अक्सर लोगों को लगता है कि सिगरेट पीने का नुकसान सिर्फ पीने वाले को होता है। लेकिन सच्चाई यह है कि सिगरेट का धुआं सिर्फ पीने वाले के फेफड़ों में नहीं जाता, बल्कि यह घर और समाज की हवा में भी घुलता है और इसका नुकसान बड़ों के साथ-साथ सबसे ज्यादा उन बच्चों को पहुंचता है, जिन्होंने खुद कभी सिगरेट छुआ तक नहीं।
एक नई इंटरनेशनल स्टडी में सामने आया है कि सेकेंड हैंड स्मोक यानी दूसरों के पिए गए सिगरेट के धुएं के कारण दुनिया भर के बच्चों से हर साल 8.45 मिलियन स्वस्थ जीवन-दिन छिन जाते हैं। सोचिए, ये वही बच्चे हैं जिन्हें खेलना चाहिए, स्कूल जाना चाहिए और सामान्य जिंदगी जीनी चाहिए, लेकिन धुएं के कारण वो बीमार पड़कर अस्पतालों के चक्कर लगाते हैं और कई बार तो ।
स्टडी में क्या सामने आया?
इस स्टडी को Hangzhou Normal University के School of Clinical Medicine के असिस्टेंट प्रोफेसर Dr Siyu Dai ने European Respiratory Society Congress एम्सटर्डम में पेश किया। इसमें 0 से 14 साल के बच्चों पर सेकेंड हैंड स्मोक के असर को समझने के लिए ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) स्टडी के डाटा को
शामिल किया गया। नतीजों से पता चला कि बच्चों में धुएं की वजह से सबसे ज्यादा असर इन बीमारियों में दिखा:
- लोअर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन (जैसे निमोनिया): 3.79 मिलियन स्वस्थ जीवन-दिन का नुकसान
- कान का इंफेक्शन: 0.80 मिलियन दिन का नुकसान
- अन्य रेस्पिरेटरी इंफेक्शन और टीबी: 3.86 मिलियन दिन का नुकसान
ये आंकड़े बताते हैं कि सेकेंड हैंड स्मोक बच्चों के शरीर को धीरे-धीरे अंदर से कमजोर करता है।
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गरीब देशों के बच्चों पर ज्यादा असर
स्टडी में पाया गया कि कम विकसित देशो में बच्चों को धुएं से सबसे ज्यादा नुकसान होता है। यहां प्रति 1 लाख बच्चों पर बीमारियों का बोझ 300 से ज्यादा पाया गया। जबकि ज्यादा विकसित देशों में यही आंकड़ा 10 से भी कम था। इसका कारण यह हो सकता है कि कम विकसित देशों में भीड़भाड़ वाले घर, वेंटिलेशन की कमी, तंबाकू का प्रयोग आदि ज्यादा कॉमन हैं।
बच्चों के लिए क्यों खतरनाक है सेकेंड हैंड स्मोक?
बच्चों के लिए सेकेंड हैंड स्मोकिंग क्यों खतरनाक है इस बारे में जानने के लिए हमने बात की दिल्ली के शालीमार बाग स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी और स्लीप डिसऑर्डर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और हेड डॉ विकास मौर्या से और उन्होंने हमें बताया, “पैसिव स्मोकिंग या सेकेंड-हैंड स्मोकिंग का मतलब है किसी और के जलते हुए सिगरेट से निकलने वाला धुआं या उसके द्वारा छोड़ा गया धुआं सांस के साथ अंदर लेना। इस धुएं में 7,000 से ज्यादा हानिकारक केमिकल्स होते हैं, जिनसे कम से कम 70 तरह के कैंसर हो सकते हैं। बच्चों के फेफड़े और इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं होते, इसलिए सिगरेट के धुएं की थोड़ी सी मात्रा भी उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है।”
दरअसल घर या स्कूल में अगर कोई धूम्रपान करता है तो बच्चे मजबूरी में उस धुएं को सांस के साथ अंदर ले लेते हैं। इससे उन्हें बार-बार खांसी-जुकाम, कान का इंफेक्शन, सांस की समस्या और यहां तक कि अस्थमा और टीबी का खतरा भी बढ़ जाता है। रिसर्च बताती है कि सिर्फ पारंपरिक सिगरेट ही नहीं, बल्कि ई-सिगरेट और वेप का धुआं भी बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक है। रिसर्चर्स का कहना है कि सेकेंड हैंड स्मोक का कोई भी लेवल बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है।
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कुल मिलाकर इस स्टडी से एक बात साफ होती है कि सेकेंड हैंड स्मोक बच्चों की सेहत को धीरे-धीरे गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसका असर बच्चों की सेहत के साथ-साथ उनकी जिंदगी पर भी पड़ता है क्योंकि बीमार होने पर स्कूल, पढ़ाई, रिश्ते आदि भी प्रभावित होते हैं। अगर आप स्मोक करते हैं, तो अगली बार सिगरेट पीने से पहले अपने आसपास मौजूद बच्चों के बारे में जरूर सोचिएगा।
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Current Version
Sep 30, 2025 18:49 IST
Published By : Anurag Gupta