आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव, खानपान, नींद न आना और शारीरिक गतिविधियां न करने से जीवनशैली से जुड़े कई तरह के रोग हो जाते हैं। इसमें कोलेस्ट्रॉल अनियमित होना आम हो गया है। दरअसल, जब दिल की धमनियों में प्लाक या लिपिड जमा होने लगता है, तो हार्ट को ब्लड पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इससे दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में दिल की बीमारियां, मृत्यु का मुख्य कारण है। अगर काम करते समय या चलते समय सांस फूलने लगे, दिल की धड़कनें अनियमित हो जाए, थकान या चक्कर आने लगे, तो ये दिल की बीमारियां होने के लक्षण हैं। अगर समय रहते इन लक्षणों पर ध्यान न दिया जाए, तो हार्ट अटैक या स्ट्रोक आने का खतरा बढ़ जाता है। दिल की धमनियों के ब्लॉक होने पर अक्सर कार्डियोलॉजिस्ट एंजियोप्लास्टी की सलाह देते हैं। एंजियोप्लास्टी काफी हद तक सुरक्षित प्रक्रिया है, लेकिन कई बार जटिलताएं होने पर ये प्रक्रिया रोगी के लिए जानलेवा हो सकती है। इस बारे में हमने पुणे के मणिपाल अस्पातल के कार्डियोलोजी कंस्लटेंट डॉ. अक्षय काशिद से बात की।
एंजियोप्लास्टी क्या है?
एंजियोप्लास्टी तकनीक की मदद से धमनियों की ब्लॉकेज का इलाज किया जाता है। इससे हार्ट का ब्लड फ्लो वापस ठीक हो जाता है। एंजियोप्लास्टी में एक छोटी सी ट्यूब जिसे कैथेटर कहा जाता है, उसकी टिप पर बैलून लगाकर ब्लॉक धमनियों में डाला जाता है। बैलून को उस जगह पर लाकर उसकी हवा निकाल दी जाती है। इस प्रक्रिया से धमनियां चौड़ी हो जाती है और रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। धमनियों को खुला रखने और उसे दोबारा सिकुड़ने से बचाने के लिए एक छोटी सी ट्यूब (स्टेंट) को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। जैसे हर सर्जरी में कुछ न कुछ रिस्क या समस्याएं होती हैं, वैसे ही इस सर्जरी में भी कुछ रिस्क होते हैं।
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एंजियोप्लास्टी के दौरान गंभीर रिस्क
आमतौर पर कार्डियोलॉजिस्ट एंजियोप्लास्टी के दौरान इन रिस्क फैक्टर्स से बचने की कोशिश करते हैं। ये जटिलताएं इस प्रकार हैं -
ब्लीडिंग या चोट लगना - आमतौर पर कलाई या पेट व जांघ के बीच कैथेटर डाला जाता है, जिससे ब्लीडिंग या चोट लगने की सबसे ज्यादा संभावना होती है। ये एंजियोप्लास्टी का सबसे बड़ा रिस्क है। कई मामलों में ब्लीडिंग काफी ज्यादा गंभीर हो जाती है, इसके लिए सर्जन इस ओर खास ध्यान देते हैं। रेडियल आर्टरी प्रक्रिया में वैस्कुलर जटिलताएं कम होती है।
खून के थक्के बनना - एंजियोप्लास्टी के दौरान खून के थक्के बनना भी एक गंभीर रिस्क फैक्टर है। ये हार्ट अटैक या स्ट्रोक आने का कारण भी बन सकता है। इसलिए रोगियों की एंजियोप्लास्टी करने से पहले उन्हें खून पतला करने की दवाइयां दी जाती है, ताकि इस रिस्क फैक्टर को कम किया जा सके।
रेस्टेनोसिस - कुछ मामलों में देखा गया है कि स्टेंट डालने के बाद धमनी फिर से सिकुड़ जाती है। वैसे आजकल के स्टेंट से ये रिस्क कम हुआ है, लेकिन फिर भी ये स्थिति कई मामलों में देखने को मिलती है। जिन रोगियों को रेस्टेनोसिस होता है, उनकी दोबारा एंजियोप्लास्टी या फिर इसी तरह का कोई अन्य इलाज किया जाता है।
क्रोनोरी धमनी में आघात - कुछ मामलों में इस प्रक्रिया के दौरान धमनी घायल हो जाती है। इससे कई तरह की जटिलताएं आ जाती हैं। इसके अलावा एंजियोप्लास्टी में इस्तेमाल की जाने वाली कॉन्ट्रास्ट डाई (contrast dye) से भी रोगियों को एलर्जिक रिएक्शन हो जाता है। इससे जिन लोगों को किडनी की समस्या होती हैं, उनके गुर्दे फेल हो सकते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि एंजियोप्लास्टी ने दिल से जुड़ी बीमारियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए ये समझना भी जरूरी है कि कोई भी ऑपरेशन बिना रिस्क के नहीं हो सकता। किसी भी रोगी को एंजियोप्लास्टी कराने से पहले कॉर्डियोलोजिस्ट से सलाह लेनी चाहिए और जानना चाहिए कि क्या उसका शरीर एंजियोप्लास्टी के लिए सही है।
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प्रक्रिया के बाद रोगी का ध्यान
एंजियोप्लास्टी होने के बाद रोगियों को कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए।
- कोलेस्ट्रोल का स्तर नियंत्रित रखें।
- धूम्रपान न करें।
- शराब से दूरी बनाकर रखें।
- वजन को कंट्रोल में रखें।
- नियमित कसरत करें।
- संतुलित आहार लें।
- पूरी नींद लें।
इस तरह रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ आदतों को अपनाकर दिल से जुड़ी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। इसके साथ एंजियोप्लास्टी कराने से पहले हेल्थ से जुड़े सभी पहलुओं पर कार्डियोलोजिस्ट से जरूर बात करें।
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