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Khushkhabri With IVF: एग डोनर की मदद से 36वर्षीय नंदिनी वर्मा शादी के 5 साल बाद बनी मां, जानें उनका सफर

नंदिनी के एग्स कमजोर थे, जिससे उन्हें कंसीव करने में दिक्कत आ रही थी। लेकिन डोनर एग की मदद से उनका यह सपना पूरा हो सका। कैसे, जानें नंदिनी और कुशल की आइवीएफ जर्नी।
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Khushkhabri With IVF: एग डोनर की मदद से 36वर्षीय नंदिनी वर्मा शादी के 5 साल बाद बनी मां, जानें उनका सफर


Nandini Verma IVF Journey Who Got Pregnant Through Donated Eggs in Hindi: शादी को पांच साल हो चुके थे और अब तक 36 वर्षीय नंदिनी के घर का आंगन सूना था। अक्सर अपने नाते-रिश्तेदार उससे पूछा करते थे कि कब तक खुशखबरी दे रही हो। लोगों के उलाहने और तानों नंदिनी को अंदर तक झकझोर चुके। अब तो नंदिनी ने अपने पति कुशल के साथ दोस्तों के पास जाना भी छोड़ दिया था। दरअसल, नंदिनी की देर से शादी होने के कारण यह डर हमेशा सताता रहा कि कहीं उन्हें मां बनने में दिक्कत न आए। यही कारण था कि वह शादी के कुछ समय बाद ही कंसीव कर लेना चाहती थी। लेकिन, उस समय कुशल इन सबके तैयार नहीं थे।

ऑनलीमायहेल्थ ने Khushkhabri with IVF नाम से एक स्पेशल सीरीज चलाई है, जिसमें आपको आईवीएफ से जुड़े अलग-अलग पहलू पर बात की जाएगी। इस सीरीज हम आपको बता रहे हैं कि क्या डोनर एग की मदद से आईवीएफ हो सकता है? इस बारे में हमने नंदिनी और कुशल की रियल लाइफ स्टोरी की जर्नी आपको बता रहे हैं। इस बारे में हमने वृंदावन और नई दिल्ली स्थित मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की चिकित्सा निदेशक, स्त्री रोग और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शोभा गुप्ता से। अगर आप भी IVF के जरिये प्रेग्नेंसी प्लान करने की सोच रहे हैं, तो इस स्टोरी से आपको मदद मिल सकती है।

समस्या का कब पता चला

Nandini Verma IVF Journey  1

लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं हुआ जब तक उन्होंने बेबी प्लान किया, तब तक काफी देर हो चुकी थी। दरअसल, बेबी प्लान करने के दौरान नंदिनी को अहसास था कि उनकी बढ़ती उम्र प्रेग्नेंसी के आड़े आ सकती है। इसके बावजूद, कुछ समय तक वह और कुशल मिलकर नेचुरली कंसीव करने की कोशिश करते रहे। लेकिन, जब सफलता हाथ नहीं आई, तो वे लोकल डॉक्टर के पास गए। वहां जाकर उन्हें पता चला कि उन्हें यूट्रस से जुड़ी कोई परेशानी नहीं है। न ही उनके रिप्रोडक्टिव ऑर्गन खराब है। इसी क्रम में, कुशल ने भी कुछ टेस्ट करवाए। जबकि, वह बिल्कुल हेल्दी निकले। अंततः नंदिनी को पता चला दिक्कत उन्हीं में है।

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क्या थी समस्या

postpartum recovery period

नंदिनी को डॉक्टर ने बताया कि बढ़ती उम्र के कारण उनके एग्स कमजोर हो चुके हैं, जिस वजह स्पर्म फर्टिलाइज प्रक्रिया तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। इस खबर ने नंदिनी को मानसिक रूप से परेशान कर दिया। नंदिनी और कुशल को लगा कि अब वे जिंदगी में कभी भी पैरेंट्स बनने का सुख नहीं भोग पाएंगे। इस बात ने उन्हें मेंटली काफी कमजोर कर दिया था। नंदिनी ने अपनी तसल्ली के लिए एक नहीं, बल्कि कई अन्य डॉक्टरों को भी कंसल्ट किया। उन्हें यह उम्मीद थी कि शायद कहीं से उन्हें खुशखबरी मिल जाए। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। हालांकि, उन्हीं दिनों किसी ने उन्हें आईवीएफ करवाने की सलाह दी।

