जन्म से ही मोटा होना शिशु के स्वास्थ्य के लिए नहीं है फायदेमंद, जानें नवजात शिशु का वजन संतुलित रखने के उपाय

मोटे बच्चे देखने में भले ही आपको प्यारे लगे पर असल में ये उनके शरीर के लिए फायदेमंद नहीं है। वो क्यों, आइए जानते हैं।
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जन्म से ही मोटा होना शिशु के स्वास्थ्य के लिए नहीं है फायदेमंद, जानें नवजात शिशु का वजन संतुलित रखने के उपाय


मोटापा बच्चा हो या बूढ़ा किसी के लिए अच्छा नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये अपने साथ कई सारी बीमारियां लाता है। बात अगर नवजात शिशुओं की करें, तो कुछ शिशु बहुत ज्यादा मोटे पैदा होते हैं, तो कुछ ज्यादा ही पतले। दोनों ही शरीर के लिए आदर्श स्थिति नहीं है। मोटे शिशुओं की बात करें, तो उनके त्वचा के नीचे बहुत सारा फैट होता है। हालांकि, यह वैसे तो चिंता का कारण नहीं है, पर जन्म के हफ्ते भर बाद भी शिशु का वजन (Newborn Baby Weight Gain) बढ़ता ही जाए, तो उसके भविष्य के लिए ये सही सूचक नहीं है। दरअसल ये बात हम नहीं बल्कि हाल ही में आया जर्नल पीडियाट्रिक्स (Pediatrics Journal) में प्रकाशित एक अध्ययन बता रहा है।

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शिशुओं में मोटापे को लेकर क्या कहता है शोध?

जर्नल पीडियाट्रिक्स (Pediatrics Journal) में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे जन्म के वक्त बहुत अधिक वजन वाले थे, छह साल बाद भी उनका वजन अधिक बढ़ने लगा और मोटापे से ग्रस्त हैं। यह शायद बहुत कम अध्ययनों में से एक है, जो जन्म के वजन या नवजात वसा जमाव और बचपन के मोटापे के बीच एक कड़ी स्थापित करता है। वहीं इस शोध में ये भी बताया गया है कि, जन्म के वक्त शिशु का स्वस्थ वजन लगभग 3.2 किलोग्राम होना चाहिए। जबकि 4 किलो से अधिक वजन अधिक माना जाता है, तो वहीं 2.5 किलो का वजन कम माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, जन्म के वक्त 1.5 किलोग्राम वजन का बहुत कम होता है। वहीं हर हफ्ते 150 ग्राम -200 ग्राम वजन बढ़ाना पहले छह महीनों में सामान्य है। पर अगर बच्चा तेजी से वजन बढ़ाता चला गया, तो उसके भविष्य के लिए सही नहीं है।

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गर्भ में ही बच्चा मोटा कैसे हो जाता है?

शिशुओं के भारी वजन के पीछे गर्भकालीन मधुमेह मुख्य कारण है। बच्चे के विकास को प्रभावित करने वाला मुख्य पोषक तत्व चीनी है। यही कारण है कि हाई ब्लड शुगर के स्तर वाली गर्भवती महिलाओं में अधिक वजन वाले बच्चों को जन्म देने की संभावना अधिक होती है।अगर बच्चा गर्भ के अंदर बहुत बड़ा है, तो उसके कंधों को मां की पेल्विक हड्डियों द्वारा दबाव महसूस हो सकता है। इससे गर्दन में तंत्रिका क्षति हो सकती है और यहां तक कि कॉलर की हड्डियों या हथियारों का टूटना भी हो सकता है। अन्य जटिलताओं में सांस लेने में कठिनाई, हृदय की मोटी मांसपेशियां और यहां तक कि मस्तिष्क क्षति भी शामिल है। वहीं अधिक वजन वाला बच्चा भी जन्म के समय पीलिया की चपेट में भी आ जाते हैं। वहीं जन्म के बाद भी शिशुओं को कई रोग जैसे कि मोटाया और डायबिटीज का खतरा रहता है। 

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नवजात शिशु का वजन संतुलित रखने के उपाय

अगर आपके बच्चे का वजन बढ़ना आपके लिए चिंता का कारण बन जाता है, तो सबसे पहले आपको अपने शिशु रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। साथ ही आप बच्चे का वजन संतुलित रखने के लिए कुछ चीजें कर सकते हैं। जैसे कि

  • -अपने बच्चे को ज्यादा दूध न पिलाएं। सुनिश्चित करें कि आप केवल उतना ही दूध पिलाएं करें जितना आपके बच्चे की मांग है। 
  • -इसके अलावा, 45 मिनट से अधिक समय तक स्तनपान से बचें।
  • -जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है, उसके साथ खेलने में समय बिताने पर अधिक ध्यान केंद्रित करें। 
  • -जीवन के प्रारंभिक दिनों में भी उधल कूद करने और खेलने दें। इससे उसे सक्रिय जीवन जीने और शरीर के स्वस्थ वजन को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
  • -एक बार जब आप अपने शिशु को ठोस पदार्थ खिलाने लगे, तो हाई शुगर वाली चीजें न दें। 
  • - उसे नरम फलों को छोटे टुकड़ों में काट कर खिलाएं या उबला हुई सब्जियों को दाल में मिला कर खिलाएं।

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गौरतलब है कि इस शोध में यह भी बताया गया है कि जन्म का वजन पहले छह महीनों में दोगुना हो सकता है और उम्र के अंत में तिगुना हो सकता है। इस तेजी से वृद्धि के लिए आपके बच्चे को उच्च वसा वाले आहार की आवश्यकता होगी। हालांकि, विकास दर भिन्न हो सकती है। इसलिए, इस बात पर ध्यान न दें कि आपका छोटा हर हफ्ते या महीने में कितना बढ़ रहा है। वहीं जब ये नॉर्मल से ज्यादा तेजी से बढ़े, तो आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

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