ब्रोन्कियल अस्थमा के मरीजों को हो सकता है नेचुरोपैथी से फायदा, जानिए कैसे

नेचुरोपैथी से अस्थमा के मरीज को काफी लम्बे समय तक फायदा होता है। आइये जानते हैं कैसे।
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ब्रोन्कियल अस्थमा के मरीजों को हो सकता है नेचुरोपैथी से फायदा, जानिए कैसे


एन्वायरमेंटल एलर्जी (Environmental Allergy)जैसे डस्ट, पॉलेन, इंसेक्ट्स और पालतू जानवर अस्थमा के बढ़ने का कारण हैं। अस्थमा को बढ़ाने वाले अन्य फैक्टर, बाहर का(Air pollution) एयर पॉल्यूशन भी है। फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च के रिसर्चर ने पाया कि हाई ट्रैफिक इंटेंसिटी और ओजोन के जोखिम ने अस्थमा के मरीजों के लिए खतरा बढ़ा दिया है।

वातावरण में प्रदूषण बढ़ने के  कारण भारत में सांस से सम्बंधित बीमारियाँ बढ़ रही हैं। खासकर यह बीमारियाँ बच्चों में ज्यादा बढ़ रही हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि इसके प्रति एक होलिस्टिक अप्रोच (Holistic Approach)के साथ नेचुरोपैथी और योग के साथ इन बीमारियों को रोका जाए।

रिसर्च से पता चला है कि नेचुरोपैथी से अस्थमा के मरीज को काफी लम्बे समय तक फायदा होता है और इस रोग की इंटेंसिटी(Intensity) कम होती है। यह ड्रग(Drug) की जरुरत को कम करके  फेफड़े(Lungs) और इसके सिम्पटम्स(Symptoms) में सुधार करता है।

asthma

ब्रोन्कियल अस्थमा और इसको बढ़ाने  वाले कारक (Bronchial asthma and its enhancers)

ब्रोन्कियल अस्थमा एक ऐसी कंडीशन है जो फेफड़ों के वायुमार्ग (air passage) में सूजन का कारण बनती है। इस वायुमार्गों के पतले होने और ज्यादा बलगम होने के कारण घरघराहट, खांसी और सांस लेने में कठिनाई होती है।

यह बीमारी  क्रोनिक(chronic) है जिससे डेली लाइफ में यह बहुत मुश्किलें आती हैं। अगर इसका ढंग से इलाज न किया जाय तो यह बीमारी खतरनाक भी बन सकती हैं। हमारे एनवायरमेंट से ही अस्थमा बढ़ता है।

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ड्रग्स जो सहायक हैं (Helpful Drugs)

मोटर  कारों से निकलने वाले धुएं और यहाँ तक कि धूल और पॉलेन भी अस्थमा को एक खतरनाक रोग बनाते हैं। मॉडर्न मेडिसिन स्टेरॉयड इनहेलेशन(Modern medicine steroid inhalation)और एंटी-इन्फ्लेमेंटरी ड्रग्स(anti-inflammatory drugs)इस रोग की कंडीशन को मैनेज करते हैं।

ये ड्रग्स फेफड़े के सांस लेने वाले नली में सूजन और बलगम को कम करके काम करती हैं, जिससे सिम्पटम्स में सुधार होता है और कंडीशन को नियंत्रित किया जाता है।

हालांकि ड्रग्स की हाई कीमत और इसके साइड इफेक्ट्स चिंता के कारण अब भी हैं। दूसरी ओर नेचुरोपैथी आधारित ट्रीटमेंट बिना ड्रग्स के इस रोग को ठीक करता है जोकि बहुत ही सेफ और लम्बे समय के लिए ठीक होता है।

अस्थमा को ठीक करने में नेचुरोपैथी का योगदान (Contribution of Naturopathy)

नेचुरोपैथी किसी कंडीशन का ट्रीटमेंट और मैनेज कम्पार्टमेंट की बजाय होलिस्टिक है। जहाँ मॉडर्न मेडिसिन सिम्पटम्स को कम करके इलाज करती हैं वहीं नेचुरोपैथी रोग के कारण को खत्म करने और रोग की इंटेंसिटी को कम करने का काम करती है।

नेचुरोपैथी में थेराप्यूटिक तीन फेज में होती है- एलीमिनेटिव फेज,सूथिंग फेज,कंस्ट्रक्टिव फेज

एलीमिनेटिव फेज(Eliminative phase)

एलीमिनेटिव फेज, इस फेज में बॉडी की क्लींजिंग और टोक्सिन को कम करने में फोकस होता है।

सूथिंग फेज(Soothing Phase)

सूथिंग फेज में शरीर का कायाकल्प और आवश्यक पोषण की आपूर्ति होती है।

कंस्ट्रक्टिव फेज(Constructive phase)

कंस्ट्रक्टिव फेज में बॉडी की मेटाबॉलिक एक्टिविटी को रेगुलेट किया जाता है।

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नेचुरोक्योर थेरेपी का तरीका(Method of natural therapy therapy)

ट्रीटमेंट  प्रक्रिया को तीन मेडिकल टर्म में विभाजित किया गया था - नेचर क्योर, डाइट थेरेपी और योग थेरेपी।

नेचर क्योर

नेचर क्योर थेरेपी में दिन में एक या दो बार 30 मिनट से एक घंटे तक चेस्ट पैक मरीज की कंडीशन के हिसाब से लगाये जाते हैं। इसके बाद पैर को गर्म और आर्म बाथ, ऊपरी पीठ और छाती की थोड़ी मालिश, अस्थमा बाथ, ऑक्सीजन बाथ, स्टीम और सौना बाथ, एनीमा, स्टीम इन्हेलेशन और ड्रेनेज थेरेपी की जाती है।

asthma lungs

डाइट थेरेपी

डाइट थेरेपी के तहत अस्थमा  रोगियों को पोषण से भरपूर कैल्शियम, गैर-बलगम और नॉन एसिड जेनेरिक फ़ूड के साथ-साथ जड़ी-बूटियाँ जैसे तुलसी, पुदीना चाय आदि और बहुत सारा पानी पीने को कहा जाता है।

जो भी फ़ूड कफ को बढ़ाते हैं और एलर्जी को पैदा करते हैं ऐसे फ़ूड को नहीं खाना चाहिए। सामान्य अस्थमा रोगियों के ऑब्जर्वेशन से यह भी पता चला कि पशुयों के दूध भी अस्थमा को बढ़ाते हैं। इन दूधों के बजाय सोया दूध पीना चाहिए।

योग थेरेपी

तीन हफ्ते के कार्यक्रम में योग क्रिया, योगासन, प्राणायाम और योगनिद्रा प्रथाओं की गंभीरता में क्रमिक उन्नयन उपचार दृष्टिकोण का तीसरा स्तंभ था।

नेचुरोपैथी से इलाज कितना कारगर है

इस ट्रीटमेंट से रोगियों में लंबे समय तक प्रभाव रहता है।  हमारे देश में अस्थमा के बहुत ज्यादा केस है। मॉडर्न मेडिसिन अस्थमा जैसे रोगों का इलाज करने में असफल रही है।

मॉडर्न मेडिसिन का फोकस बिना रोग की जड़ को जाने मुख्यता सिम्पटम्स को कम करके इलाज किया जाता है। वहीं दूसरी ओर नेचुरोपैथी किसी कंडीशन का ट्रीटमेंट और मैनेज कम्पार्टमेंट की बजाय होलिस्टिक है।

जिंदल नेचरक्योर इंस्टिट्यूट के डेप्युटी चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ एच.पी. भारती से बातचीत पर आधारित।

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