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कब मिले आईवीएफ एक्सपर्ट से

Nandini Verma IVF Journey 03

नंदिनी और कुशल आईवीएफ प्रक्रिया पूरी तरह से अंदान थे। उन्हें नहीं पता था कि यह प्रक्रिया है और यह किस तरह काम करती है। उन्हें यह शक भी घेर रहा था कि नंदिनी के कमजोर एग्स होने के कारण क्या आईवीएफ उन पर काम कर सकेगा? इस बारे में जब उन्हांने अपने एक दोस्त से जिक्र किया, तो किसी ने उन्हें डॉ. शोभा गुप्ता से मिलने की सलाह दी, जो कि खुद एक आईवीएफ एक्सपर्ट हैं। नंदिनी और कुशल बहुत उम्मीद के साथ अपने दोस्त द्वारा बताए गए क्लिनिक के एड्रेस पर पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात डॉक्टर से हुई।

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मिला डोनर एग

Nandini Verma IVF Journey  1

डॉ. शोभा से मुलाकात के दौरान नंदिनी और कुशल ने अपनी सभी पुरानी मेडिकल रिपोर्ट्स शेयर की और बताया कि उन्हें किस तरह की दिक्कत है। बातचीत के दौरान नंदिनी को पता चला कि एग्स कमजोर होने के बावजूद, वह आईवीएफ प्रक्रिया की मदद से कंसीव कर सकती हैं। लेकिन, नंदिनी को बार-बार यही बात घेर रही थी कि आखिर अपने कमजोर एग्स के साथ कंसीव करना किस तरह संभव हो सकता है? तब डॉ. शोभा ने बताया कि यह कोई मुश्किल नहीं है। आज के मॉर्डन वर्ल्ड में डोनर एग की मदद से भी इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। इस सूचना ने तो मानो नंदिनी को खुशी से भर दिया। वह नहीं जानती थी कि एग डोनेशन क्या है? यह किस तरह का काम करता है? लेकिन, उन्होंने डॉ. शोभा पर भरोसा किया और हर तरह की प्रक्रिया के लिए तैयार हो गई।

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शुरू हई प्रक्रिया

आईवीएफ की तरह प्रक्रिया जटिलताओं से भरी हुई है। इसी तरह, डोनर एग की प्रक्रिया की भी अनदेखी नहीं जा सकता है। लेकिन, डोनर एग की मदद से उन्हें जल्द ही एग मिल गया। हालांकि, डॉक्टर ने उन्हें आगाह कर दिया था कि यह प्रक्रिया उतनी आसान नहीं है, जितनी कि दिखती है। यह जटिलताओं से भरी है। इसके फेल होने की आशंका भी बनी रहती है। यही कारण है कि उन्होंने ऐसे डोनर के एग लिए, जो फर्टाइल हैं और कम उम्र की हैं। इसके अलावा, उनकी मेडिकल हिस्ट्री, जेनेटिक स्क्रीनिंग आदि भी देखे गए। एग प्राप्त करने के लिए डोनर को छोटे से सर्जिकल प्रोसीजर से गुजरना पड़ता है। इससे नंदिनी के कंसीव करने की संभावना दर बढ़ गई। इसके बाद डॉक्टर्स ने एग्स को कुशल के स्पर्म के साथ फर्टिलाइज किया। एंब्रियो तैयार होने पर उसे नंदिनी के गर्भाशय में उसे डाल दिया। अब उन्हें उस दिन का इंतजार था जब नंदिनी का प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजिटिव आएगा। जल्द ही वह दिन भी आ गया। इसके बाद सभी चिकित्सकीय प्रोसीजर को फॉलो किया।

घर आई नन्हीं खुशी

जल्दी ही 9 महीने की प्रेग्नेंसी के बाद नंदिनी के घर एक प्यारे से बेटे का जन्म हुआ। सालों की मेहतन और इंतजार के बाद जब नंदिनी ने पहली बार अपनी संतान को गोद में उठाया, तो वे अपने सारे गम भूल गईं। कुशल और नंदिनी का कहना है कि डॉक्टर की मदद से उनका परिवार पूरा हो सका और उनके घर में नन्हीं किलकिलारियां गूंजर सकीं।

All Image Credit: Freepik

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