How Parents Should Respond To A Child Who Is Lying: अपनी गलतियों को छुपाने के लिए और डांट से बचने के लिए बच्चे अक्सर झूठ बोलते हैं। खासकर छोटी उम्र में बच्चों में झूठ बोलने की आदत आसानी से आ सकती हैं, क्योंकि छोटी-छोटी गलतियों पर डांट या सजा पाने से बचने के लिए वे अक्सर अपने माता-पिता से झुठ बोलने लगते हैं। इतना ही नहीं, धीरे-धीरे ये आदत इतनी बढ़ जाती है कि बच्चे हर बात में झुठ बोलने की आदत अपना लेते हैं, जो उनके भविष्य के लिए भी गलत होती है। लेकिन बच्चो के झूठ बोलने की आदत छुड़ाने के लिए जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों का झूठ सामने आने के बाद सही तरह से उनसे निपट पाएं। ऐसे में आइए पेरेंटिंग कोच रिद्धि देवराह से जानते हैं कि जब आपका बच्चा झूठ बोलता है तो सजा देने के बजाए आपको मामले को कैसे संभालना चाहिए, ताकि बच्चे की झूठ बोलने की आदत छुट सके।
बच्चों को झूठ नहीं बोलना कैसे सिखाएं?
1. सहानुभूति से शुरू करें
जब आपका बच्चा आपसे झूठ बोले और आपको पता हो कि वो सच नहीं बोल रहा है तो उन्हें डांटने या चिल्लाने के स्थान पर उनसे आराम से बात करें। आप इनसे यह कह सकते हैं कि “मैं समझता हूं कि कभी-कभी सच बोलना मुश्किल हो सकता है, लेकिन ईमानदार होना हम दोनों के लिए जरूरी है।”
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2. गलतियों को सामान्य बनाएं
बच्चे मासूम होते हैं, ऐसे में उनकी गलतियों को बहुत बड़ा बनाने के स्थान पर आप उन्हें सामान्य रखने की ही कोशिश करें। उन्हें बताए कि गलतियां, सीखने का एक हिस्सा हैं। ऐसे आप उन्हें यह कह सकते हैं कि गलतियां हर किसी से होती है, लेकिन उन गलतियों को दोहराए बिना आप उनसे कुछ सीखने की कोशिश करें। ताकि आपको झूठ न बोलना पड़े।
3. विश्वास बनाए रखें
बच्चों का झूठ पकड़े जाने पर उन्हें सजा देने या डांटने के बजाए समझदारी से समझाएं। आप उन्हें यह विश्वास दिलाए कि गलतियां होना आम है, लेकिन उन गलतियों को मान लेना जरूरी है। ऐसा करके आप उनके ऊपर विश्वास बनाए रखने की कोशिश करें, ताकि भविष्य में वे अपनी गलतियां दोहराएं नहीं, जिसके कारण उन्हें दोबारा झूठ बोलना पड़े।
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4. उनका साथ दें
बिना किसी शर्त के उनका साथ देने और सही रास्ता दिखाने की कोशिश करें। ऐसे में आप उनसे यह कहने की कोशिश करें कि चाहे कुछ भी हो, मैं आपके साथ हूं, आपकी मदद करने और आपको हमेशा सही रास्ता दिखाने के लिए।
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निष्कर्ष
बच्चों का झूठ पकड़े जाने पर आप उन्हें खौफ या डर से समझाने के स्थान पर प्यार के साथ भी समझा सकते हैं। ऐसा करने से न सिर्फ वे भविष्य में अपनी गलतियों को आसानी से स्वीकार कर पाएंगे, बल्कि सही-गलत में फर्क भी समझ पाएंगें।
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