कैटरैक्ट यानी मोतियाबिंद अंधेपन की एक बड़ी वजह है, लेकिन समय रहते अगर इसका इलाज करा लिया जाए, तो मरीज पहले की तरह न सिर्फ देख सकता है, बल्कि कुछ परिस्थितियों में उसे चश्में की भी जरूरत नहीं होती है। हमारी आंख की पुतली के पीछे एक लेंस होता है। पुतली पर पड़ने वाली रोशनी को यह लेंस फोकस करता है और रेटिना पर ऑब्जेक्ट का साफ चित्र बनाता है। आंख की पुतली के पीछे मौजूद यह लेंस पूरी तरह से साफ होता है, ताकि इससे लाइट आसानी से पास हो सके। कभी-कभी इस लेंस पर कुछ धुंधलापन आ जाता है, जिसकी वजह से इससे पास होने वाली लाइट पार नहीं हो पाती है, इसके कारण ही व्यक्ति को धुंधला दिखाई देने लगता है। यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती जाती है और मरीज की नजर पहले से ज्यादा धुंधली होती जाती है। आइए हम आपको इससे बचाव और चिकित्सा की जानकारी देते हैं।
कैटरैक्ट से बचाव
- नियमित जांच कराते रहें, खासकर 40साल की उम्र के बाद हर व्यक्ति को कैटरैक्ट की जांच के लिए नेत्र चिकित्सक से मिलना चाहिए।
- कैटरैक्ट का पता चल जाने के बाद हर तीन महीने पर नेत्र चिकित्सक से अपने आंखों की जांच करानी चाहिए।
- कैटरैक्ट की सबसे आम वजह है बढ़ती उम्र। जैसे उम्र बढ़ने को रोका नहीं जा सकता, वैसे ही कैटरैक्ट को रोक पाना भी मुमकिन नहीं।
- टीवी देखने से बचना, कम पढ़ना और आंखों का कम इस्तेमाल करना जैसी बातों से मोतियाबिंद नहीं रुकता।
- यदि आप मधुमेह के मरीज हैं तो ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखिये।
- महिलाओं को गर्भवस्थ के दौरान रूबेला टीका लगवाना चाहिए।
कैटरैक्ट की चिकित्सा
ऑपरेशन के जरिये
कैटरैक्ट का एकमात्र इलाज ऑपरेशन है और इसका निदान होने के बाद जितनी जल्दी हो सके ऑपरेशन करा लेना चाहिए। ऑपरेशन के दौरान सर्जन आंख की पुतली के पीछे मौजूद धुंधले पड़ चुके प्राकृतिक लेंस को हटा देते हैं और उसकी जगह नया आर्टिफिशियल लेंस लगा देते हैं। आटिर्फिशल लेंस को इंट्रा-ऑक्यूलर लेंस कहा जाता है।
ऑपरेशन के तीन तरीके हैं - एक्स्ट्रा कैप्सुलर कैटरैक्ट एक्स्ट्रैक्शन (ईसीसीई), स्मॉल इंसिजन कैटरैक्ट सर्जरी (एसआईसीएस) और माइक्रोइंसिजन कैटरैक्ट सर्जरी यानी फैकोइमल्सिफिकेशन, इसे फैको सर्जरी भी कहते हैं। कैटरैक्ट के ऑपरेशन के लिए आजकल तीसरे तरीके का प्रयोग सबसे अधिक हो रहा है।
एक्स्ट्रा कैप्सुलर कैटरैक्ट एक्स्ट्रैक्शन
इसमें कॉर्निया में 10-12 मिमी का कट लगाया जाता है। उसके बाद प्राकृतिक लेंस को एक पीस में बाहर निकाला जाता है। टांके लगाने की जरूरत होती है, ऑपरेशन के बाद यह तय करने में 10 हफ्ते तक का वक्त लग जाता है कि मरीज के चश्मे का नंबर क्या होगा।
स्मॉल इंसिजन कैटरेक्ट सर्जरी
इसमें 4-5 मिमी का कट लगाया जाता है। कैटरैक्ट हाथ से हटाया जाता है और फोल्डेबल इंट्रा-ऑक्युलर लेंस लगा दिया जाता है। इसमें टांके नहीं लगते और हीलिंग तेज होती है।
माइक्रोइंसिजन कैटरैक्ट सर्जरी
इसमें सिर्फ 2 मिमी का कट लगाया जाता है। अल्ट्रासोनिक तरंगों की मदद से प्राकृतिक लेंस को तोड़ा जाता है और फिर बाहर निकाल दिया जाता है। इसमें खून नहीं निकलता, टांके नहीं आते और दर्द भी नहीं होता। साथ ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं है। यह ऑपरेशन 15 मिनट में हो जाता है।
भी-कभी कुछ खास परिस्थितियों में डॉक्टर एक्स्ट्रा कैप्सुलर कैटरैक्ट एक्स्ट्रैक्शन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा तब होता है, जब मरीज सर्जरी कराने में देर कर देता है और उसका लेंस बहुत कड़ा हो जाता है।
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