20 लाख से ज्यादा पॉजिटिव मामले और डेढ़ लाख मौतों के साथ कोरोनोवायरस महामारी दुनिया भर में कहर बरपा रही है। डर और घबराहट की भावना पैदा करने के अलावा, कोरोना ने हमारे दैनिक जीवन को हिला कर रख दिया है। बड़ी तेजी से फैलने वाले इस नोवल कोरोनावायरस को रोकने के लिए अंतिम उपाय के रूप में भारत सहित अधिकांश देशों ने अपनी-अपनी सीमाओं को बंद कर दिया है और अपने-अपने देशों में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया हुआ है। सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन जैसे सुरक्षात्मक उपायों से महामारी पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है खासकर तब तक, जब तक कि कोई प्रभावी समाधान नहीं मिल जाता है। इसका मतलब यह भी है कि हम तब तक अपने सामान्य जीवन में वापस नहीं जा सकते हैं। देश-दुनिया में लॉकडाउन होने के कारण लोगों के काम के अलावा, दुनिया भर के स्कूल-कॉलेजों को बंद कर दिया गया है। स्कूल बंद होने और घर से बाहर निकलने की मनाही ने बच्चों को खासा प्रभावित किया है। जानें कैसे बच्चें हो रहे प्रभावित।
कैसे कोरोनावायरस बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर डाल रहा प्रभाव
ऐसे वक्त में जब लाखों लोग इस चुनौतीपूर्ण समय के दौरान कई चीजों से संघर्ष कर रहे हैं वहीं दुनिया भर के समुदायों के लिए भी एक चुनौती धीरे-धीरे चुपचाप लगातार बढ़ रही हैं और वह ये है कि बच्चों पर COVID-19 के प्रकोप के प्रभाव पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि तत्काल उपायों के बिना दुनिया भर में बच्चों के लिए स्थिति खराब हो सकती है। यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) के अनुसार, 188 देशों के स्कूल बंद होने के कारण 1.5 अरब से अधिक बच्चे और युवा प्रभावित हैं। यह संख्या वैश्विक छात्र आबादी का लगभग 90 प्रतिशत है।
इसके अलावा, लॉकडाउन के परिणामस्वरूप परिवार और बच्चें अपने-अपने घरों के अंदर कैद है, ये उन बच्चों के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है, जो पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति से परेशान है। घर में बंद रहने से बच्चों में चिड़चिड़ापन और चिंता बढ़ रही है, जो आपस में टकराकर घर में तनाव और झगड़े का कारण बन रही है। जिसके कारण घरेलू हिंसा और दुर्वयहार के मामलों में वृद्धि हो रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परिवार काफी हद तक अपने घरों तक ही सीमित रहने के लिए मजबूर हैं।
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अध्ययन में सामने आई चौंकाने वाली बातें
ब्रिटेन में मानसिक बीमारी के इतिहास वाले 25 साल की उम्र तक के 2111 व्यक्तियों पर मानसिक स्वास्थ्य संस्था चैरिटी यंगमाइंड्स द्वारा एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में यह पाया गया कि 83 प्रतिशत लोग इस बात से सहमत थे कि महामारी ने उनकी मानसिक स्वास्थ्य स्थिति को प्रभावित किया है और इसे बदतर बना दिया है, जबकि 26 प्रतिशत ने बताया कि वे COVID-19 के प्रकोप के कारण आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे।
बढ़ रहा पढ़ाई का अंतर
वहीं बात करें एजुकेशन सेक्टर की तो भले ही स्कूल ऑनलाइन शिक्षा प्रदान कर इस अंतर को पाटने की पूरी कोशिश कर रहे हों, लेकिन सभी के पास आवश्यक उपकरणों या इंटरनेट कनेक्शन तक पहुंच नहीं है। नियमित कक्षा शिक्षा के अभाव में, बच्चों के लिए स्क्रीन समय निश्चित रूप से बढ़ गया है। यह उन्हें उन वेबसाइटों के लिए अनुपयोगी पहुंच के जोखिम में भी डालता है जो उनके लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसके साथ ही बच्चों पर साइबरबुलिंग का शिकार होने का भी खतरा मंडरा रहा है। यही कारण है कि कोरोनोवायरस का प्रकोप युवा दिमाग पर कितना प्रभाव डाल रहा है, इसे समझने के लिए और उसी के लिए तेजी से कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
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क्या कर सकते है हम
माता-पिता और अभिभावक के रूप में, यह महत्वपूर्ण हो गया है कि बच्चों और युवाओं के लिए एक दैनिक अध्ययन कार्यक्रम निर्धारित किया जाए। यह समझा जा सकता है कि स्कूल के पाठ्यक्रम और कक्षाओं को घर पर तैयार नहीं कराया जा सकता है लेकिन प्राथमिकता होनी चाहिए कि उपलब्ध संसाधनों के साथ शिक्षा जारी रखी जा सके। रोज़ाना परिवार के साथ संवाद और विचार-विमर्श के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे ये जानने में मदद मिलेगी कि घर के छोटे सदस्य क्या कर रहे हैं। इस बात को ध्यान रखना जरूरी है कि बहुत सारे बच्चे पहले से ही लिंग आधारित हिंसा, शोषण और यहां तक कि दुर्व्यवहार के जोखिम में हो सकते हैं और समाज के सबसे कमजोर वर्ग की रक्षा के लिए सरकार और वैश्विक समुदायों को एक साथ आने की जरूरत है।
सोर्स (टाइम्स ऑफ इंडिया)
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