डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जिसमें एक बच्चा क्रोमोसोम 21 की अतिरिक्त कॉपी के साथ पैदा होता है। यह बौद्धिक अक्षमता, चपटे चेहरे की प्रोफाइल और गर्भ में रहने के दौरान कमजोर मसल टोन से जुड़ा होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया भर में बच्चों के जीवित जन्मों में डाउन सिंड्रोम की आशंका 1,000 में 1 से 1,100 में एक के बीच होती है। यह सबसे आम जेनेटिक क्रोमोसोम से जुड़ा विकार है। हर साल लगभग 3,000 से 5,000 बच्चे इस जेनेटिक स्थिति के साथ पैदा होते हैं। वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम दिवस एक वैश्विक आयोजन है जो हर साल 21 मार्च को जागरूकता बढ़ाने और जेनेटिक स्थिति के साथ रहने वाले लोगों या बच्चों के अधिकारों की वकालत करने के लिए मनाया जाता है।
डाउन सिंड्रोम के लक्षण
डाउन सिंड्रोम वाला हर व्यक्ति अलग होता है। हालांकि, अधिकांश बच्चों में हल्के से मध्यम संज्ञानात्मक हानि होती है। सीखने में दिक्कत और देरी से विकास प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न होती है।
इसके बाद भी कुछ शारीरिक लक्षण हैं जो डाउन सिंड्रोम वाले लोगों में सामान्य दिखते हैं:
टॉप स्टोरीज़
- कम ऊँचाई और स्टॉकी बॉडी शेप
- चपटा चेहरा और नाक
- असामान्य आकार के कान
- आगे निकलने वाली जीभ
- अत्यधिक लचीलापन
- आंख के रंगीन हिस्से पर सफेद धब्बे (जिन्हें ब्रशफील्ड स्पॉट कहा जाता है)
- आंखें जो ऊपर और बाहर की ओर तिरछी होती हैं
- छोटी उंगलियों के साथ चौड़े हाथ, लेकिन छोटी अंगुलियां
- कम या खराब मसल टोन
आम धारणा के विपरीत, डाउन सिंड्रोम वाले सभी लोग एक जैसे नहीं दिखते, बल्कि वे अपने माता-पिता की तरह दिखते हैं।
डाउन सिंड्रोम के प्रकार:
ट्राइसॉमी 21:
सबसे सामान्य प्रकार, जहां शरीर की प्रत्येक कोशिका में दो के बजाय 21 क्रोमोसोम की तीन कॉपी होती हैं। यह 95% मामलों के लिए जिम्मेदार है।
ट्रांसलोकेशन:
यह डाउन सिंड्रोम के सभी मामलों का 4% है। ट्रांसलोकेशन में क्रोमोसोम 21 का केवल एक एक्स्ट्रा पार्ट होता है। हालांकि, क्रोमोसोम की संख्या 46 है, उनमें से एक क्रोमोसोम के साथ एक अतिरिक्त हिस्सा जुड़ा होता है जो इस स्थिति का कारण बनता है।
मोज़ेकिज्मः
यह तब होता है जब एक बच्चा कुछ कोशिकाओं में एक एक्स्ट्रा क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है, लेकिन सभी कोशिकाओं में ऐसा नहीं होता है। उनमें ट्राइसॉमी 21 की तुलना में कम लक्षण होते हैं। यह डाउन सिंड्रोम वाले 1% मामलों में होता है।
कुछ बच्चे डाउन सिंड्रोम के साथ क्यों पैदा होते हैं?
