जल्दबाजी में निर्णय लेने से बेहतर है पुनर्विचार, जानें मन में कैसे पैदा होती है दुविधा

 जल्दबाजी में गलत निर्णय लेने से बेहतर है कि थोड़ी देर सोचा जाए। इससे भविष्य में कभी पछताना नहीं पड़ेगा। जानें कैसे...
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जल्दबाजी में निर्णय लेने से बेहतर है पुनर्विचार, जानें मन में कैसे पैदा होती है दुविधा


किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले उस विषय पर सोचना बेहद जरूरी है। अक्सर लोग निर्णय लेने से पहले सोचने के लिए थोड़ा समय लेते हैं। ऐसे लोगों को अक्सर दुविधाग्रस्त समझा जाता है। वास्तव में ऐसा नहीं होता है। जल्दबाजी में गलत निर्णय लेने से बेहतर है कि थोड़ी देर सोचा जाए। आप अक्सर अपने आसपास देखते हैं लोग बड़ी तेज रफ्तार के साथ काम और सोच समझकर निर्णय लेते हैं। वहीं कुछ लोगों की सुस्त इमेज बन गई है। लेकिन बता दें कि तेजी से निर्णय वाले ओवरस्मार्टनेस व्यक्ति को अपनी इस आदत के कारण नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। पढ़ते हैं आगे...

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कैसे उत्पन्न होती है दुविधा 

आत्मविश्वास के विपरीत जब कोई विचार उत्पन्न होता है तो उसे दुविधा कहते हैं। इसे आमतौर पर नकारात्मक सोच समझा जाता है। इसीलिए इसको लेकर लोगों के मन में धारणा बन गई हैं। वे सोचते हैं कि हीन भावना से ग्रस्त लोग ही दुविधा के शिकार होते हैं। लेकिन ऐसी सोच गलत है। कभी-कभी सक्षम और प्रतिभाशाली लोगों को भी आप ने जारी दुविधा से ग्रस्त देखा होगा। नाकामी का डर इसकी सबसे बड़ी वजह है। अगर असफलता से डरकर पीछे हटने की बजाय उसकी वजह को दूर करने की तैयारी के साथ आगे बढ़ा जाए तो उसे निश्चित रूप से कामयाबी मिलेगी। ऐसे में यह नकारात्मक भावना भी हमारे लिए मददगार साबित हो सकती है। आप लोगों की परवाह ना करें। जब मन में दुविधा पैदा होती है तो उससे मन में सवाल भी पैदा होते हैं, जिनके जवाब को ढूंढते-ढूंढते व्यक्ति का दिमाग रचनात्मकता की ओर चलने लगता है। अगर महान वैज्ञानिक गैलीलियो की मानें तो दुविधा से ही नए अविष्कार का जन्म होता है।

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सोचने के लिए अलग से निकालें समय

सिक्के के हमेशा दोनों पहलू को देखिए। बता दें कि जीवन से जुड़ीं सभी बातों के दो पक्ष होते हैं। एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। जैसे हर चमकदार दिखने वाली चीज सोना नहीं होती वैसे ही जल्दी निर्णय वाले लोगों की सोच रचनात्मक नहीं होती। हो सकता है कि आपके सामने कभी कोई बहुत बड़ा अवसर आए पर उसे खो जाने के डर से बिना सोचे समझे किसी अनजान रास्ते पर कदम बढ़ाना बुद्धिमानी नहीं है। रास्ते पर आगे बढ़ने से पहले सामने आने वाली चुनौतियों, अपनी क्षमता और उसकी खूबियों-खामियों के बारे में बारीकी से विश्लेषण करें। उसके बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए। आमतौर पर खुद पर संदेह होना, फैसले से डरना आदि बुरा माना जाता है पर वास्तव में ऐसा नहीं है। कभी-कभी ऐसा होना भी अच्छा है।

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अगर लगे कि आप ज्यादा दुविधा में है

  • आत्केंद्रित ने बनें।
  • अगर किसी विषय को लेकर आप दुविधा में है तो अपने करीबी लोगों से समस्या के बारे में खुलकर बातचीत करें।
  • खुद को कमजोर ना समझें।
  • सही दिशा में कदम उठाकर अपनी शंका को गलत साबित करें।
  • किसी गलती को लेकर अपने मन में अपराधबोध ना रखें।
  • अतीत की कड़वी यादों को भूलकर वर्तमान में जीना सीखें।
  • अपनी दिनचर्या नियमित रुचि से जुड़े कार्यों के लिए समय निकालें ।
  • स्वस्थ खानपान अपनाएं।

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