शिशु की देखभाल करना बहुत जरूरी भी होता है और बहुत मुश्किल भी होता है। जन्म के 1 से 28 दिनों में सभी शिशुओं को अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है और यह देखभाल ही बच्चे के संपूर्ण स्वास्थ्य निर्धारित करती है। लेकिन जो बच्चे जन्म के समय कमज़ोर होते हैं, उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है। प्रसव के बाद मां की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, क्योंकि उसे नयी जिम्मेदारी मिल जाती है। घर में आये इस नये मेहमान की जिम्मेदारी आसान काम नहीं है, इसके लिए जानकारी के साथ-साथ विशेष देखभाल की भी जरूरत होती है। नवजात का शरीर बहुत नाजुक होता है इसलिए कोई भी गलती उसे अस्वस्थ कर सकती है। आज हम आपको शिशु की देखभाल करने के कुछ आसान तरीके बता रहे हैं।
नवजात देखभाल महत्वपूर्ण क्यों है?
सभी नवजात शिशुओं को विशेष देखभाल की जरूरत है, चाहे वह स्वस्थ हो या अस्वस्थ। हर मां को अपने बच्चे को स्तनपान ज़रूर कराना चाहिये क्योकि एक नवजात शिशु के लिए यह पोषक तत्वों का सबसे अच्छा स्रोत है, जो बच्चे के विकास में मदद करता है। नवजात देखभाल का यह पहला पहलू है। यह बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए और भविष्य में सभी संक्रमणों से लड़ने में सहायक होता है। स्तनपान के विभिन्न फायदे हैं। वो माताओं जो पहले से ही किसी बीमारी से पीड़ित है मानती है और यह मानती हैं कि उन्हें अपने बच्चे को स्तनपान नही कराना चाहिये, यह एक पूरी तरह से गलत अवधारणा है।
कुछ मामलों में, माता-पिता को नव प्रसव देखभाल के दौरान कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन यह बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। एक शिशु के माँ और पिता को अपने नवजात देखभाल से संबंधित सभी संदेह स्पष्ट करने चाहिए। नवजात देखभाल के दौरान एक मां को भी पौष्टिक भोजन लेने की सलाह दी जाती है, जो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है। नवजात देखभाल में एक माँ को बच्चे की आवश्यकता पर ध्यान देना पडेगा। साथ ही एक मां को ये भी पता होना चाहिये कि किन परिस्थितियों में उसको तुरंत एक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से संपर्क करना चाहिए।
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शिशु के दांत साफ करने के तरीके
- जब तक बच्ची अपनी इच्छा से पानी को मुंह से बाहर निकालना ना सीखे टूथपेस्ट का इस्तसमाल ना करें।
- जब तक शिशु का दांत नहीं निकल जाता उसके मसूड़ों को साफ काटन के कपड़े से पोछ कर साफ करें।
- लेकिन जैसे ही शिशु का पहला दांत निकले, बच्ची को गुनगुने पानी से ब्रश कराएं ।
इन तरीकों को अपनाएं
- बच्चे का रोना बुरा नहीं होता है। बच्चा जब रोता है तो मां अक्सर यह समझती है कि उसका बच्चा किसी तकलीफ में है, लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता है। रोना बच्चे के लिए एक अच्छा अभ्यास भी है। वैसे आमतौर पर यही माना जाता है कि बच्चे पेट में तकलीफ होने पर रोते हैं। बच्चों को जब भूख लगती है तब भी वे रोते हैं।
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- नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है। यह बच्चे का पहला आहार होता है और बच्चे को कई बीमारियों से बचाता भी है, यदि बच्चे ने मां का दूध नहीं पिया तो भविष्य में भी उसे कई प्रकार के बीमारियों के होने की संभावना बनी रहती है। इसलिए हर मां को चाहिए कि वह अपने नवजात को स्तनपान करायें। छह महीने की आयु तक तो बच्चे को सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। स्तनपान कराने से मां भी ब्रेस्ट कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से भी बचती है।
- बच्चे की मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए उनकी मालिश जरूर करें। लेकिन बच्चे की मालिश सावधानीपूर्ण करनी चाहिए, मालिश करते समय जोर न लगायें। बच्चे की मालिश हमेशा हल्के हाथों से कीजिए। जोर लगाकर मालिश करने से बच्चे को परेशानी हो सकती है। मालिश के लिए जैतून का तेल, बादाम का तेल आदि का इस्तेमाल करना अच्छा रहेगा।
- नवजात को कपड़े पहनाते वक्त ध्यान रखना चाहिए, उनको कॉटन के ढीले कपड़े पहनाइए। बच्चे का शरीर पूरी तरह ढंका होना चाहिए, ताकि उसे ठंड न लगे। गर्मी के मौसम में बच्चे को ऊनी कपड़े पहनाने की आवश्यकता नहीं होती है। बच्चों के कपड़ों को गर्म पानी से साफ कीजिए और उन्हें अलग से सुखाइए जिससे कि वे संक्रमित न हों।
- बच्चों के दांत निकलते वक्त उन्हे बहुत समस्या हो सकती है, इस समय बच्चे की रुचि खानपान में बिलकुल नहीं होती है और वह चिड़चिड़ा भी हो जाता है। सामान्यतया बच्चे के दांत 6 महीने बाद निकलना शुरू हो जाते हैं। इसके कारण बच्चे को दस्त और उल्टी की शिकायत भी हो सकती है।
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