हमारी कोशिकाओं में 46 क्रोमोसोम होते हैं, जो माता और पिता प्रत्येक से 23 होते हैं। डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की सभी या कुछ कोशिकाओं में 47 क्रोमोसोम होते हैं। यह अतिरिक्त जीन एक बच्चे में डाउन सिंड्रोम का कारण बनता है। यह वंशानुगत नहीं है बल्कि स्पर्म या एग में एकतरफा परिवर्तन है।
इस आनुवंशिक स्थिति का सटीक कारण अभी भी अज्ञात है। यह एक महिला की ज्यादा उम्र से खास तौर पर जुड़ा है। यदि महिला की उम्र 35 साल या उससे ज्यादा है तो गर्भधारण होने पर बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने का जोखिम ज्यादा है। हालांकि, डाउन सिंड्रोम वाले 80% बच्चे 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं से पैदा हुए हैं। यदि किसी का इकलौता बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है तो उन माता-पिता को होने वाले दूसरे बच्चे में भी यह विकार होने का खतरा बढ़ जाता है। उन्हें एक जेनेटिक काउंसलर से मिलना चाहिए जो उन्हें संभावित जोखिम का आकलन कर और सटीक मार्गदर्शन प्राप्त करने में मदद करेगा।
जटिलताएं
डाउन सिंड्रोम वाले लोगों में कुछ स्वास्थ्य जटिलताएं हो सकती हैं, जो उनके बड़े होने पर और गंभीर हो सकती हैं।
डाउन सिंड्रोम वाले लगभग आधे बच्चे दिल के विकारों के साथ पैदा होते हैं। इस स्थिति के आधार पर एक बच्चे को सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। इस तरह की स्थिति वाले छोटे बच्चों में भी ल्यूकेमिया का खतरा बढ़ जाता है।
डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति में निम्न जटिलताएं होने का जोखिम ज्यादा रहता हैः
- स्लीप एप्निया
- कान के संक्रमण
- देखने और सुनने से जुड़ी समस्याएं
- मोटापा
- रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याएं
- इम्युनिटी डिसऑर्डर
- डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों और लोगों के लिए स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखने के लिए नियमित जांच करवाना महत्वपूर्ण है।
क्या डाउन सिंड्रोम को रोका जा सकता है:
डाउन सिंड्रोम को रोकने का कोई तरीका नहीं है। यह कोई बीमारी नहीं है जिससे बचा जा सकता है बल्कि यह भ्रूण के विकास के प्रारंभिक चरण में क्रोमोसोम के पेयरिंग में होने वाला अस्पष्ट दोष है।
हालांकि, यह पता लगाना कि बच्चे में डाउन सिंड्रोम की क्रोमोसोमल असामान्यता है या नहीं, जो कि मुख्य रूप से ट्राइसॉमी 21 है, गर्भावस्था के दौरान समय पर स्क्रीनिंग परीक्षणों द्वारा संभव है। ये स्क्रीनिंग टेस्ट निम्नलिखित हैं:
- गर्भावस्था के 12वें से 14वें हफ्ते के बीच डबल मार्कर टेस्ट और एनटी स्कैन
- गर्भावस्था के 16-18 हफ्ते में ट्रिपल या क्वाड्रुपल मार्कर टेस्ट (14 से 22 हफ्ते के बीच भी किया जा सकता है)
ये परीक्षण डाउन सिंड्रोम वाले अजन्मे बच्चे के जोखिम को वर्गीकृत करते हैं, लेकिन जहां जोखिम को उच्च श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, गर्भावस्था में एमनियोसेंटेसिस जैसे एडवांस टेस्ट द्वारा पुष्टि की जाती है। यह दंपती (भावी माता-पिता) को एक विकल्प देता है कि क्या वे गर्भावस्था को जारी रखना चाहते हैं या नहीं, क्योंकि डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे का पालन-पोषण करना एक आजीवन प्रतिबद्धता है।
डाउन सिंड्रोम का उपचारः
सभी के लिए उपयुक्त कोई एक सिंगल या स्टैंडर्ड उपचार नहीं है। प्रत्येक उपचार व्यक्ति की संबंधित आवश्यकताओं, शक्तियों और सीमाओं को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाता है। स्पीच थैरेपी, ऑक्यूपेशनल थैरेपी, इमोशनल और फिजिकल थैरेपी और फिजियोथेरेपी जैसी चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने और अधिक स्वतंत्रता व विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रारंभिक हस्तक्षेप के तौर पर या जीवन भर किया जा सकता है।
एक महत्वपूर्ण कारक जो डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों के बेहतर विकास की संभावना को प्रभावित करता है वह जीवन में जल्द से जल्द चिकित्सा शुरू करना है। इसलिए बच्चे के विकास की प्रगति की बारीकी से निगरानी करना बहुत महत्वपूर्ण है।
चिकित्सा के क्षेत्र में हुई प्रगति और थैरेपी, ट्रीटमेंट और परामर्श के माध्यम से समय पर किए हस्तक्षेप से डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने में मदद मिली है। डाउन सिंड्रोम वाले सभी लोगों को एक पूर्ण जीवन जीने का समान अवसर होना चाहिए। वास्तव में इस वर्ष की संयुक्त राष्ट्र की थीम 'लीव नो वन बिहाइंड' यह संदेश दोहराना है और इसे प्राप्त करने के लिए एक्शन की योजना बनाना है।
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स्थिति को अच्छे-से समझकर और जागरूकता के साथ सही दिशा में आगे बढ़ने के एक कदम के तौर पर समुदाय अधिक सहायक बने हैं। हालांकि स्थिति की गंभीरता प्रत्येक मामले के साथ बदल जाती है, लेकिन अच्छी खबर यह है कि डाउन सिंड्रोम वाले लोगों में नियमित रूप से काम करने और अधिक स्वतंत्र जीवन जीने के लिए वृद्धि हुई है।
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इन सबसे ऊपर एक समाज के रूप में हमें मुख्य धारा में डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने और अधिक स्वीकार और गले लगाने की आवश्यकता है ताकि वे अधिक स्वतंत्र जीवन जी सकें।
यह लेख डॉकप्राइम.कॉम मेडिकल टीम की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. बिनीता प्रियंबदा से हुई बातचीत पर आधारित है।
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