युवावस्था में होने वाले तनाव को कम करना है तो दोस्तों से शेयर करें दिल की बातें: स्टडी

एक नए अध्‍ध्‍यन के अनुसार, जो किशोर या युवा अपने मन में चल रही उथल-पुथल और नकारात्मक भावनाओं को खुलकर दोस्‍तों या किसी से कह पाते हैं, वह बाकी बच्‍चों या अपने साथियों की तुलना में तनाव मुक्‍त रहते हैं और उन्‍हें डिप्रेशन का खतरा कम रहता है। 
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युवावस्था में होने वाले तनाव को कम करना है तो दोस्तों से शेयर करें दिल की बातें: स्टडी


युवावस्था में तनाव- 13 से 19 साल के बच्‍चों यानि टीनएज, यह उम्र ऐसी होती है जब बच्‍चा वयस्‍क नहीं होता है। इस वक्‍त उनके मन में कई तरह के सवाल उठते हैं, जो कि ऊर्जा, सकारात्मकता और जिज्ञासा से भरे होते हैं। माता-पिता इस उम्र के दौरान अपने बच्‍चों को लेकर विशेष रूप से चिंतित रहते हैं, क्योंकि यह वह समय है जब एक बच्चा अपने जीवन में अपने महत्वपूर्ण निर्णय लेता है या लेने वाला होता है। जैसे कि अपनी पढ़ाई और करियर को लेकर। 

हालांकि, युवावस्‍था में यौन शिक्षा के प्रति जागरूक भी आवश्यक है। 13-19 साल की उम्र के बीच, बच्चे युवावस्था में प्रवेश कर चुके होते हैं। ऐसे में वह यौन इच्छाओं, सवालों, जानकारी और प्‍यार-रोमांस की ओर बढ़ने लगते हैं। इस उम्र में वह किसी एक को दोस्त से अधिक मानने लगते हैं और कई तरह के बदलाव आने लगते हैं। ऐसे में, यह माता-पिता, शिक्षकों, स्कूल काउंसलर की जिम्मेदारी है कि वह इस समय बच्‍चे को सही दिशा में मार्गदर्शन दें और जो बच्‍चा कह रहा है, उसको समझने की कोशिश करें। कुछ बच्चे शर्मीले होते हैं और वे ज्यादा नहीं बोलते हैं, लेकिन वह ऐसे में एक काल्पनिक दोस्त विकसित करते हैं और कभी-कभी वे डिप्रेशन में चले जाते हैं। इसलिए, तनाव से छुटकारा पाना के लिए पाने के लिए बेहतर संचार यानि मन की बातों का बाहर निकलना, बातों को किसी से शेयर करना, मन में उठ रहे सवालों को पूछना आदि बहुत जरूरी है। क्‍योंकि मन की बातों को दूसरों से बताने से मन हल्‍का होता है और आप डिप्रेशन के शिकार नहीं होते। 

अध्‍ययन के अनुसार 

एक नये अधययन के अनुसार, यह शोध नकारात्मक भावना व भेदभाव पर किया गया। जिसमें पाया गया कि, जो किशोर या बच्‍चे अपनी नकारात्मक भावनाओं, इच्छाओं या मन की बातों को दोस्तों से शेयर करते हैं, वह बाकी बच्‍चों की तुलना में ज्‍यादा खुश और तनावमुक्‍त रहते हैं। 'इमोशन' पत्रिका में प्रकाशित अध्‍ययन की लेखक 'लिसा स्टार' के अनुसार, किशोर इस स्थिति में इन वाक्‍यों का प्रयोग करते हैं। 

  • मैं परेशान हूँ या मुझे अच्‍छा महसूस नहीं हो रहा। 
  • मैं निराश या दुखी हूँ। 
  • मुझे पछतावा हो रहा है या खुद को कोसते हैं। 

इस स्थिति में केवल कारण बताने से उन्हें अवसाद के खतरे से बचाया जाता है, भले ही वे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थिति से क्‍यों न गुजर रहे हों।

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'लिसा स्टार' ने आगे इस सिद्धांत को यह कहते हुए समझाया कि, जब कोई व्यक्ति अपने अलग-अलग स्‍वभाव और भावों के बीच अंतर करता है, उदाहरण के लिए,नाराजगी, पागलपन दिखाना या शर्मिंदा होना, तब इस समस्या को ठीक किया जा सकता है। इससे यह साबित होता है कि एक बार जब आप अपने मुद्दे को जानते हैं तो यह डॉक्टरों या दूसरों को इसका इलाज करने में मदद कर सकता है। भावनाएं सिर्फ आपके अनपेक्षित अहसास हैं, भावनाएँ विभिन्न चीजों को व्यक्त करती हैं जैसे कि व्यक्ति की महत्वाकांक्षा, आकर्षण, प्‍यार और भावनाएं। 

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