गले का कैंसर विश्व का दूसरा सबसे कॉमन कैंसर है। इसकी बड़ी वजह तंबाकू, धूम्रपान व शराब हैं। कई बार इसके लक्षण को व्यक्ति गले की आम समस्या समझ लेता है जिससे इसकी गंभीरता बढ़ जाती है। दवा लेने के बाद भी आवाज में बदलाव होना, गले से कुछ भी निगलने में दिक्कत होना, जलन महसूस होना, कान में दर्द, गले में गांठ के कारण दर्द व थूक के साथ खून आना जैसे लक्षण दिखाई दें तो सतर्क हो जाएं। ये गले के कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।
ये हैं मुख्य कारण
तंबाकू, शराब, गुटखा के अलावा भी गले के कैंसर के कई कारण हैं जैसे वायरल इंफेक्शन (ह्यूमन पैपीलोमा वायरस), रेडिएशन, शरीर में अनुवांशिक बदलाव, रसायनों की मौजूदगी वाली जगहों पर काम करना आदि। सिर्फ तंबाकू में करीब 4 हजार तरह के रसायन होते हैं। इनमें 60 ऐसे हैं जो कैंसर का कारण बनते हैं। ऐसे में तंबाकू और शराब से सख्त परहेज की सलाह दी जाती है। कुछ मामलों में दांतों का इंफेक्शन और बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेना भी इसका कारण सामने आया है। तंबाकू व शराब साथ लेने वालों में सामान्य व्यक्ति के मुकाबले कैंसर की आशंका 20 गुना अधिक होती है।
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ये बातें हैं जरूरी
- ओरल या गले का इंफेक्शन होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
- आयुर्वेद के मुताबिक कैंसर एसिडिक मीडियम में अधिक बढ़ता है। ऐसे में कुछ खास औषधियां जैसे मधुराक्षर देते हैं। ये शरीर में क्षार का स्तर बढ़ाती हैं जिससे कैंसर कोशिकाओं के बढऩे पर रोक लगती है। इसके लिए डाइट में पेठा, खीरा आदि ले सकते हैं।
- ट्रीटमेंट के दौरान लिक्विड डाइट अधिक लें ताकि गले पर कम जोर पड़े। एसिडिक फूड कम से कम लें।
- अधिक धुएं और रसायनों के संपर्क में आने से बचें।
एलोपैथी में इलाज
इस पद्धति में सबसे पहले मरीज की एंडोस्कोपी, सीटी स्कैन, एक्स-रे, एमआरआई और बायोप्सी जैसी जांचें कर गले के कैंसर की पुष्टि की जाती है। रोग की पुष्टि होने पर कैंसर की स्टेज के अनुसार की दवाओं और सर्जरी की सलाह दी जाती है।
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आयुर्वेद चिकित्सा
आयुर्वेद में 17 तरह के कंठ रोग के बारे में बताया गया है जिसमें गले के कैंसर के लक्षण शामिल हैं। इसके इलाज के लिए कई तरह औषधियां दी जाती हैं। जैसे कांचनार गुग्गुलु, केशव गुग्गुलु, मधुराक्षर आदि। हल्दी व गौमूत्र लेने की सलाह भी दी जाती है। इनमें मौजूद करक्यूमिन तत्त्व कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के साथ बढऩे से रोकता है।
होम्योपैथी उपचार
कैंसर की स्टेज, मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर दवाएं दी जाती हैं। दूसरी पद्धति के ट्रीटमेंट संग भी होम्योपैथी की दवाओं को लेने की सलाह देते हैं। इलाज में हुई थैरेपी बाद के साइड इफेक्ट से बचाने के लिए कुरकुमालोंगा व रेडियम ब्रोम जैसी दवाएं देते हैं।
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