्योर डिलिवरी, गर्भस्थ शिशु की पोजि़शन में गड़बड़ी, जिससे नॉर्मल डिलिवरी संभव नहीं होती और सर्जरी के दौरान जयादा ब्लीडिंग जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। इसकी वजह से कुछ स्त्रियों को एनीमिया भी हो जाता है।
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जांच एवं उपचार
दिल्ली स्थित फोर्टिस ला फाम हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मधु गोयल के अनुसार, 'अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और सीटीस्कैन के ज़रिये इन गांठों की पहचान की जाती है। फिर उसके आकार और स्थिति के आधार पर इनका उपचार किया जाता है। अगर इसकी वजह से मरीज़ को हेवी ब्लीडिंग या दर्द जैसी समस्या न हो तो सर्जरी की कोई आवश्यकता नहीं होती। मेनोपॉज़ के बाद इनका आकार सिकुड़ कर छोटा हो जाता है लेकिन जब हेवी ब्लीडिंग या पेल्विक एरिया में दर्द जैसे लक्षण नज़र आएं तो हेस्ट्रोकॉमी, मेयोमेक्टॉमी, हिस्टेरेक्टॉमी, हिस्टेरोस्कोपी जैसी तकनीकों से इसकी सर्जरी की जाती है। अगर मरीज़ की उम्र जयादा हो तो लेप्रोस्कोपी या ओपन सर्जरी द्वारा यूट्रस रिमूवल भी किया जा सकता है लेकिन यह मरीज़ की शारीरिक अवस्था को देखने के बाद ही तय किया जाता है कि उसे किस तरह के उपचार की ज़रूरत है।
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