ओएमएच यानि ओन्लीमाई हेल्थ ने एक स्पेशल कैंपेन चलाई है। इसेक जरिये हम आपके साथ वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। ध्यान दें कि इस कैंपेन में आपको संबंधित बीमारियों के लक्षण, कारण और बचाव के बारे में भी बताया जाएगा। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से वायु प्रदूषण से होने वाली घातक बीमारियों में होने वाली वृद्धि के बारे में बताने जा रहे हैं। कोविड महामारी के चलते हुए लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण में कुछ हद तक सुधार नज़र आने लगा था। लोग कई सालों बाद शुद्ध वातावरण से रूबरू हुए हुए थे कि एक बार फिर प्रदूषण अपने चरम पर आता दिख रहा है। प्रदूषण ने फिर से अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। प्रदूषण में सिर्फ सांस लेना ही मुश्किल नहीं होता बल्कि आंखों, फेफड़ों और हृदय को भी इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता है।
फेफड़ों का कैंसर:
फेफड़ों के कैंसर को आमतौर पर धूम्रपान के साथ जोड़ा जाता है लेकिन अब यह प्रदूषण से भी सीधे तौर पर जुड़ चुका है। प्रदूषण व्यक्ति के फेफड़ों पर धूम्रपान के समान ही वार करता है। जो लोग अपना ज्यादातर वक्त घर से बाहर गुज़ारते हैं उनके फेफड़ों में समस्या होने लगती है। दूषित हवा के कारण शुरुआत में लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है और फिर धीरे-धीरे यह फेफड़ों के कैंसर का रूप ले लेता है। इसलिए प्रदूषण एक बड़ी चिंता का विषय है।
कंजंक्टिवाइटिस:
हवा में धूल और धुआं की अधिक मात्रा होने के कारण लोगों की आंखों को नुकसान पहुंच रहा है। गाड़ियों से निकलने वाला धुआं सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। इसमें मौजूद कॉर्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोऑक्साइड से आंखों पर बुरा असर पड़ता है। सर्दी और प्रदूषण के कारण होने वाले आम वायरस से कंजंक्टिवाइटिस की समस्या होती है। प्रदूषण के कारण आंखों में जलन, सूखापन, लालपन, खुजली, एलर्जी, पानी आदि की समस्या होती है। यही नहीं, प्रदूषण आंखों की रौशनी को कम करता ही है और साथ ही आंखों के कैंसर का भी कारण बन सकता है। यदि किसी में इस प्रकार के कोई भी लक्षण नज़र आ रहे हैं तो डॉक्टर से परामर्श लेने में देर न करें।
इसे भी पढ़ें- केवल सूरज की किरणों से ही नहीं यूवी प्रोटेक्शन वाले सनग्लासेस आंखों को बचाते हैं इन बीमारियों से भी
हृदय रोग:
प्रदूषित हवा में ज्यादा वक्त बिताने से हृदय रोग का खतरा बढ़ता है। प्रदूषण में मौजूद कॉर्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोऑक्साइड और ओज़ोन शरीर में खून के साथ मिलकर हृदय रोग का कारण बनते हैं। पर्टिकुलेट मैटर हृदय को बुरी तरह नुकसान पहुंचाते हैं। इसके कारण सीने में दर्द, गले में दर्द आदि समस्याएं होती हैं।
इनफर्टिलिटी:
वायु प्रदूषण के बुरे प्रभावों के बारे में तो सभी भली-भांति चर्चित हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग इस बात को समझते हैं कि प्रदूषण फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) को भी प्रभावित करता है। प्रदूषित हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है, जो शुक्राणुओं को नुकसान पहुंचाती है। वायु प्रदूषण महिलाओं के ओवरियन फॉलिकल, जहां अंडे विकसित होते हैं, प्रदूषण के कारण डैमेज हो जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जब हम सांस लेते हैं तो प्रदूषित हवा में मौजूद पर्टिकुलेट मैटर (जो व्यक्ति के बाल से 30 गुना पतले होते हैं) हमारे अंदर प्रवेश कर जाते हैं। पर्टिकुलेट मैटर अपने साथ पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन लिए होते हैं। इसमें कॉपर, जिंक और पारा होते हैं, जो हार्मोन के संतुलन को प्रभावित करते हैं और कंसीव करने में समस्या पैदा करते हैं।
इसे भी पढ़ें- ब्लड प्रेशर कम होने के कारण ही नहीं होती कमजोरी, बल्कि इन कारणों से भी होता है ऐसा
स्ट्रोक:
प्रदूषण के कारण स्ट्रोक के मामलों में भी वृद्धि हुई है। दरअसल, दूषित वायु मैं मौजूद कण सांस की नली में फंस जाते हैं जिसके कारण शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण रक्त प्रवाह में रुकावट आती है, जिसके कारण मस्तिष्क की धमनियां फट जाती हैं जिसे स्ट्रोक कहते हैं। स्ट्रोक का जल्द से जल्द इलाज नहीं होने पर व्यक्ति आजीवन विकलांगता का शिकार हो जाता है। यहां तक कि व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है।
प्रदूषण से बचाव
- जिस दिन प्रदूषण ज्यादा हो उस दिन ज्यादा से ज्यादा वक्त घर में ही रहें।
- घर से बाहर निकलते वक्त चश्मा और पर्टिकुलेट मैटर को फिल्टर करने वाला मास्क पहनना बिल्कुल न भूलें।
- सफर के लिए ऐसा साधन लें, जो पूरी तरह बंद हो।
- घर में चिमनी लगाएं और यह सुनिश्चित करें कि उचित वेंटिलेशन हो रहा है।
- एयर प्युरीफायर का प्रयोग न सिर्फ अपने घर में करें बल्कि अपनी गाड़ी और ऑफिस में भी करें।
(ये लेख मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल शालीमार बाग के एसोसिएट कंसल्टेंट डॉक्टर नवीन इलावादी से बातचीत पर आधारित है।)
Read More Articles on Other Diseases in Hindi