कहीं आपके पेट दर्द का कारण इंफ्लेमेटरी बावल डिजीज तो नहीं

आईबीडी काफी दर्दनाक होता है और कई दफा तो यह बीमारी जानलेवा तक साबित होती है। आईबीडी के लक्षणों व कारणों के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ते हैं।
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कहीं आपके पेट दर्द का कारण इंफ्लेमेटरी बावल डिजीज तो नहीं

आईबीडी यानी इन्फ्लेमेटरी बावल डिजीज। इसका मतलब है आंतों से जुड़ी तमाम किस्म की समस्याएं। वास्तव में पाचनतंत्र जो कि मुंह, भोजन नलिका, पेट, छोटी आंतें और आंतों से मिलकर बनता है। आईबीडी होने का मतलब है कि इन तमाम भागों में किसी न किसी तरह की समस्या। इसकी वजह खाद्य पदार्थ, अपौष्टिक आहार आदि हैं। यह कहने की जरूरत नहीं है कि आईबीडी काफी दर्दनाक होता है और कई दफा तो यह बीमारी जानलेवा तक साबित होती है। मतलब साफ है कि यदि किसी व्यक्ति विशेष को आईबीडी  हो जाए तो उसे तुरंत अपना इलाज कराना चाहिए। यही नहीं सही उपचार और जीवनशैली में आवश्यक बदलाव भी करने चाहिए। सवाल उठता है कि आईबीडी के लक्षणों को कैसे जाना जाए? आइये इस सम्बंध में आगे पढ़ते हैं।

आईबीडी के प्रकार 

सामान्यतः आईबीडी के दो प्रकार हैं। अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन्स डिजीज। क्रोन्स डिजीज के तहत पाचनतंत्र के किसी भी हिस्से में जलन या तकलीफ हो सकती है। हालांकि यह ज्यादातर छोटी आंत के निचले हिस्से को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। जबकि अल्सरेटिव कोलाइटिस होने के दौरान बड़ी आंत में घाव होता है जिसके कारण बड़ी आंत में जलन हो सकती है।

आईबीडी की वजह 

आईबीडी की सटीक वजह बता पाना मुश्किल है। विशेषज्ञों की मानें तो यह बीमारी आनुवांशिक हो सकती है या फिर इम्यून सिस्टम से जुड़ी कोई समस्या। आनुवांशिक होने का मतलब है कि यदि आपके पारिवारिक इतिहास में आईबीडी है तो इसके होने की आशंक में इजाफ हो जाता है। यही कारण है कि वैज्ञानिक इसे आनुवांशिका बीमारी बताते हैं।

प्रतिरक्षी तंत्र से जुड़ी समस्या

आईबीडी को प्रतिरक्षीतंत्र से जुड़ी बीमारी भी बतायी जाती है। दरअसल प्रतिरक्षी तंत्र हमारे शरीर की तमाम किस्म की बीमारियों से बचाव करता है। ऐसे में यदि आईबीडी पाचनतंत्र में हो जाए तो इससे प्रतिरक्षी तंत्र का प्रभावित होना लाजिमी हो जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि किसी बीमारी या अन्य वायरस के शरीर में घुसने के दौरान प्रतिरक्षी तंत्र अति सजग और सचेत हो जाता है। ऐसे में यदि पाचनतंत्र कमजोर पड़ जाए तो इसमें घाव, जलन या सूजन जैसी परेशानियां घर करने लगती है। आईबीडी होने का कारण महज संक्रमण ही नहीं है। कई दफा प्रतिरक्षी तंत्र अपने ही सेल्स पर आक्रमण कर बैठती है। इसे आटोइम्यून रिस्पांस के नाम से जाना जाता है। आईबीडी कई बार संक्रमण के खत्म होने के बाद भी ठीक नहीं होती। मतलब यह कि यह एक घातक बीमारी है जिसके प्रति अलर्ट रहना अत्यंत जरूरी है। यह बीमारी कई दफा महीनों तक मरीज को परेशान करती है। तमाम अध्ययन इस बात की तस्दीक करते हैं कि लाखों लोग आईबीडी के मरीज हैं। इसके कुछ मुख्य रिस्क फैक्टर इस प्रकार हैं-

धूम्रपान

क्रोन्स डिजीज की मुख्य वजहों में से एक धूम्रपान है।  धूम्रपान इस हद तक परेशानी का सबब बनता है कि कई दफा यह आईबीडी के दर्द को बढ़ा देता है। यही नहीं क्रोन्स डिजीज के ठीक होने की जटिलता भी बढ़ जाती है। हालांकि अल्सरेटिव कोलाइटिस के मरीज इससे अलग होते हैं। सामान्यत अल्सरेटिव कोलाइटिस उन्हें प्रभावित करता है जो धूम्रपान नहीं करते या फिर उन्हंे जो धूम्रपान छोड़ चुके हैं।

आईबीडी से कौन प्रभावित होता है 

सामान्यतः आईबीडी से कोई भी प्रभावित हो सकता है। इसे किसी उम्र विशेष में नहीं बांधा जा सकता है। बावजूद इसके विशेषज्ञ इस बात का दावा करते हैं कि आईबीडी 35 साल से कम उम्र के लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है। इसके अलावा जैसा कि पहले ही जिक्र किया जा चुका है कि पारिवारिक इतिहास होने पर भी यह बीमारी होने का खतरा होता है। यही नहीं भौगोलिक क्षेत्र भी आईबीडी के लिए जिम्मेदार हैं। सामान्यतः यह बीमारी शहरी क्षेत्रों को तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रभावित करती है। इसकी वजह वहां की जीवनशैली और खानपान है। असल में जो लोग वसायुक्त आहार का ज्यादा सेवन करते हैं, उन्हें आईबीडी होने का खतरा बना रहता है। बहरहाल आईबीडी का लिंगभेद से कोई लेनदेन नहीं है। यह पुरुष और महिला दोनों को ही समान रूप से प्रभावित करता है। लेकिन अल्सरेटिव कोलाइटिस पुरुषों को ज्यादा होता है जबकि क्रोन्स डिजीज महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलता है।

आईबीडी के लक्षण 

यूं तो इसके लक्षण व्यक्ति दर व्यक्ति निर्भर करता है। बावजूद इसके कुछ सामान्य लक्षण डायरिया होना, पेट खराब होना, पेट में दर्द होना, अल्सर से खून आना, वजन घटना, अनीमिया होना और बच्चों में विकास स्तर कम होना शामिल है। पाचनतंत्र के बाहरी लक्षण भी आईबीडी में देखने को मिलते हैं मसलन आंखें सूजना, जलन होना, त्वचा सम्बंधी समस्या होना, अर्थराइटिस होना आदि।

आईबीडी का ट्रीटमेंट घर में नहीं किया जा सकता है। इसके लिए बेहतर है कि सीधे चिकित्सक से ही संपर्क करें। वे आपके पारिवार इतिहास से लेकर मौजूद स्थिति पर चर्चा कर मरीज का इलाज करते हैं। इतना ही नहीं जरूरी हो तो ब्लड सैंपल आदि भी लिया जाता है।

 

 

Image Source-Getty

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