इन 5 कारणों से बच्चों को नहीं देना चाहिए पेसिफायर, डॉक्टर से जानें इससे होने वाले नुकसान

Side Effects of Giving Pacifiers to Babies in Hindi: बच्चों को पेसिफायर देना उनकी सेहत के लिए कई तरीकों से नुकसानदायक हो सकता है। आइये जानते हैं।
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इन 5 कारणों से बच्चों को नहीं देना चाहिए पेसिफायर, डॉक्टर से जानें इससे होने वाले नुकसान


Side Effects of Giving Pacifiers to Babies in Hindi: छोटे बच्चों की देखभाल करना बेहद जरूरी होता है। बच्चे अक्सर शुरुआत के कुछ साल तक रोते हैं। यह उनका स्वाभाविक नेचर है। कई बार बच्चों के रोने की आवाज से चिड़चिड़ाकर लोग उन्हें पेसिफायर दे देते हैं। ताकि कुछ समय के लिए बच्चा चुप रहे। हालांकि, उस समय पेसिफायर से बच्चा चुप तो हो जाता है, लेकिन पेसिफायर का इस्तेमाल करना बच्चों के लिए लॉन्ग टर्म में नुकसानदायक साबित हो सकता है। पेसिफायर को आमतौर पर बच्चों के मुंह में अंगूठा डालने की आदत को छुड़ाए जाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। क्या आप भी बच्चों को पेसिफायर देते हैं। अगर हां, तो इसके नुकसान जान लीजिए। आइये लखनऊ के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. तरुण आनंद से जानते हैं बच्चों को पेसिफायर क्यों नहीं देना चाहिए। 

दांतों से जुड़ी समस्या (Dental Problems)

बच्चों को पेसिफायर देने से उन्हें दांतों से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। दरअसल, लगातार पेसिफायर देने से बच्चों के दांत के आस-पास वाले हिस्से में दबाव पड़ता है, जिससे उनके दांतों में समस्या आ सकती है। इससे कई बार उन्हें चबाने में दिक्कत होने के साथ ही साथ पूरा मुंह खोलने में भी कठिनाई महसूस हो सकती है। इससे उन्हें बार-बार सर्दी जुकाम और नेजल ब्लॉकेज की समस्या भी हो सकती है। 

मां का दूध पीने में समस्या (Difficulty in Drinking Breastmilk)

अगर आप बच्चों को बहुत जल्दी पेसिफायर दे रहे हैं तो इससे बच्चे को पेसिफायर और निप्पल को पहचानने में कंफ्यूजन हो सकती है। इससे बच्चा मां का दूध पीने में नखरे करता है। जिसके चलते उन्हें बोतल वाला दूध पिलाया जाता है। 

बोलने में कठिनाई (Difficulty in Speaking)

अगर आप बच्चों को रोने पर पेसिफायर देते हैं तो इससे आगे चलकर उनके बोलने की क्षमता पर असर पड़ता है। पेसिफायर का ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों में जल्दी बोलने की शुरुआत थोड़ा देर से होती है। 

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कान में इंफेक्शन (Ear Infection)

बच्चों को पेसिफायर देने से उन्हें नाक और कान से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं। इस स्थिति में बच्चों में मिडल ईयर इंफेक्शन (ओटाइटिस) का खतरा भी बना रहता है। बड़े होने के साथ ही बच्चों में यह समस्या बढ़ भी सकती है। 

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