
अपने माता-पिता के बीच असहमति और झगड़ों को देखकर बच्चे भावनात्मक, सामाजिक और संज्ञानात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।
मां-बाप बनने के बाद लोगों की जिम्मेदारियां और बढ़ जाती हैं। दो लोग, जो मां-बाप की भूमिका निभा रहे होते हैं, उन्हें अक्सर अपने बच्चों के लिए सभी मनमुटाव मिटाने पड़ते हैं। अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो इम मनमुटावों का बच्चोंपर गलत असर पड़ सकता है। कई बार ऐसे बच्चे जिनके मां-बाप बहुत लड़ाई करते हैं, उन्हें कई तरह के मानसिक बीमारियों से पीड़ित पाया गया है। इन बच्चों में आप व्यवहार संबंधी कई तरह के विकार भी हो सकते हैं। दरअसल जब बच्चे अपने माता-पिता के बीच असहमति देखते हैं, तो उनकी पूरी दुनिया हिल जाती है। यह उन्हें भावनात्मक, सामाजिक और संज्ञानात्मक रूप से प्रभावित करता है। वहीं इस उम्र की खास बात ये भी होती है कि इस उम्र में आपके साथ या आपसे आस-पास घटित हुई कोई भी घटना मस्तिष्क पर एक लंबा प्रभाव छोड़ती है। इसी तरह मां-बाप के बीच हो रहे रोज के झगड़े और लड़ाईयां बच्चों को हमेशा याद रह जाते हैं। वहीं इसके अन्य प्रभाव भी हैं, आइए जानते हैं इसके बारे में।
माता-पिता को खोने का डर
माता-पिता अपने बच्चों के सामने जो तर्क देते हैं, उसके भी परिणाम होते हैं। जब बच्चे अपने माता-पिता को घर से बाहर जाने या जीवनसाथी से घर से बाहर निकलने के बारे में बात करते और चिल्लाते हुए देखते हैं, तो इसका उन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। उनमें एक डर पैदा हो जाता है कि उनके माता-पिता में से एक उन्हें छोड़ कर जा सकते हैं। वहीं कई शोधों का मानें, तो घर में होने झगड़े-लड़ाई की नकारात्मकता बच्चे की पढ़ाई को भी प्रभावित करती है। दुनिया भर में माता-पिता की असहमति के नकारात्मक प्रभाव उनके बच्चों के व्यवहार, कौशल और पढ़ाई में असर दिखाता है।
इसे भी पढ़ें : मां-बाप की इन 5 छोटी गलतियों का बच्चों पर पड़ता है बुरा असर, जानें और सुधारें इन्हें
बेचैनी और असुरक्षा
जब माता-पिता बच्चों के सामने बहस करते हैं, तो इससे उनकी सुरक्षा की भावना को खतरा होता है। थेरेपिस्ट की मानें, तो बच्चों को एक खुशहाल और स्टेबल घर में सुरक्षा की भावना मिलती है, जो विश्वास की नींव बनाने में मदद करता है। जब माता-पिता बच्चों के सामने लड़ते हैं, तो वे असुरक्षित महसूस करते हैं। वहीं ये असुरक्षा और बैचैनी आगे जाकर उन्हें सामाजिक तौर से कटाव का अनुभव करवाती है।
आत्मविश्वास की कमी और अपराधबोध
माता-पिता के बीच बार-बार बहस करने से बच्चों में ध्यान भंग हो सकता है। इसके अलावा ये मानसिक रूप से नहीं भावनात्मक रूप से भी बीमार होने लगते हैं। ऐसे बच्चों को अपराधबोध की भावना और आत्मविश्वास का कम होना से जुड़े व्यक्तिगत परेशानियों से जूझते हुए पाया गया है। ऐसे बच्चे या तो उग्र हो जाते हैं या पूरी तरह से चुप हो जाते हैं। बच्चा किसी से एक सवाल पूछ कर के भी अपराधबोध महसूस कर सकता है। इस तरह ये धीरे-धीरे उनके आत्मसम्मान को प्रभावित करता और यही उनके आने वाले जीवन और फैसलों में झलकने लगता है।
झूठ बोलना या विद्रोही हो जाना
ऐसी स्थितियों में बच्चे माता-पिता के झगड़े से बचने के लिए विभिन्न चीजों की कोशिश करते हैं, जैसे कि झूठ बोलना। दरअसल बच्चे कहानियां बनाकर माता-पिता के झगड़े से बचने की कोशिश करने में अक्सर झूठ का सहारा ले लेते हैं, जो बाद में एक पैटर्न बन जाता है। जब बच्चे अपनी वर्तमान वास्तविकता से असहज होते हैं, तो वे बच निकलने के मार्ग तलाशने लगते हैं। ऐसे परिवारों में बच्चे बड़े होकर दयनीय हो जाते हैं। ऐसे परिवारों के बच्चे अपने माता-पिता की बात नहीं मानते हैं या झूठ बोलते हैं। वहीं ज्यादा बड़ी बात होने पर घर छोड़ देने जैसी विद्रोही हरकत करते हैं।
इसे भी पढ़ें : टीनएज बच्चों के साथ इन 5 तरीकों से घुल-मिल सकते हैं माता-पिता
खाने और सोने से जुड़े डिसऑर्डर
माता-पिता के झगड़े से जूझ रहे बच्चों को खाने की समस्या हो सकती है। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो ऐसे एक से चार साल की उम्र के बीच के बच्चों में लंबे समय तक बिना चबाए या निगलें भोजन को अपने मुंह में रखने की आदत पैदा हो जाती है। साथ ही वे घर में खाना खाना बंद कर देते हैं। कई बार उनके भूख का पैटर्न भी बदल जाता है। उन्हें सही से नींद नहीं नहीं आती है और धीरे-धीरे वे नकारात्मक सोच के साथ जीने लगते हैं। इतना ही नहीं वे अपने सोचने के कौशल को सुधारने में भी असफल होते हैं और किसी न किसी मानसिक बीमारी का शिकार हो जाते हैं।
Read more articles on Tips for Parents in Hindi
इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है हालांकि इसकी नैतिक जि़म्मेदारी ओन्लीमायहेल्थ डॉट कॉम की नहीं है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है।