स्त्रियों में एनीमिया की समस्या के बढ़ते मामले एक चिंता का विषय है। इस समस्या से महिलाओं की सेहत को काफी नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में एनीमिया से संबंधित हर जानकारी को लेकर जागरूक होना बेहद जरूरी है। अकसर महिलाएं इस समस्या के लक्षणों को समझ नहीं पाती और वे गंभीर समस्याओं का शिकार हो जाती हैं। ऐसे में अगर बचपन से ही लड़कियों के खानपान पर ध्यान दिया जाए तो भविष्य में इस समस्या से दूर रहा जा सकता है।
एनीमिया से स्त्रियों का जीवन कैसे प्रभावित होता है? इस समस्या से बचने के लिए कितना हीमोग्लोबिन होना चाहिए? किस तरह के खानपान को अपनी डाइट में शामिल करें? इनके जवाब अगर पहले से पता होंगे तो सावधानी बरतनी में आसानी होगी। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से एनीमिया से संबंधित मुख्य बातों से रूबरू करवाएंगे। बता दें कि ये लेख उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल के हेड और सीनियर कंसल्टेंट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) एकता बजाज से बातचीत पर बनाया गया है। पढ़ते हैं आगे...
एनीमिया से कैसे प्रभावित हो सकता है जीवन
जिन लड़कियों को एनीमिया की समस्या होती है उनके शारीरिक और बौद्धिक, दोनों विकास में रुकावट आ जाती है, जिसके कारण उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जब लड़कियों का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता तो उनकी ध्यान केंद्रित क्षमता कमजोर हो जाती हैं। एक्सपर्ट बताते हैं इस समस्या के चलते लड़कियां परीक्षा में फेल हो जाती हैं और भारी मात्रा में लड़कियां हाई स्कूल के बाद ही शिक्षा छोड़ देती हैं। पेरेंट्स की असली समस्या को ना समझते हुए इसे बच्चों की लापरवाही समझते हैं और उन्हें मंदबुद्धि करार देते हैं। वे ये नहीं जानते कि ऐसा शरीर में खून की कमी के कारण भी हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ इसके समस्या के चलते लड़कियों के व्यवहार में भी चिड़चिड़ापन आ जाता है।
स्त्रियों में एनीमिया के लक्षण
- आंखों के आगे अंधेरा आ जाना,
- चक्कर आना,
- हमेशा नींद आना,
- थकान महसूस करना,
- कमजोरी होना,
- आंखें ज्यादा सफेद लगना,
- नाखूनों का सफेद हो जाना ( आम लोगों के नाखूनों में हल्का गुलाबीपन होता है)
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किन स्त्रियों को एनीमिया से ग्रस्त माना जाता है
वे स्त्रियां एनीमिया से ग्रस्त होती हैं, जिनके खून में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 ग्राम से कम होता है। वहीं अगर पुरुष की बात की जाए तो जिन पुरुषों में हीमोग्लोबिन का लेवल 13 ग्राम से कम होता है एनीमिया के शिकार होते हैं।
गर्भावस्था में एनीमिया के कारण होने वाली दिक्कत क्या है
अगर गर्भावस्था के दौरान किसी महिला को एनीमिया की परेशानी हो जाती है तो ऐसे में मिसकैरेज की आशंका बढ़ जाती है। इन स्त्रियों के गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क और शरीर पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता। प्रीमैच्योर डिलीवरी या जन्म के दौरान ऐसे बच्चों की मौत होने की संभावना बढ़ जाती है।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर
एक्सपर्ट कहते हैं कि गर्भावस्था के दौरान हीमोग्लोबिन का स्तर 12 ग्राम से ज्यादा होना चाहिए। बता दें कि गर्भावस्था के दौर में यूट्रस के आसपास के हिस्सों का वॉल्यूम एक्सपेंशन ज्यादा तेजी से होता है। वहीं शिशु को आहार मां के शरीर से ही मिलता है ऐसे में हीमोग्लोबिन की स्तर में 12 ग्राम गिरावट आना स्वभाविक है। इसीलिए महिला कंसीव करने से पहले अपने हीमोग्लोबिन की जांच जरूर करवाएं और इस बात का ध्यान रखें कि उनका हीमोग्लोबिन 12 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। साथ ही वह हर 3 से 4 महीने में अपना सीबीसी यानी टोटल ब्लड काउंट टेस्ट जरूर करवाएं।
पुरुषों की बजाय स्त्रियां क्यों है इस बीमारी से ज्यादा परेशान
पुरुषों में भी एनीमिया के लक्षण पाए जाते हैं लेकिन महिलाओं में इस समस्या से मासिक चक्र के कारण ज्यादा जल्दी शिकार हो जाती हैं। इसका प्रमुख कारण हैं मासिक चक्र के दौरान अधिक रक्तस्राव। कुछ स्त्रियां ऐसे भी होती हैं जो परिवार की जिम्मेदारी में इतना खो जाती हैं कि वह अपने खानपान पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे पाती, जिसकी वजह से शरीर में खून की कमी होना संभावित है। इसका दुष्परिणाम उन्हें भविष्य में प्रेगनेंसी के दौरान दिखाई देता है।
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एनीमिया से बचाव
एनीमिया से बचाव के लिए डॉक्टर संतुलित आहार लेने की सलाह देते हैं। स्त्री अपनी डाइट में सेब, केला, अनार, खजूर, गुड़, मूंगफली, बादाम, चना, गाजर, चुकंदर को जोड़ सकते हैं। इसके अलावा वे नियमित रूप से हरे पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें। इन स्त्रियों के लिए डॉक्टर लोहे की कढ़ाई में खाना पकाने की सलाह देते हैं क्योंकि ऐसा करने से शरीर को भरपूर मात्रा में आयरन मिल सकता है। साथ ही जो स्त्रियां सब्जियों को काटने के बाद भी धोते हैं वे इस आदत को बदल लें, ऐसा करने से पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।
शरीर में आयरन की कमी को पूरा करने के लिए क्या करें
डॉक्टर ऐसे में आयरन युक्त खाद्य पदार्थ को अपनी डाइट में जोड़ने की सलाह देते हैं। इसके लिए वे नींबू, संतरा, मौसमी आदि खट्टे फलों का सेवन करने के लिए कहते हैं। साथ ही वह कहते हैं कि कैल्शियम को आयरन के साथ ना लें। अगर इन दोनों को एक साथ लिया जाए तो शरीर को दोनों ही तत्व ठीक प्रकार से नहीं मिल पाते। जरूरी बात, सब्जियों या आयरन युक्त फलों के साथ दूध का सेवन ना करें। अगर दूध, दही जैसे पदार्थों का अपनी डाइट में जोड़ना चाहते हैं तो आयरन युक्त फल और सब्जियों के तकरीबन 2 घंटे बाद इनका सेवन करें।
फलों के सेवन से अगर शुगर लेवल बढ़ जाए तो क्या करें
ऐसी स्थिति में जूस को अपने डाइट से निकालें और फलों को अपनी डाइट में डालें। साथ ही खजूर और गुड़ का सेवन कम करें। इसकी जगह पर बदाम, रागी, चना, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि प्रोटीन युक्त और आयरन युक्त पदार्थों को जोड़ें। इसके सेवन से डायबिटीज और एनीमिया, दोनों ही नियंत्रित रहेंगे।
एनीमिया का उपचार
एनीमिया के उपचार के लिए डॉक्टर आयरन युक्त पदार्थों के सेवन की ही सलाह देते हैं लेकिन जब समस्या गंभीर हो जाती है तो आईवी और आईएम मेडिसिन के जरिए भी आयरन के सप्लीमेंट दिए जाते हैं। बता दें कि इससे हीमोग्लोबिन का स्तर सही रहता है लेकिन इस तरह के सप्लीमेंट्स केवल डॉक्टर की सलाह पर ही लेनी चाहिए। क्योंकि नॉर्थ इंडिया में थैलिसिनिया के कारण शरीर में हीमोग्लोबिन बनता ही नही है ऐसी स्थिति में आयरन हानिकारक हो सकता है।
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