हमारे शरीर में कई इस तरह के बदलाव होते रहते हैं जिन्हें हम मामूली समझकर नजरअंदाज करते हैं जबकि वह किसी गंभीर बीमारी का संकेत हो सकते हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि वह शारीरिक तौर पर हमेशा स्वस्थ रहे। जबकि हमें शरीर के साथ साथ मन और दिमाग से भी स्वस्थ रहने की जरूरत है। आपने भी महसूस किया होगा कि आजकल लोग बेवजह तनाव और चिड़चिड़ाहट से जूझते रहते हैं। यह कोई काम का दबाव नहीं बल्कि शरीर में पनपने वाली एक बीमारी के लक्षण हैं। इस बीमारी का नाम जनरलाइज्ड एंग्जायटी डिसॉर्डर है।
आजकल की भागदौड़ जिंदगी में थोड़ी बहुत चिंता और तनाव होना लाजमी है। लेकिन जब यह ज्यादा होने लगता है तो समझ लें कि यह किसी बीमारी के लक्षण हैं। हो सकता है कि आपने भी कई बार महसूस किया हो कि जब यह चिंता व्यक्ति की दिनचर्या पर हावी होने लगती है और इसकी वजह से उसके रोज़मर्रा के कार्य बाधित होने लगते हैं। सोना-जागना, नहाना और खाना जैसे मामूली कार्य भी वह सही समय पर नहीं कर पाता और इससे धीरे-धीरे उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगता है। अगर शुरू से ही ध्यान न दिया जाए तो लंबे समय के बाद ऐसी ही आदतों की वजह से व्यक्ति को जरनलाइज्ड़ एंग्ज़ायटी डिसॉर्डर की समस्या हो सकती है।
क्यों होता है ऐसा
हर व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसी बातें होती हैं, जो चिंता की वजह बन सकती हैं। इसके अलावा कभी-कभी व्यक्ति के सामने कुछ तनावपूर्ण या निराशाजनक स्थितियां पैदा हो जाती हैं। ऐसे में अगर उनसे निपटने के लिए गलत तरीके का चुनाव किया जाए तो इससे जीएडी यानी जनरलाइज्ड़ एंग्जॉयटी डिसॉर्डर की समस्या हो सकती है, जिसमें व्यक्ति समाधान के बारे में सोचना छोड़कर अनावश्यक रूप से चिंतित हो जाता है।
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नज़रिये का फर्क
मान लीजिए रीमा और सीमा नामक दो लड़कियों को ऑफिस के लिए देर हो रही है। दोनों बस स्टॉप की तर$फ तेज़ी से बढ़ रही हैं लेकिन वहां पहुंचने तक बस उनके सामने से निकल जाती है। सीमा उसी समय अपने बॉस को यह मेसेज भेज देती है कि आने में थोड़ी देर होगी और चिंतामुक्त होकर दूसरी बस का इंतज़ार करती है। वहीं रीमा देर की वजह से होने वाली परेशानियों के बारे में सोचकर बदहवास सी सड़क की विपरीत दिशा में ऑटो रिक्शा ढूंढने के लिए दौड़ पड़ती है। इस उदाहरण में रीमा ने समस्या को हल करने के लिए गलत तरीका अपनाया, इसीलिए वह ज्य़ादा चिंतित हो गई। एक ही समस्या को हर व्यक्ति अपने ढंग से हल करने की कोशिश करता है। यह अंतर इंसान के व्यक्तित्व और परवरिश के तरीके की वजह से होता है। अगर किसी को बचपन में खुशनुमा पारिवारिक माहौल मिला हो तो बड़े होने के बाद वह आत्मविश्वास के साथ हर मुश्किल का हल ढूंढने में सक्षम होता है।
कैसे करें बचाव
- दिनचर्या को नए सिरे से व्यवस्थित करें और पर्याप्त नींद लें।
- नियमित योग और एक्सरसाइज़ करें।
- सामाजिक सक्रियता बढ़ाएं।
- प्रतिदिन आधे घंटे की अवधि सिर्फ अपनी रुचि से जुड़े कार्यों के लिए सुरक्षित रखें।
- अगर इन कोशिशों के बावज़ूद व्यक्ति को अपने व्यवहार में कोई बदलाव नज़र न आए तो उसे एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए।

क्या है उपचार
पहले साइको-डाइग्नॉस्टिक टेस्ट के ज़रिये यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि वाकई समस्या है भी या नहीं? उपचार के लिए साइको थेरेपी, फैमिली थेरेपी और ड्रग थेरेपी की मदद ली जाती है। व्यक्ति की मानसिक दशा के आधार पर उपचार के तरीके का चुनाव किया जाता है। कई बार इन तीनों विधियों की मदद ली जाती है। व्यक्ति को स्वस्थ होने में कितना समय लगेगा, यह मर्ज की गंभीरता, मरीज़ के व्यक्तित्व और पारिवारिक माहौल पर निर्भर करता है। ऐसा देखा गया है कि जिस व्यक्ति की इच्छाशक्ति मज़बूत होती है, उस पर उपचार का असर तेज़ी से होता है।
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