शरीर की तरह मन का स्वस्थ होना भी ज़रूरी है लेकिन स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूकता के अभाव में लोग मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियों की गंभीरता को समझ नहीं पाते। हिस्टीरिया भी एक ऐसी ही समस्या है। दरअसल यह एक न्यूरोटिक डिज़ीज़ है। यह युवाओं से जुड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या है और अधिकतर स्त्रियों में इसके लक्षण नज़र आते हैं पर कई बार पुरुष भी इसकी चपेट में आ जाते हैं।
आमतौर पर इस समस्या की दो अवस्थाएं होती हैं-पहली, बेहोशी का दौरा पडऩे जैसी हालत। दूसरी अवस्था में मरीज़ के शरीर में स्वत: किसी गंभीर बीमारी के जैसे लक्षण नज़र आने लगते हैं। मसलन, आंखों की दृष्टि या आवाज़ का गायब हो जाना, पैरालिसिस की तरह हाथ-पैरों का निष्क्रय हो जाना आदि।
दिलचस्प बात यह है कि मरीज़ सचमुच ऐसी समस्या से जूझ रहा होता है लेकिन डॉक्टर द्वारा जांच किए जाने के बाद क्लिनिकली उस बीमारी की पुष्टि नहीं हो पाती। मिसाल के तौर पर परीक्षा हॉल में जाने से पहले डर की वजह से कुछ छात्रों के हाथ निष्क्रिय हो जाते हैं। इस शारीरिक अवस्था को चिकित्सा विज्ञान की भाषा में हिस्ट्रियॉनिक पैरालिसिस कहा जाता है।
अचानक बेहोशी जैसा दौरा पड़ना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। इसी वजह से कुछ लोग इसे एपिलेप्सी समझ लेते हैं पर यह समस्या उससे बिलकुल अलग है। इसके कारण व्यक्ति के मन से जुड़े होते हैं और इसका आसानी से उपचार संभव है लेकिन एपिलेप्सी होने पर सेंट्रल नर्वस सिस्टम की कोशिकाएं तेज़ी से नष्ट होने लगती हैं और यह स्थिति जानलेवा साबित होती है।
क्या है वजह
अत्यधिक मानसिक दबाव, परिवार का घुटन भरा माहौल, बड़ी दुविधा या किसी दुर्घटना के सदमे के कारण ऐसा हो सकता है। जो लोग अपनी इच्छाओं को बहुत दबा कर रखते हैं, उन्हें भी ऐसी समस्या हो सकती है। इस संदर्भ में किए गए शोध के अनुसार दमित यौन इच्छाएं भी इसके लिए जि़म्मेदार होती हैं। डर या ग्लानि से भी यह बीमारी हो सकती है।
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जांच एवं उपचार
ऐसी समस्या की आशंका होने पर साइको-डाइग्नॉस्टिक टेस्टिंग, ईईजी और न्यूरोलॉजिकल टेस्ट कराने की ज़रूरत होती है क्योंकि कई बार ब्रेन में कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या होने पर भी हिस्टीरिया जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। जांच की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है। बीमारी की पुष्टि होने के बाद ही उसका ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है। इसके तहत साइको थेरेपी, हिप्नो थेरेपी और सपोर्टिव ड्रग थेरेपी जैसे तरीके अपनाए जाते हैं। ज़रूरत पडऩे पर फैमिली थेरेपी का भी इस्तेमाल किया जाता है।
अगर परिवार के किसी सदस्य के असामान्य व्यवहार के कारण व्यक्ति में हिस्टीरिया के लक्षण पनप रहे हों तो ऐसी स्थिति में घर के लोगों का भी उपचार किया जाता है। अगर परिवार के माहौल में कोई नकारात्मक स्थिति है तो एक्सपर्ट उसे सुधारने के तरीके भी बताते हैं। उपचार शुरू होते ही मरीज़ पर इसका पॉजि़टिव असर नज़र आने लगता है, अगर सही समय पर ट्रीटमेंट शुरू किया जाए तो मरीज़ शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है। अत: लक्षणों को अनदेखा न करें और बिना देर किए किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार से संपर्क करें।
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परिवार की जि़म्मेदारी
- अगर परिवार में किसी को बेहोशी के दौरे पड़ते हों तो बिना देर किए उसका उपचार शुरू करवाएं।
- मरीज़ को अकेला न छोड़ें और उसकी सारी बातें ध्यान से सुनें।
- अपना धैर्य बनाए रखें और मरीज़ की बातों को दिल पर न लें।
- पीड़ित व्यक्ति को उसकी रुचि से जुड़े कार्यों में व्यस्त रखने की कोशिश करें।
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