क्या गंगा में कोरोना मरीजों की लाशें बहाए जाने से पानी से फैलेगा संक्रमण? एक्सपर्ट्स से समझें पूरी बात

क्या गंगा में शवों को बहाए जाने से भी कोरोना होगा या नहीं, इस पर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। यहां विशेषज्ञों ने बताएं हैं कारण।
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क्या गंगा में कोरोना मरीजों की लाशें बहाए जाने से पानी से फैलेगा संक्रमण? एक्सपर्ट्स से समझें पूरी बात


कोरोना की दूसरी लहर का कहर ऐसा बरपा कि लाशों के अंबार लगने लगे। श्मशान घाट भरने लगे तो गंगा व अन्य नदियों के किनारे लाशें तैरती जलती नजर आईं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ राज्यों से ऐसी खबरें आईं। विभिन्न मीडिया संस्थानों की मानें तो पिछले दिनों से 2 हजार के आसपास शव गंगा किनारे दिखे। इन शवों ने आम लोगों के मन में शंका पैद कर दी है कि क्या गंगा किनारे या गंगा में कोरोना से जान गंवाने वालों के शवों को बहाने से पानी में भी कोरोना का संक्रमण फैल सकता है। इस पर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। वरिष्ठ पर्यावरणविद अभय मिश्रा का कहना है कि जो लोग गंगा में शव बहा रहे हैं वे गरीबी के कारण ऐसा कर रहे हैं और गंगा में शव डालने की प्रथा आज से नहीं बरसों से है। गंगा को बैकुंठ धाम कहा जाता है। तो वहीं, स्वामी दयानंद अस्पताल में जनरल फिजिशियन डॉक्टर ग्लैडविन त्यागी का मानना है कि लोगों के इस तरह गंगा में शव डालने से पानी में भी कोरोना का संक्रमण फैल सकता है। इस तरह की गतिविधियां लोगों को नहीं करनी चाहिए और उन्हें अंतिम संस्कार की जो विधि उसे अपनाना चाहिए।

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क्या गंगा में शव बहाने से बढ़ेगा कोरोना?

वरिष्ठ पर्यावरणविद अभय मिश्रा का कहना है कि गंगा में बहाए जाने वाले शव अगर गैर कोरोना पॉजिटिव होते तो जल प्रवाह से पहले एक ट्रेडिशन होता है जिसमें शव को कफन पहनाकर नदी की बीच धारा में डाला जाता है, उसे नदी किनारे फेंका नहीं जाता है। लेकिन पिछले दिनों कई लाशें गंगा किनारे तैरती नजर आईं और ये ज्यादातर कोविड पॉजिटिव डेडबॉडीज अस्पतालों से लाई गईं थीं, जिन्हें गंगा किनारे बहाया गया। अभय मिश्रा का कहना है कि कुछ रिपोर्ट ऐसी आईं हैं जिनमें कहा गया है कि वायरस हवा की अपेक्षा पानी में ज्यादा देर रह सकता है। इस पर पर्यावरणविद मिश्रा का कहना है कि अगर ऐसा सच होता तो अब तक गंगा किनारे रहने वाले हजारों लोग मर गए होते। लेकिन ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला है।

पर्यावरणविद अभय मिश्रा का कहना है कि गंगा में बैक्टिरियोफेजिस (Bacteriophages) वायरस होते हैं जो बैक्टीरिया को खा जाते हैं। इसकी वजह से गंगा का पानी खराब नहीं होता। बैक्टिरियोफेजिस गंगा की गाद में मौजूद है। यही कारण है कि सदियों से गंगा का पानी खराब नहीं हुआ है और इसे अमृत्व की संज्ञा दी गई है। अभय मिश्रा का मानना है कि गंगा के गंगत्व की वैज्ञानिक जांच होनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या गंगा का पानी कोरोना से लड़ने में सक्षम है। 

अभय बताते हैं कि प्रकृति कभी प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाती है। वे बताते हैं कि अगर नदियों में बहाव है तो कोई भी चीज उन्हें प्रदूषित नहीं करेगी, लेकिन अगर नदियों का बहाव ठीक नहीं है तो स्वभाविक रूप से पानी में प्रदूषण बढ़ेगा। लेकिन जिस तरह से जनसंख्या बढ़ी है और नदियों पर दबाव बढ़ा है। उससे पानी में प्रदूषण बढ़ा है। जो लोग भी नदी किनारे कोरोना पीड़ितों के शव नदी किनारे बहा रहे हैं वे ऐसा गरीबी के चल कर रहे हैं। अभय का मानना है कि शवों को नदियों में से फैलने वाले प्रदूषण का फीसद कम है। सबसे ज्यादा प्रदूषण घरेलू अपशिष्ट पदार्थों से फिर फैक्ट्रियों से निकलने वाले अपशिष्ट से और फिर शवों से होता है।

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क्या पीने लायक होगा ये पानी?

