
नवजात शिशु के लिए मां का दूध सर्वोत्तम पोषण का सोर्स माना जाता है, क्योंकि इसमें वह सभी पोषक तत्व और प्रतिरोधक तत्व होते हैं जो शिशु की वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी के विकास के लिए जरूरी होते हैं। जन्म के तुरंत बाद से लेकर कम-से-कम 6 महीनों तक शिशु को केवल मां का दूध ही दिया जाना चाहिए। हालांकि, कई बार कुछ महिलाओं को विभिन्न कारणों से पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं बन पाता या किसी चिकित्सकीय कारण से वे अपने शिशु को स्तनपान नहीं करा पातीं। ऐसे में एक विकल्प के रूप में "डोनर ब्रेस्ट मिल्क" यानी किसी दूसरी मां का दान किया गया स्तन दूध शिशु को दिया जा सकता है। यह दूध आमतौर पर मान्यता प्राप्त ह्यूमन मिल्क बैंकों से प्राप्त किया जाता है, जहां इसे सुरक्षित रूप से संग्रहित, जांचा और पॉश्चराइज किया जाता है ताकि उसमें किसी प्रकार के संक्रमण या बीमारी का खतरा न हो। यहां यह सवाल उठता है कि क्या डोनर ब्रेस्ट मिल्क शिशु के लिए वास्तव में सुरक्षित है? इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमने फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल के कंसल्टेंट, एमबीबीएस, डीएनबी (पीडियाट्रिक्स), डॉएनबी (नियोनेटोलॉजी) डॉ. हेमंत शर्मा (Dr. Hemant Sharma, MBBS, DNB (Pediatrics), DrNB (Neonatology), Amrita Hospital, Faridabad) से बात की-
क्या शिशु के लिए डोनर ब्रेस्ट मिल्क सुरक्षित है? - Is Donor Breast Milk Safe for Babies
डॉ. हेमंत शर्मा बताते हैं कि डोनर ब्रेस्ट मिल्क वह दूध होता है जो किसी स्वस्थ महिला द्वारा दान किया गया होता है। इसे शिशु को तब दिया जाता है जब शिशु की मां किसी कारणवश अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करा पा रही हों। खासतौर पर प्रीमैच्योर (समय से पहले जन्मे) और बीमार नवजात शिशुओं के लिए यह दूध एक जीवनरक्षक विकल्प हो सकता है। मां के दूध में मौजूद एंटीबॉडी, पोषक तत्व और इम्यून बूस्टिंग गुणों से युक्त डोनर मिल्क भी शिशु को इन फायदों का लाभ दे सकता है।
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क्या डोनर ब्रेस्ट मिल्क सुरक्षित होता है? इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ. हेमंत शर्मा बताते हैं कि, "डोनर ब्रेस्ट मिल्क शिशु के लिए सुरक्षित होता है, लेकिन इसे सीधे शिशु को नहीं देना चाहिए। इसे पहले पॉश्चराइज करना जरूरी होता है।" किसी भी शिशु को डोनर मिल्क देने से पहले बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
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पॉश्चराइजेशन क्या है और क्यों जरूरी है?
पॉश्चराइजेशन एक प्रक्रिया है जिसमें दूध को एक निश्चित तापमान पर कुछ समय तक गर्म किया जाता है ताकि उसमें मौजूद किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस या अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को नष्ट किया जा सके। डॉ. शर्मा बताते हैं कि महिला के शरीर में अगर कोई इंफेक्शन हो, जैसे HIV, हेपेटाइटिस तो उसका प्रभाव दूध में आ सकता है। ऐसे में बिना पॉश्चराइजेशन के डोनर मिल्क देना शिशु के लिए खतरे का कारण बन सकता है।
डोनर मिल्क और फार्मूला मिल्क में क्या अंतर है?
डोनर मिल्क पूरी तरह से प्राकृतिक होता है और उसमें वे सभी तत्व मौजूद रहते हैं जो मां के दूध में होते हैं, जैसे एंटीबॉडी, एंजाइम्स और हार्मोन्स। इसके विपरीत, फार्मूला मिल्क एक कृत्रिम विकल्प होता है जो पोषण तो देता है लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी नहीं बढ़ा पाता। इसलिए जब भी संभव हो, डोनर मिल्क को फार्मूला मिल्क पर प्राथमिकता दी जाती है।
निष्कर्ष
डोनर ब्रेस्ट मिल्क एक उपयोगी और सुरक्षित विकल्प हो सकता है जब मां के दूध की उपलब्धता नहीं हो, लेकिन इसकी प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमेशा प्रमाणित ह्यूमन मिल्क बैंक से ही दूध प्राप्त करना चाहिए और डॉक्टर के मार्गदर्शन में ही शिशु को दिया जाना चाहिए। डॉ. हेमंत शर्मा की सलाह के अनुसार, "शिशु को डोनर मिल्क पिलाने का तरीका भी डॉक्टर से जानना जरूरी होता है, क्योंकि हर बच्चे की स्थिति अलग होती है।" यदि मां का दूध उपलब्ध नहीं है, तो डोनर ब्रेस्ट मिल्क एक भरोसेमंद विकल्प हो सकता है, बशर्ते कि इसे सही प्रक्रिया से तैयार किया गया हो और चिकित्सकीय देखरेख में दिया जाए।
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