आज के समय में अधिकतर लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं और इसके इलाज के लिए दवाईयों का सेवन भी करते हैं। लेकिन लेबाइल हाइपरटेंशन एक ऐसा शब्द है, जिसके बारे में बहुत से लोग अनभिज्ञ हैं। यह उच्च रक्तचाप से थोड़ा अलग है। इसमें व्यक्ति के रक्तचाप में अचानक सामान्य से उच्च स्तर तक उतार-चढ़ाव होता है। हालांकि इस स्थिति में कुछ देर के लिए ही रक्तचाप उच्च होता है और उसके बाद सामान्य हो जाता है, इसलिए अधिकतर लोगों को इसके बारे में पता ही नहीं चलता।
हो सकता है खतरनाक
लेबाइल हाइपरटेंशन उच्च रक्तचाप से कहीं अधिक घातक साबित हो सकता है। दरअसल, रक्तचाप में एकदम से व अस्थायी वृद्धि दिल व अन्य अंगों पर दबाव डालती है। अगर रक्तचाप में बार-बार बहुत अधिक उतार-चढ़ाव आता है तो इससे गुर्दे, रक्त वाहिकाओं, आंखों व हद्य को काफी नुकसान पहुंच सकता है। इतना ही नहीं इससे स्ट्रोक यहां तक कि व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है, अगर इसका समय रहते उपचार शुरू न किया जाए।
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बचें इन ट्रिगर्स से
सरोज सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी व सीनियर कंसल्टेंट डॉ जयदीप बंसल बताते हैं कि ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिनके कारण यह लेबाइल हाइपरटेंशन व्यक्ति को अधिक परेशान कर सकता है। सबसे पहले तो रक्तचाप में वृद्धि इमोशनल स्ट्रेस के कारण हो सकती है। अगर लेबाइल हाइपरटेंशन से पीड़ित व्यक्ति किसी स्थिति में बहुत अधिक चिंतित या तनावग्रस्त है, तो दिन में कई बार उसके रक्तचाप में उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त खानपान भी इस समस्या को प्रभावित करता है। खाने में सोडियम की अधिकता या अत्यधिक कैफीन का सेवन ऐसे लोगों के लिए एक ट्रिगर की तरह काम करता है। वहीं कुछ लोगों में रक्तचाप केवल तभी उच्च होता है, जब वह डॉक्टर से मिलते हैं या उनकी कोई सर्जरी आदि होती है। दरअसल, ऐसे में वह अपने हेल्थ को लेकर काफी अधिक चिंता करते हैं। लेबाइल हाइपरटेंशन के इस रूप को व्हाइट कोट हाइपरटेंशन या व्हाइट कोट सिंड्रोम भी कहा जाता है।
पहचानें लक्षण
डा जयदीप बंसल के अनुसार, आमतौर पर इस बीमारी का आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि इसे कोई निर्धारित लक्षण नहीं होते। लेकिन जो लोग इस समस्या से पीड़ित होते हैं, उनके शरीर में अक्सर कुछ बदलाव देखे जाते हैं, जिसके आधार पर इसकी पहचान की जा सकती है। जैसे-
- सिरदर्द
- दिल में घबराहट
- कानों में झनझनाहट या टिनिटस
हालांकि इस बात पर भी गौर करें कि यह शारीरिक समस्याएं होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि व्यक्ति लेबाइल हाइपरटेंशन से पीड़ित है। यह परेशानियां अन्य भी कई कारणों से होती हैं। इसलिए शरीर में इस तरह के बदलाव होने पर डॉक्टर से परामर्श लेना बेहद आवश्यक है।
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जरूरी है इलाज
लेबाइल हाइपरटेंशन के इलाज का सबसे पहला कदम है कि रक्तचाप को हमेशा ही मॉनिटर किया जाए, क्योंकि इस स्थिति में 15 से 20 मिनट में भी रक्तचाप बढ़ सकता है और फिर सामान्य हो सकता है। इसलिए यह देखना बेहद आवश्यक है कि दिन में कितनी बार रक्तचाप में उतार-चढ़ाव आता है। वहीं रक्तचाप के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाईयां जैसे डायूरेटिक्स या एसीई अवरोधक आदि इसमें किसी काम नहीं आती। बल्कि इसके इलाज के जरिए जरूरी है कि इमोशनल स्ट्रेस या तनाव को नियंत्रित किया जाए। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर अल्प्राजोलमए क्लोनोपिन, डायजेपामए लोरज़ेपमए पेरोक्सेटीनए सेरट्रलाइन जैसी एंटी-स्ट्रेस दवाईयों का सेवन किया जा सकता है।
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करें यह प्रयास
कहते हैं कि प्रिवेंशन इज़ बेटर देन क्योर अर्थात रोकथाम इलाज से बेहतर है। इसलिए आप भी अपनी स्थिति को सुधारने व भविष्य में लेबाइल हाइपरटेंशन को रोकने के लिए कुछ प्रयास कर सकते हैं। इसमें धूम्रपान व शराब छोड़ने से लेकर नमक व कैफीन की मात्रा को सीमित करें। वही तनाव आप पर हावी न हो, इसके लिए व्यायाम, मेडिटेशन, डीप ब्रीदिंग, योगा आदि को अपनी दिनचर्या का ही एक हिस्सा बनाएं।
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