
रीनल सिस्टम में स्थित सेम के आकार के दो अंगों को किडनी (गुर्दा) कहा जाता है। यह मानव शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। इन अंगों का कार्य खून को फिर दिल को भेजने से पहले फिल्टर कर मूत्र के रूप में अवशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त तरल पदार्थों को बाहर निकालना है ताकि शरीर में सॉल्ट्स, पोटेशियम और एसिड कंटेंट को नियंत्रित रखा जा सके।
150-170 ग्राम वजन के यह अंग मानव शरीर के लिए जीवन-निर्वाह का कार्य करते हैं। इसी वजह से इन अंगों के महत्व के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए 2006 में वैश्विक जागरुकता अभियान के तौर पर वर्ल्ड किडनी डे (विश्व गुर्दा दिवस) मनाने की शुरुआत हुई। मार्च के दूसरे गुरुवार को मनाए जाने वाले इस दिन को दुनियाभर के 88 देश मनाते हैं।
यह सालाना अभियान दुनियाभर में किडनी से संबंधी रोगों की बढ़ती दर के साथ-साथ उसके प्रभाव, बचाव और प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरुक करता है। किडनी की बीमारी शब्द का उपयोग मुट्ठी के आकार के इन अंगों से संबंधित सभी प्रकार के विकारों के लिए किया जाता है, जो पेट के ऊपरी और पिछले हिस्से के बीच स्थित होता है और निचली पसलियों द्वारा क्षति से सुरक्षित होता है। गुर्दे की बीमारियों के कुछ सामान्य प्रकार हैं-
क्रॉनिक किडनी रोग (सीकेडी या गुर्दे की पुरानी बीमारी)
इसमें अंग का कामकाज धीरे-धीरे धीमा हो जाता है और किडनी कुछ महीनों से लेकर सालों में कार्य करना बंद कर देती है। परिणामस्वरूप किडनी स्थायी रूप से काम करना बंद कर देती है और यदि बार-बार डायलिसिस या किडनी के प्रत्यारोपण से इलाज नहीं किया जाता तो व्यक्ति की मौत का कारण बन सकती है। हालांकि, सीकेडी के 5 चरण हैं। अंतिम चरण में सामान्य व्यक्ति की तुलना में पीड़ित व्यक्ति की किडनी 15% से कम काम करती है, जिसे ईएसआरएफ (एंड स्टेज रीनल फेलुअर) कहा जाता है।
एक और उपचार योग्य कारण, खासकर भारतीय संदर्भ में, रीनल ट्रैक्ट स्टोन (गुर्दे की पथरी) की बीमारी है; किडनी या मूत्रवाहिनी में पथरी होना, अक्सर यह शांत रहती है या कभी-कभी होने वाले पेट के दर्द को नजरअंदाज करने के इतिहास के साथ होती है और यह भी किडनी फेलुअर की वजह हो सकता है। जिन लोगों में मूत्र मार्ग के संक्रमण के कई लक्षण होते हैं, उनमें पथरी होने की आशंका अधिक होती है, साथ ही हाई यूरिक एसिड ब्लड लेवल वाले लोगों को भी।
एक अन्य रिस्क फेक्टर है- ऐसी दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल जो किडनी को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जैसे- एनएसएआईडीएस, कुछ एंटीबायोटिक्स, यहां तक कि हाई ब्लडप्रेशर के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाएं।
एनएसएआईडीएस का इस्तेमाल बुखार, विभिन्न प्रकार के दर्द (उदाहरण के इंडोमेथासिन, ब्रुफेन, नेप्रोक्सन आदि) जैसी स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है, लेकिन वे किडनी में रक्त के प्रवाह की मात्रा को कम कर देते हैं। एनएसएआईडीएस लेने पर दिल, लीवर या किडनी के रोगियों में किडनी खराब होने का खतरा अधिक होता है।
कुछ एंटीबायोटिक्स किडनी के लिए हानिकारक हो सकते हैं, इसलिए अपने डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक्स न लें
यदि आपको मूत्रवर्धक या एसीई इनहिबिटर जैसी दवाओं पर रखा जाता है, तो डॉक्टर के परामर्श के अनुसार टेस्ट और डॉक्टर से सलाह लेते रहें
एक्यूट किडनी इंजुरी (गुर्दे को लगी तीक्ष्ण चोट)
