
हाल ही में पुणे में एक पत्नी ने अपने पति को बचाने के लिए लिवर डोनेट किया लेकिन दोनों की ही मौत हो गई। इस घटना को सभी को इतना झकझोर दिया है कि पिछले कुछ समय में लिवर ट्रांसप्लांट गूगल ट्रेंड्स पर ट्रेंड करने लगा। वैसे ऐसी घटनाएं सामान्य नहीं हैं और कभी-कभार ही सामने आती हैं। लेकिन ऐसा होने पर मन में एक सवाल उठना लाजमी है कि लिवर ट्रांसप्लांट कितना सुरक्षित है और इसके क्या खतरे हो सकते हैं।
पुणे की घटना क्या है?
15 अगस्त को 49 वर्षीय बापू कोमकर का लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। उनकी पत्नी 42 वर्षीय कामिनी ने अपने पति को बचाने के लिए लिवर का हिस्सा दान किया। दुर्भाग्य से ऑपरेशन के कुछ घंटों बाद ही बापू की मौत हो गई। कामिनी शुरू में ठीक लग रही थीं लेकिन एक हफ्ते बाद उन्हें ब्लड प्रेशर गिरने (हाइपोटेंशन) और मल्टी ऑर्गन फेल्योर हुआ और उनकी भी मौत हो गई। परिवार ने इस सर्जरी के लिए अपना घर तक गिरवी रख दिया था, लेकिन अंत में दोनों ही जिंदगी से हार गए।
इस घटना के बाद महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग ने पुणे के सह्याद्री अस्पताल को नोटिस जारी कर उसके लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम को निलंबित कर दिया है। अब पूरे मामले की जांच उच्च स्तरीय कमेटी करेगी।
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लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट कितना सुरक्षित है?
पहले समझते हैं कि लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट क्या है? इस तरह के ट्रांसप्लांट में परिवार का कोई स्वस्थ व्यक्ति अपने लिवर का हिस्सा दान करता है, जिसे मरीज को ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। आमतौर पर इसे सुरक्षित माना जाता है। लेकिन क्या लिवर ट्रांसप्लांट पूरी तरह से सुरक्षित होता है, इस बारे में पूछने पर नई दिल्ली स्थित PSRI Hospital के Head - Liver Transplant & Surgical Gastroenterology डॉ. मनोज गुप्ता बताते हैं कि लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान दो अलग-अलग सर्जरी की जाती हैं। पहली सर्जरी डोनर की होती है, जिसमें खून बहने या संक्रमण का खतरा रहता है। हालांकि अगर डोनर सही तरीके से चुना गया हो, तो यह प्रक्रिया सामान्य रूप से सफल हो जाती है। दूसरी सर्जरी उस मरीज की होती है जिसे नया लिवर लगाया जाता है। यह ऑपरेशन काफी लंबा और जटिल होता है, इसलिए इसमें जोखिम भी ज्यादा रहते हैं। सर्जरी के दौरान इंफेक्शन, ज्यादा ब्लीडिंग या लिवर रिजेक्शन जैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं। कुछ मामलों में किडनी या हार्ट फेल्योर का खतरा भी हो सकता है। लेकिन अगर डोनर और मरीज दोनों की सर्जरी से पहले पूरी तरह जांच कर ली जाए, तो इन जटिलताओं से काफी हद तक बचा जा सकता है।
वहीं ORGAN India की CEO Ms. Sunayana Singh बताती हैं कि, “लिवर ट्रांसप्लांट कोई छोटी सर्जरी नहीं होती। यह ऑपरेशन आम तौर पर 8 से 12 घंटे तक चलता है और रिसिपिएंट यानी मरीज के लिए करीब 10% तक जोखिम रहता है। रिस्क इस बात पर भी निर्भर करता है कि मरीज कितनी गंभीर हालत में ट्रांसप्लांट करवा रहा है, क्योंकि हर केस अलग होता है। लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि जिन मरीजों को गंभीर लिवर की बीमारी होती है, उनके लिए बीमारी से मरने का खतरा कहीं ज्यादा होता है। ऐसे में अगर ट्रांसप्लांट सफल हो गया, तो उनकी लाइफ एक्सपेक्टेंसी यानी उम्र और क्वालिटी ऑफ लाइफ दोनों को काफी बेहतर बना देता है।”
आंकड़ों की बात करें तो PubMed में छपे एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार 49,000 से ज्यादा लिवर डोनर्स में मृत्यु दर करीब 0.06% रही, यानी लगभग हर 1,600 में से 1 डोनर की मौत। वहीं American Transplant Congress की स्टडी में यह रिस्क 0.1% से 0.4% तक बताया गया है। इसका मतलब है कि ज्यादातर लोग लिवर डोनेट करने और ट्रांसप्लांट होने के बाद सुरक्षित रहते हैं, लेकिन कभी-कभार कुछ गंभीर स्थितियां सामने आ सकती हैं।
लिवर ट्रांसप्लांट में आने वाली आम समस्याएं
लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान डोनर और रिसीवर दोनों ही बड़े ऑपरेशन से गुजरते हैं। इसलिए कुछ समस्याएं आ सकती हैं।
1. सर्जिकल खतरे
ऐसे बड़े ऑपरेशन में कई बार ब्लीडिंग, बाइल लीक, इंफेक्शन या आसपास के अंग को नुकसान जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।
2. लो ब्लड प्रेशर और शॉक
ऑपरेशन के बाद अचानक ब्लड प्रेशर गिरना (हाइपोटेंसिव शॉक) कई बार मल्टी ऑर्गन फेल्योर तक ले जाता है। संभव है पुणे की महिला डोनर के मामले में यही समस्या आई हो।
3. इंफेक्शन
आईसीयू में भर्ती रहते हुए संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। कुछ मामलों में यह सेप्सिस (खून में इंफेक्शन) बनकर जानलेवा हो सकता है।
4. छिपी हुई बीमारियां
कभी-कभी पूरी जांच के बावजूद शरीर में मौजूद कोई समस्या ऑपरेशन के बाद उभर सकती है और हालत बिगाड़ सकती है।
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मरीज और परिवार को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
यह सच है कि लिवर ट्रांसप्लांट कई मरीजों को नई जिंदगी देता है, लेकिन इसके साथ-साथ यह बड़ी जिम्मेदारी भी है।
- मरीज और दाता दोनों को हर रिस्क के बारे में विस्तार से समझाया जाना चाहिए।
- केवल फिट और पूरी तरह स्वस्थ व्यक्ति को ही लिवर डोनेट करने दिया जाना चाहिए।
- अस्पताल और डॉक्टर की विशेषज्ञता बहुत मायने रखती है। इसलिए हमेशा ऐसा हॉस्पिटल और डॉक्टर चुनें जिसे अपने फील्ड में अच्छा एक्सपीरियंस हो।
- ऑपरेशन के बाद लगातार मॉनिटरिंग, समय पर ब्लीडिंग या शॉक को कंट्रोल करना और इंफेक्शन से बचाव जरूरी है।
कुल मिलाकर पुणे में हो हुआ, ऐसी घटना दुर्लभ है लेकिन हमें सावधान करती है। लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट उम्मीद तो जगाता है, लेकिन यह आसान या रिस्क-फ्री प्रक्रिया नहीं है। इसलिए दान करने वाले और मरीज, दोनों को पूरी जानकारी और समझदारी के साथ फैसला लेना चाहिए।
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