जापानी इंफेलाइटिस एशिया में मस्तिष्क ज्वर का प्रमुख कारण है। हालांकि इस बुखार के कम तीव्र मामलों में किसी अन्य बुखार की तरह की सिरदर्द होता है। लेकिन इसका प्रभाव बढ़ने पर मरीज बेहोश हो जाता है, गर्दन की अकड़न, कांपना, लकवा जैसी परेशानियां भी पैदा हो जाती है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार इस बीमारी में 20 से 30 प्रतिशत मरीज अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।
यहां तक कि इस बीमारी के इलाज के बावजूद तंत्रिका तंत्र स्थायी रूप से खराब हो जाता है। इसका असर सबसे अधिक बच्चों में देखने को मिलता है और करीब 30 से 50 प्रतिशत बच्चे बीमारी के उबरने के बाद चलने-फिरने में परेशानी होती है और वे संज्ञानात्मक विकलांगता से पीड़ित हो जाते हैं।
जापानी इंफेलाइटिस यानी जेई बीमारी विषमय वायरस से पैदा होता है। मणिपुर के बाद साल 2012 में लगभग दो दशक बाद उड़ीसा में यह वायरस लौट आया और करीब 272 लोग इसके शिकार बने, जिनमें से 24 लोगों की मौत हो गई। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) के निदेशक ए.सी. धारीवाल का कहना है, “जेई का वायरस मुख्य रूप से धान के खेतों में पनपता है या फिर ये नए ठिकाने भी ढूंढ़ लेते हैं. इस प्रजाति के कई उपसमूह यमुना नदी के आसपास भी पनपते हैं, जहां वे लोगों को अपना शिकार बनाते हैं।”
मार्च 2016 में इंडियास्पेंड ने राष्ट्रीय वेक्टरजनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के बजट में 3 फीसदी की कटौती करने की खबर दी थी। इस कार्यक्रम के अंतर्गत मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और जेई, कालाजार और फीलपांव रोग के निदान पर खर्च किया जाता है। साल 2011-12 में जहां इस कार्यक्रम पर 482 करोड़ रुपये खर्च किए गए वहीं, साल 2015-16 में इसके बजट में कटौती कर इस मद में 463 करोड़ आवंटित किए गए।
बाद में इस बीमारी से मरनेवालों की संख्या में 210 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 181 लोगों की मौत हुई। यह बीमारी पहली बार जापान में 1871 में सामने आई थी, इसीलिए इसका नाम जापानी इंफेलाइटिस रखा गया है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के सहायक एसोसिएट प्रोफेसर तथा कम्यूनिकेवल डिजिज के सीनियर हेल्थ स्पेशलिस्ट व शोध प्रमुख मनीष कक्कड़ का कहना है, “हमने अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश के जिले कुशीनगर में इस बीमारी के 626 मामले 2012 में सामने आए, जिसमें राज्य सरकार ने 139 मामलों की पुष्टि की।”
वही, 2011 में एक अध्ययन में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन को मिली जानकारी के मुताबिक दुनिया भर में जेई के मामलों में 10 गुणा की बढ़ोतरी देखी गई थी। 2012 के एक अध्ययन के मुताबिक, यह रोग बच्चों में ज्यादा पाया जाता है और 3 से 15 साल के उम्र के बच्चों को यह बीमारी होने की संभावना 5 से 10 गुना ज्यादा होती है।
इस बीमारी से बचने में टीकाकरण काफी प्रभावी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2006 में प्रभावित क्षेत्रों में टीकाकरण अभियान चलाया था. वही, असम, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में प्रभावित क्षेत्रों में वयस्कों में भी टीकाकण अभियान चलाया गया।
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