देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायलय ने सरकार को निर्देश दिया कि वह तुरंत निजी अस्पतालों और लैब में भी कोरोनवायरस के लिए नि: शुल्क जांच के लिए आदेश जारी करे क्योंकि जांच की राशि 4500 रुपये गरीब की पहुंच से बाहर है। अदालत ने ये भी कहा कि यह इस बात की जांच बाद में करेगी कि क्या उन निजी संस्थाओं को बाद में उनके खर्च की आपूर्ति की जाएगी, जो मुफ्त में जांच कर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि निजी अस्पतालों की भी राष्ट्रीय संकट की घड़ी में परोपकारी सेवाओं का विस्तार कर महामारी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका बनती है।
गरीब की पहुंच से बाहर कोरोना टेस्ट
कोर्ट ने कहा कि हम प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दलील को सही पाते हैं कि राष्ट्रीय आपदा के इस समय में निजी प्रयोगशालाओं को कोरोना की जांच और पुष्टिकरण परीक्षण के लिए 4500 रुपये वसूलने की अनुमति देनी चाहिए। अदालत ने कहा कि इस देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इसे कराने के काबिल नहीं है और 4500 रुपये की राशि का भुगतान न कर पाने के कारण वे जांच से वंचित रह गया।
कोरोना को फैलने से रोकने में अस्पतालों की भूमिका अहम
जस्टिस अशोक भूषण और एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा, 'राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में परोपकारी सेवाओं का विस्तार कर महामारी को रोकने में प्रयोगशालाओं सहित निजी अस्पतालों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हम संतुष्ट हैं कि याचिकाकर्ता ने उत्तरदाताओं को निर्देश जारी करने के लिए मामला बनाया है ताकि मान्यता प्राप्त निजी प्रयोगशालाओं को कोरोना की जाांच मुफ्त करने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया जा सके। सवाल ये है कि क्या कोरोना की मुफ्त जांच करने वाली निजी प्रयोगशालाओं के खर्च की पूर्ति की जाएगी और क्या वे इसके हकदार हैं, इसपर बाद में विचार किया जाएगा। हम आगे देखेंगे कि कोरोना से संबंधित परीक्षण NABL- मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं या ICMR द्वारा अनुमोदित एजेंसी में किए जाने चाहिए।'
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट
नई दिल्ली के ओखला स्थित फोर्टिस एस्कोर्ट हेल्थ इंस्टीट्यूट के कार्डियोलॉजिस्ट और जनरल फिजिशियन डॉ. शैलेंद्र भदोरिया का कहना है कि आज जो चीज लोगों के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय है वह है क्या मुझे कोरोना की टेस्टिंग करानी चाहिए या नहीं करानी चाहिए। इस बात की गंभीरता को समझते हुए हमने लोगों को पांच वर्गों में बांटा है। पहले वो, जिनमें कोरोना के संकेत हैं, जैसे बुखार, खांसी, गले में दर्द या फिर वह 14 दिनों में किसी दूसरे देश की यात्रा कर आए हो। दूसरा वे, जिनमें लक्षण हैं और वे कंफर्म्ड केस के संपर्क में आए हैं। तीसरा वे, जिनमें लक्षण हैं और वे हेल्थकेयर वर्कर हैं। चौथा वे जो हॉस्पिटल के मरीज हैं, जिनमें फेफड़ों का इंफेक्शन है, जन्हें सांस लेने में दिक्कत है और कफ भी ज्यादा है। पांचवे वे जिनमें लक्षण नहीं हैं लेकिन उनमें खतरा ज्यादा है उन्हें टेस्टिंग कराने की जरूरत है।
किन लोगों को कराना चाहिए टेस्ट
अगर आप सर्दी, खांसी या बुखार से परेशाान हैं और आप ठीक नहीं हो रहे हैं तो आपको जांच जरूर करानी चाहिए। इसके अलावा अगर आप किसी कंफर्मड केस के संपर्क में आते हैं तो भी आपको जांच करानी चाहिए।
भारत में कैसे हो रहा टेस्ट
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति में ये लक्षण दिखाई देते हैं तो वह सरकार की दी हेल्पलाइन पर कॉल कर सकता है। उस व्यक्ति को एंबुलेंस मुहैया कराई जाएगी और पास के सरकारी या प्राइवेट अस्पताल ले जाया जाएगा। जहां खून का नमूना लिया जाएगा और पॉजिटिव पाए जाने पर आइसोलेशन वार्ड में रखा जाएगा।
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देश में कितनी टेस्टिंग लैब
ICMR के अनुसार, देश में 51 प्रयोगशालाएं हैं, जिसमें से प्रत्येक में प्रति दिन 90-100 नमूनों की जांच की जा रही है। सरकारी प्रयोगशालाओं में ज्यादा जांच हो रही है लेकिन अदालत ने प्राइवेट अस्पतालों को भी फ्री टेस्ट की जांच के आदेश दिए हैं। आईसीएमआर के वैज्ञानिकों के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में अच्छी आरक्षित क्षमता है।
कैसे लिया जाता है सैंपल
आईसीएमआर के मुताबिक, " परीक्षण से पहले, वायरस से संक्रमित होने के संदेह वाले व्यक्ति के नाक और गले की स्वैब ली जाती है और फिर उसके सैंपल की रिपोर्ट आती है।
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