एनसीबीआई में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना पॉजिटिव मरीजों के मूत्र और मल के पानी में जाने से पानी में भी कोरोना संक्रमण फैलने की संभावना है। रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि कम टेपरेचर में पानी में कोरोना के फैलने की संभावना ज्यादा है। तो वहीं, बरेली कॉलेज में एमेरिटस प्रोफेसर डीके सक्सेना का कहना है कि गंगा में शवों को डालने से पानी में भी संक्रमण फैलने की संभावना है क्योंकि इससे अनचाहे बैक्टिरिया पानी में बढ़ेंगे जो शवों को खाते हैं। फिर बॉडी डिकंपोज होगी तो उससे पानी में बैक्टिरिया और बढ़ेंगे। जिससे वो पानी पीने लायक नहीं बचेगा। 

वे बताते हैं कि नदियों नदियों में दो तरह से पानी साफ होता है। एक तो  संक्रमित पानी नदी में नीचे चला जाता है जिससे वो फिल्टर हो जाता है। दूसरा वह समुद्र की ओर बह जाता है। पानी तब ज्यादा गंदा होता है जब नदी का बहाव न हो और उसमें बहुत गंदगी डाली जा रही हो।

स्वास्थ्य पर क्या होगा असर?

प्रोफेसर का कहना है कि कोरोना पॉजिटिव शवों को पानी में डालने से वह पानी पीने लायक नहीं रहेगा। उससे संक्रमण की कई बीमारियां हो सकती हैं। बहुत सी जगहों से किन्हीं भी वजहों से दूषित पानी पीने से लोगों की हड्डियां टेढ़ी होने की भी खबरें आई हैं। प्रोफेसर ने लोगों से अपील की कि इस प्रकार से शवों को पानी में न बहाएं, क्योंकि ये पानी पीने लायक नहीं बचेगा।

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क्या है डॉक्टर की राय?

स्वामी दयानंद अस्पताल में जनरल फिजिशियन डॉक्टर ग्लैडविन त्यागी का कहना है कि सरफेस पर रहने वाले वायरस की उस समय मृत्य हो जाती है, लेकिन जो डीप वायरस होता है उसको खत्म होने में समय  लगता है। डॉक्टर का कहना है कि जो डेडबॉडिज पानी में बहाई गई हैं उससे पानी में भी वायरस जा सकता है। वायरस की उम्र अगर 48 घंटे भी मानें तो उस समय में जो लोग पानी के संपर्क में आए होंगे, उसको वायरस नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन डॉक्टर का कहना है कि जब ये डेडबॉडिज मिली थीं, तब तक चार दिन हो चुके थे, तो चार दिन तक वायरस जिंदा नहीं रहता है, इसलिए पानी में वायरस फैलने से उस समय किसी को नुकसान हो, इसकी संभावना कम है।

डॉक्टर का कहना है कि कोई भी पानी घरों तक प्रोसेस्ड होकर पहुंचता है। इसलिए पानी से कोरोना फैलेगा इसकी संभावना कम है, लेकिन है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कुंभ मेले के दौरान कोरोना पॉजिटिव लोगों के नहाने से वायरस पानी के अंदर रह गया, जिससे उसे बंद किया गया। उनका कहना है कि जिस समय शवों को पानी में बहाया गया अगर उस समय कोई उस पानी का इस्तेमाल पीने या नहाने में कर रहा होगा तो उसे कोरोना हो सकता है, पर जब तक पीने के लिए पानी घर में पहुंचता है तो उससे नुकसान कम है। डॉक्टर ने कहा कि जिन लोगों के घर नदी किनारे हैं वे अभी सीधे नदी के पानी के संपर्क में आने से बचें।

जब मानसून आता है तब गंगा में बाढ़ भी आती है और तब कई चीजें पानी में बह जाती हैं। लेकिन इन दिनों गंगा में पानी नहीं है, ऐसे में लाशों को बहाने से पानी में संक्रमण फैलने की संभावना है, लेकिन इसके अभी तक इसके कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलें जिनसे कहा जाए कि गंगा नदी का पानी पीने से किसी को कोरोना हुआ हो।  

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