इस प्रकार की स्थिति आम तौर पर दुर्घटना या किडनी में अचानक चोट लगने से होती है। यदि पर्याप्त चिकित्सा देखभाल की जाती है तो इस स्थिति में सुधार की गुंजाइश रहती है। इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (आईएनएस) 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल किडनी फेल होने (स्टेज 5 सीकेडी) के लगभग 175,000 नए मामले सामने आते हैं। इन लोगों को चिकित्सा उपचार के रूप में डायलिसिस और / या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। इसके अलावा 10 में से 1 लोग क्रॉनिक किडनी विकार (सीकेडी) के किसी न किसी रूप से पीड़ित हैं। विश्व किडनी दिवस संगठन के अनुसार दुनिया भर में इनकी संख्या 850 मिलियन होने का अनुमान है। सीकेडी की वजह से प्रति वर्ष लगभग 2.4 मिलियन मौतें होती हैं। यह बीमारी विश्व स्तर पर मौत का 6टा सबसे तेजी से बढ़ता कारण है।
लक्षण
इस बीमारी की प्रारंभिक चेतावनी के बारे में जानकारी होना महत्वपूर्ण है। हालांकि, कई बार शुरुआती लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इनमें से कुछ हैं:
- मूत्र की मात्रा में वृद्धि, खासकर रात के समय
- थकान और उनींदापन
- अपर्याप्त भूख
- पैरों और टखनों में सूजन और मांसपेशियों में अकड़न
- आंखों के आसपास सुबह-सुबह सूजन होना
हालांकि, अगर किसी व्यक्ति में नीचे दिए लक्षण नजर आते हैं तो उसकी बीमारी किडनी फेलुअर की ओर अग्रसर होती है, और डॉक्टर से परामर्श किया जाना चाहिए -
- मतली और उल्टी
- भूख में व्यापक कमी
- मूत्र की मात्रा में कमी
- एनीमिया (खून की कमी)
- पोटेशियम के स्तर में अप्रत्याशित वृद्धि
निदान
किडनी की कार्यक्षमता की जांच के लिए कुछ टेस्ट्स के बाद डॉक्टर किडनी के रोग का पता लगा सकता है। सामान्य किडनी टेस्ट्स में ब्लड किडनी फंक्शन टेस्ट होते हैं, जिनमें ब्लड यूरिया और क्रिएटिनिन और मूत्र की दिनचर्या का टेस्ट शामिल होते हैं। इमेजिंग परीक्षणों में, अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन में, किडनी और मूत्र पथ में परिवर्तन या पथरी का पता लगाया जाता है। इन परिणामों के आधार पर आपका डॉक्टर आगे के टेस्ट करवाने को कह सकता है।
बचाव, प्रबंधन और उपचारः
बचाव
हालांकि, आनुवांशिक कारक, पारिवारिक इतिहास, आदि भी किडनी के रोग के कुछ रूपों में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, किडनी रोग के बारे में अच्छी बात यह है कि कुछ चीजों के प्रति सचेत रहने से इन्हें टाला जा सकता है। किडनी की बीमारी से बचने के लिए मूत्र का टेस्ट, आपके बीपी की नियमित निगरानी, मधुमेह को नियंत्रित रखने और स्वस्थ जीवन शैली, जिसमें स्वस्थ आहार, पानी की प्रचुर मात्रा, नमक का कम सेवन, व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करना आवश्यक है।
सीकेडी का प्रारंभिक प्रबंधन
किडनी के पुराने रोगों का पता चलने पर शुरुआती प्रबंधन के तौर पर जीवनशैली में बदलाव मददगार हो सकता है। लेकिन साथ ही इसका कारण जानने और इसकी कोशिश ज़रूरी है, ताकि इसका इलाज किया जा सके और कुछ मामलों में तो यह पूरी तरह ठीक भी किया जा सकता है।
सीकेडी की पुष्टि होने पर नेफ्रोलॉजिस्ट या चिकित्सक के साथ नियमित फॉलो-अप से किडनी फेलुअर की गति को धीमा करना सबसे अच्छा तरीका है
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सीकेडी के बाद के चरणों में प्रबंधन
डायलिसिस या अंततः किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है, इसलिए उसे तत्काल ट्रांसप्लांट सूची में डालना होगा।
यहां पाठकों से अपील है कि वे अंगदान के लिए रजिस्ट्रेशन करें, ताकि ईएसआरडी जैसी स्थिति वाले बदकिस्मत लोगों को जीने का दूसरा मौका मिल सके।
और अंत में, आइये हम विश्व किडनी दिवस पर जीवनशैली में कुछ मामूली बदलाव करें, भले ही आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं या नहीं। जैसा कि आपको पता है कि यह बीमारी दवाओं के इस्तेमाल या समय के साथ सुधरती नहीं बल्कि इसके और खराब होने की आशंका बनी रहती है, सही समय पर सही कदम उठाना आवश्यक हो जाता है। आखिरकार इसकी कार्यप्रणाली एक जीवित प्राणी के लिए महत्वपूर्ण है।
यह लेख डॉकप्राइम.कॉम, मेडिकल टीम की सीनियर कंसल्टेंट, डॉक्टर बिनीता प्रियंबदा से हुई बातचीत पर आधारित है।
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