
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वर्ष 2014 में टीबी के 63 लाख मामले सामने आने की बात कही थी। इनमें से एक-तिहाई मामले भारत में थे। यानी इस मामले में यह पहले नंबर पर था। उसके बाद सरकार के तमाम दावों के बावजूद हालात सुधरने की बजाय बदतर ही हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि इस मद में धन की कमी की वजह से इस जानलेवा बीमारी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई भी कमजोर पड़ रही है।
साथ ही लैंसेट इन्फेक्शंस डिजीज जर्नल में छपे लंदन के इंपीरियल कालेज की ओर से किया गये एक अध्ययन के अनुसार 2014 में निजी क्षेत्र में टीबी की दवाओं की बिक्री के आंकड़ों से अनुमान लगाया गया था कि देश में 22 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में हैं। अब ताजा अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों व स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेताया है कि आंकड़ों को कम करने के नतीजे बुरे हो सकते है।
इस शोध टीम के प्रमुख डा. निमालान अरिनामिन्पाथी कहते हैं, "दुनिया में टीबी सबसे जानलेवा बीमारी के तौर पर उभरी है. बावजूद इसके इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देश भारत में इस समस्या की गंभीरता का आकलन करना मुश्किल है।" अपने शोध के तहत डा. निमालान और उनकी टीम ने पहले देश भर में निजी क्षेत्र में टीबी की दवाओं की बिक्री के आंकड़े जुटाए और फिर उसके आधार पर मरीजों की तादाद का अनुमान लगाया। इससे यह तथ्य सामने आया कि वर्ष 2014 में निजी क्षेत्र में टीबी के 22 लाख मामले आए थे. यह आंकड़ा असली अनुमान से दो से तीन गुना ज्यादा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस जानलेवा बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार को स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को साथ में लेकर एक ठोस अभियान शुरू करने के साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि धन की कमी से स्वास्थ्य परियोजनाओं की प्रगति पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े।
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version