
कोरोना वायरस इस समय दुनिया के लिए सबसे बड़ी चिंता बना हुआ है। दुनियाभर में संक्रमितों की संख्या लगभग 80 लाख तक पहुंच गई है। मरने वालों का आंकड़ा 4 लाख 35 हजार से आगे निकल गया है। पिछले 6 महीने में अलग-अलग देशों से दर्दनाक तस्वीरें और वीडियोज सामने आते रहे हैं। अब लगभग वही स्थिति भारत में है। 3 लाख 30 हजार से ज्यादा संक्रमित लोगों के साथ भारत में इस वायरस के कारण लगभग 9500 लोगों की जान जा चुकी है।
कोरोना वायरस खतरनाक जरूर है, लेकिन सभी के लिए नहीं। ऐसे बहुत सारे संक्रमित लोग भी हैं, जिन्हें कोई लक्षण या तकलीफ नहीं महसूस हो रही है, कुछ को बहुत सामान्य समस्याएं महसूस हो रही हैं, तो कुछ की स्थिति थोड़े समय में बहुत ज्यादा बिगड़ जा रही है। इटली के University of Florence के वैज्ञानिकों ने स्टडी के आधार पर कोरोना वायरस संक्रमण की 3 स्टेज बताई हैं। इस स्टडी को Physiological Reviews नामक जर्नल में छापा गया है। ये 3 स्टेज शरीर में कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति के आधार पर बताई गई हैं। जानें तीनों स्टेजेज में किस तरह के इलाज की पड़ती है जरूरत।
कैसे फैलता है कोरोना वायरस?
जब कोई संक्रमित व्यक्ति छींकता, खांसता या बात करता है, तो उसके मुंह से लार की बूंदें निकलती हैं। इन लार की बूंदों में ही कोरोना वायरस मौजूद होता है। कोई स्वस्थ व्यक्ति अगर संक्रमित व्यक्ति के बहुत नजदीक जाता है, तो उसके मुंह से निकलने वाली बूंदें सांस के जरिए स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं। संक्रमण फैलने का दूसरा तरीका यह है कि संक्रमित व्यक्ति जब छींके, खांसे या बोले तो उसके सामने रखी वस्तु या जगह पर वायरस गिर जाए या फिर उसके हाथ में रह जाए, तो ऐसी वस्तु को छूने से भी वायरस फैल सकता है।
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फेज 1 (इंफेक्शन की शुरुआत)
वैज्ञानिकों ने बताया कि फेज 1 इंफेक्शन में वायरस संक्रमित व्यक्ति के शरीर में जाकर अपनी संख्या को बढ़ाता है। जैसे-जैसे वायरस की संख्या बढ़ती जाती है, कुछ लोगों को हल्के-फुल्के लक्षण दिख सकते हैं, जिनमें गले में खराश, थकान और बुखार जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कुछ लोग इस स्टेज पर इंफेक्शन को सामान्य फ्लू या जुकाम भी समझ सकते हैं।
इलाज- सरकारी निर्देशों के अनुसार इस फेज में आने वाले संक्रमित मरीजों को देखरेख, जरूरी सुविधाएं, आइसोलेशन, कुछ दवाओं के द्वारा घर पर ही ठीक किया जा सकता है। लेकिन डॉक्टर के संपर्क में रहना जरूरी है, ताकि स्थिति बिगड़ने पर मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जा सके। ऐसे मरीजों की संख्या ज्यादा है, जिन्हें ये संक्रमण पहली स्टेज में ही प्रभावित करता है, खासकर युवा और स्वस्थ लोगों के वायरस की चपेट में आने के बाद स्टेज-1 में ही ठीक हो जाने की संभावना ज्यादा है।
फेज 2 (इंफेक्शन का फेफड़ों तक पहुंचना)
वैज्ञानिकों के अनुसार दूसरी स्टेज में ये वायरस फेफड़ों तक पहुंच सकता है, इसलिए इसे पल्मोनरी फेज कहते हैं। इस चरण में वायरस के इंफेक्शन के कारण इम्यून सिस्टम काफी हद तक प्रभावित हो चुका होता है और धीरे-धीरे रेस्पिरेटरी इंफेक्शन की शुरूआत होने लगती है। इस स्टेज में व्यक्ति को लगातार खांसी की समस्या, सांस लेने में तकलीफ और शरीर में ऑक्सीजन की कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि कुछ मरीजों में खून के थक्के जमने (ब्लड क्लॉटिंग) की समस्या शुरू हो जाती है।
इलाज- इस फेज में व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है। वहां दवाओं और इलाज के साथ-साथ ऑक्सीजन सप्लाई वाले बेड की जरूरत पड़ती है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए ये जरूरी है।
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फेज 3 (कोरोना वायरस का चरम)
तीसरी स्टेज में कोरोना वायरस का संक्रमण अपनी चरम स्थिति तक पहुंच जाता है। इसे हाइपर-इंफ्लेमेट्री फेज (Hyperinflammatory Phase) कहा जाता है। इस स्टेज में व्यक्ति का इम्यून सिस्टम हाइपर एक्टिव हो जाता है और व्यक्ति के हृदय (हार्ट), किडनी और दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचाने लगता है। इस स्टेज पर साइटोकाइन स्टॉर्म (cytokine storm) होता है, यानी शरीर अपनी ही टिशूज को मारने लगता है।
इलाज- इस स्टेज में व्यक्ति के इलाज के लिए एक्सपर्ट की सलाह, देखरेख में इलाज और कई वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। आमतौर पर ऐसी गंभीर स्थिति में या तो वो लोग पहुंचते हैं, जिनकी उम्र 60 साल से ज्यादा है, या फिर वो लोग पहुंचते हैं, जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी का शिकार हैं।
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