नए मां-बाप नवजात शिशुओं से जुड़े ये 5 मिथक मानते हैं सही, मगर इनकी सच्चाई है थोड़ा अलग, जानें इन्हें

अगर आप अभी-अभी मां-बाप बने हैं, तो आपको अपने बच्चे की हरकतों और जरूरतों को समझने में वक्त लगेगा। पर इस बीच आप नवजात शिशुओं की देखरेख से जुड़े भ्रामकों पर भरोसा न करें क्योंकि इससे आपके बच्चे को नुकसान हो सकता है। आइए हम आपको बताते हैं ऐसे ही पांच मिथकों और उनके पीछे के तथ्यों के बारे में।
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नए मां-बाप नवजात शिशुओं से जुड़े ये 5 मिथक मानते हैं सही, मगर इनकी सच्चाई है थोड़ा अलग, जानें इन्हें


एक बार जब आप माता-पिता बन जाते हैं, तो आप हमेशा ही आपने बच्चे की देखभाल और स्वास्थय के बारे में सोचते रहते हैं। आप हमेशा उनकी देखरेख और छोटा-छोटी हरकतों को देखकर कई चीजों का अंदाजा लगाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा आप कई बार अपने बच्चे की देखभाल के लिए कुछ पत्रिकाओं को पढ़ते और विडियोज को भी देखते हैं। ऐसे में कभी-कभार वे भ्रामक ची़जों के भी शिकार हो जाते हैं। जैसे कुछ लोगों का मानना होता है कि बच्चे को दांत निकलने के कारण ही बुखार आता है या उसे तीन महीने तर लगातार सोना ही चाहिए। तो ये सब एक मिथक है। जरूरी नहीं कि आपके बच्चे के साथ ऐसा ही हो रहा हो। इसलिए ऐसे भ्रामकों पर ज्यादा विश्वास न करें और जरूरी पड़ने पर डॉक्टर से सुझाव लेते रहें। अब आइए हम आपको बताते हैं नवजात शिशुओं से जुड़े ऐसे 5 मिथकों के बारे में, जिस पर आपको भरोसा नहीं करना चाहिए।

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नवजात शिशुओं से जुड़े 5 मिथक और तथ्य

मिथक 1 : बच्चे को रोने को हमेशा भूख से जोड़ना

तथ्य- आमतौर पर यह माना जाता है कि यदि आपका बच्चा रो रहा है तो इसका मतलब ये है कि वह भूखा है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। दरअसल रोना उनके लिए संवाद करने का एक तरीका है। वे इसलिए हर बदलाव पर रोते हैं जैसे अगर उन्हें आप नहा रहे हैं तो या फिर खिला रहें या आप उनसे दूर हैं। ऐसे में आपकी उपस्थिति उन्हें सुरक्षित महसूस कराता है। कुछ बुजुर्ग लोग आपको बच्चे के दूध पिलाने और सोने की दिनचर्या को ठीक करने की सलाह दे सकते हैं। लेकिन नवजात शिशु को हर बार भूख नहीं लगती कि आप उन्हें खिलाते और पिलाते रहें। उनके पास एक छोटा सा पेट है, जो अक्सर जल्दी भर जाता है। साथ ही अपने नवजात शिशु के लिए उनके फीडिंग शेड्यूल को ठीक करने की कोशिश न करें। कभी-कभी बच्चा बच्चा फीड करने के बाद भी रोता है जबकि अब वो भूखा भी नहीं है। फिर अगर वो अपनी मां को दूध पीने लगता है तो वह चुप हो जाता क्योंकि बात बस इतनी सी होती है कि एक शिशु के लिए कुछ भी चूसने की क्रिया बहुत आरामदायक महसूस कराती है।

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मिथक 2 : दांत निकलने के कारण होता है बुखार

तथ्य- यह बहुत पुरानी और आम गलत धारणा है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शुरुआती दांत और बुखार के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। आमतौर पर शुरुआती दांत 6 से 24 महीनों के बीच निकलना शुरू होते हैं। इस वक्त में ही एक शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो रही होती है और उन्हें संक्रमण का भी खतरा होता है। ऐसे में आपको कभी भी यह नहीं समझना चाहिए कि शुरुआती दांतों के कारण ही उन्हें बुखार हो रहा है। ऐसे में अगर आपके बच्चे को बुखार हो तो डॉक्टर को दिखाएं न कि अपने मन से इलाज करना शुरु कर दें।

मिथक 3 : वॉकर बच्चे को चलना सीखने में मदद कर सकते हैं

तथ्य- अपने बच्चे को अपनी उंगलियों को पकड़ कर धीरे-धीरे चलना सीखाएं न कि वॉकर की मदद से। ऐसा कुछ भी नहीं है जो वॉकर कर सकता है और आप नहीं बल्कि वॉकर दुर्घटनाओं का खतरा और बढ़ा सकता है, जैसे कि बच्चा नीचे न गिर जाए। वॉकर के कारण आपके बच्चे के नाजुक मांसपेशियों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि जैसे ही आपका बच्चा चलना शुरू करे आप उसे अपने सामने ही चलाएं और किसी भी चलने वाले खिलौने के साथ अकेले न छोड़ें।

मिथक 4 : शिशुओं को रात में तीन महीने तक सोना चाहिए

तथ्य- अक्सर लोगों को लगता है कि बच्चा अगर तीन महीने तर रात में सोता रहेगा तो वो बड़ा हो जाएगा। एक और गलती जो कुछ माता-पिता करते हैं, वह यह है कि वे छह महीने से पहले बच्चे को ठोस पदार्थ देते हैं, इस उम्मीद में कि बच्चा के पेट भरा रहेगा और वो शांति से सोएगा। पर ये सही नहीं है। कभी भी छह महीने की उम्र से पहले बच्चे को ठोस खाद्य पदार्थ न दें। बच्चे को 6 महीने तक बस मां का दूध और पानी ही दें।

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मिथक 5 : शिशुओं को हर दिन शौच करना चाहिए

तथ्य- शिशुओं में हर दो से तीन दिनों में एक बार शौच जाना बिल्कुल सामान्य है। अगर बच्चा रोज पॉटी नहीं कर रहा है तो घबराएं नहीं। ऐसे में बस आपको बच्चे के स्टूल (पॉटी) के रंग-ढ़ग का ख्याल रखना है बस। अगर ये नरम है, तो चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर यह कठोर और पथरी जैसा है, तो हो सकता है कि शिशु को कब्ज हो और फिर आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। जिन शिशुओं में फार्मूला दूध होता है, उनमें स्तनपान कराने वाले शिशुओं की तुलना में कब्ज होने की संभावना अधिक होती है।

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