मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है, जिस पर आज भी लोग बात करने से कतराते हैं। बहुत सारे लोग आज भी मानसिक रोगों को भूत-प्रेत या दैवी शक्ति का असर मान लेते हैं, जबकि ये पूरी तरह मेडिकलकंडीशन हैं। ऐसे में WHO की नई रिपोर्ट हमें आईना दिखाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में करीब एक अरब से ज्यादा लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनमें सबसे कॉमन समस्याएं स्ट्रेस, एंग्जायटी और डिप्रेशन हैं। यही नहीं, इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि दुनिया में होने वाली हर सौ मौतों में से एक मौत आत्महत्या से होती है।
रिपोर्ट में आए चौंकाने वाले आंकड़े
WHO की इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में इस समय जितनी भी मौतें होती हैं, उनमें से हर 100 में एक 1 व्यक्ति आत्महत्या से मर रहा है। युवाओं (15 से 29 साल) में आत्महत्या मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। साल 2021 में दुनियाभर में करीब 7.27 लाख लोगों की मौत आत्महत्या से हुई। यह एक बहुत दुखद स्थिति है। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 2030 तक आत्महत्या के मामलों में एक-तिहाई (33%) कमी लाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन अभी तक जो प्रगति हुई है, उस हिसाब से 2030 तक केवल 12% ही कमी आ पाएगी। ये अंतर बताता है कि इस दिशा में हमारे प्रयास कितने कमजोर हैं।
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मनोवैज्ञानिक आत्महत्या का कारण क्या मानते हैं?
Bengaluru के Gleneagles BGS Hospital Kengeri की Psychologist Sumalatha Vasudeva कहती हैं, “डिप्रेशन सबसे आम मानसिक समस्याओं में से एक है और यह आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है। अक्सर देखा जाता है कि डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों में लगातार उदासी, निराशा और बेकार होने का अहसास बना रहता है। ये भावनाएं व्यक्ति के तनाव झेलने और सामान्य जीवन जीने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। जब व्यक्ति अपनी पसंदीदा चीजों में भी रुचि खो देता है और उसे हर ओर अंधेरा ही दिखाई देता है, तो आत्महत्या जैसे विचार और ज्यादा बढ़ जाते हैं। डिप्रेशन इंसान की सोचने-समझने की क्षमता को इस हद तक कम कर देता है कि उसे लगता है कि आत्महत्या ही उसके दर्द से छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता है।”
इसका मतलब साफ है कि अगर डिप्रेशन के शुरुआती लक्षणों को समझा और समय पर इलाज शुरू किया जाए, तो आत्महत्या तक नौबत आने से रोका जा सकता है।
मानसिक रूप से परेशान होने पर क्या करना चाहिए?
सुमालता वासुदेवा कहती हैं, “मानसिक बीमारियों और आत्महत्या के खतरे के बीच के रिश्ते को समझना बेहद जरूरी है, क्योंकि इसी से रोकथाम और इलाज की दिशा तय होती है। अगर हम समय पर मानसिक समस्या के संकेत पहचान लें और तुरंत किसी विशेषज्ञ की मदद लें, तो व्यक्ति अपनी स्थिति को बेहतर तरीके से संभाल सकता है और आत्महत्या का खतरा भी कम हो सकता है। इसके साथ ही जरूरी है कि हम एक ऐसा माहौल बनाएं जहां सहयोग मिले और मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बातचीत की जा सके। यही बातें इस गंभीर समस्या से निपटने और लोगों की भलाई बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।”
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समाज भी है आत्महत्या का जिम्मेदार
रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर देशों में मानसिक समस्याओं के इलाज की सुविधाएं बेहद कम हैं। यहां न पर्याप्त डॉक्टर हैं, न अस्पतालों में संसाधन हैं। ज्यादातर मामलों में मानसिक रोगी के इलाज की शुरुआत तब होती है, जब हालात बहुत बिगड़ चुके होते हैं। इसका एक बड़ा कारण मानसिक बीमारी को स्वीकार करने से जुड़ी सामाजिक शर्म भी है। ज्यादातर लोग अपने करीबियों से ये कभी खुलकर कह नहीं पाते कि वो परेशान हैं। अगर वो कुछ कहते भी हैं, तो परिवार अक्सर इसे “दिल मजबूत करो” या “सोच बदलो” जैसी बातों से टाल देता है। नतीजा ये होता है कि लाखों लोग बिना मदद लिए चुपचाप लड़ते रहते हैं।
ध्यान रखें एक अरब लोग मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं और हर सौ मौत में एक आत्महत्या हो रही है- ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि हमारी आंखें खोलने वाला सच है। अगर आपके किसी दोस्त, सहकर्मी या परिवार के सदस्य में ऐसे संकेत दिखें, तो चुप मत रहें। उनसे बात करें और उन्हें मदद लेने के लिए प्रेरित करें। WHO की रिपोर्ट हमें यही याद दिलाती है कि इन मामलों में खामोशी सबसे बड़ी दुश्मन है। अगर हम सुनना शुरू करें, सवाल पूछना शुरू करें और मदद को आसान बनाएं, तो शायद बहुत सी जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।