जल्द ही लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल होने वाली है। सूत्रों के मुताबिक इस संबंध में पारित प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी है। ऐसे में जल्द ही सरकार कानून में संशोधन कर सकती है। मौजूदा कानून के अनुसार देश में पुरुषों की शादी की लीगल उम्र 21 और महिलाओं की शादी की लीगल उम्र 18 है। पिछले साल 15 अगस्त के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान दिलाया था कि बेटियों की सेहत के लिए और उन्हें कुपोषण से बचाने के लिए शादी सही समय पर होनी चाहिए। उसके बाद से ही इस बदलाव के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इस नए कानून में बदलाव के लिए सरकार बाल विवाह निषेध कानून, हिंदू मैरिज एक्ट और स्पेशल मैरिज एक्ट में भी संशोधन करेगी। आइए आपको बताते हैं कि महिलाओं की शादी की उम्र से उनकी सेहत कैसे जुड़ी है।
शादी के बाद लड़कियों के शरीर और सेहत में आता है बदलाव
शादी से महिलाओं की सेहत सीधे तौर पर इसलिए जुड़ी हुई है क्योंकि शादी के बाद महिलाओं के शरीर और सेहत में कई बदलाव आते हैं, जिससे कई बार कम उम्र की महिलाओं को परेशानी होती है। शादी के बाद महिलाएं यौन रूप से सक्रिय हो जाती हैं, जिससे उनके शरीर और हार्मोन्स में कई तरह के बदलाव होते हैं। इसके अलावा कम उम्र में गर्भवती होने के भी कई खतरे हैं, जो लड़कियों को झेलने पड़ते हैं।
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स्वस्थ प्रेग्नेंसी के लिए जरूरी है शादी की उम्र बढ़ाना
18 साल की उम्र में शादी का अर्थ है कि बहुत सारी लड़कियां 19 साल की उम्र से पहले ही गर्भवती हो जाती हैं। ऐसे में देखा जाता है कि कई बार लड़कियों का शरीर इतना विकसित नहीं हो पाता है कि वो गर्भधारण कर सकें या स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकें। ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत में हर 1 लाख में से 145 महिलाएं शिशु के जन्म के समय ही मर जाती हैं। वैसे तो हेल्थ एक्सपर्ट्स यही सलाह देते हैं कि शादी के बाद कम से कम 3 वर्ष तक महिलाओं को बच्चा नहीं करना चाहिए। लेकिन हर महिला के लिए ये संभव नहीं है और कई बार पति या परिवार के दबाव में भी महिलाओं को बच्चे को जन्म देना पड़ता है।
शिशुओं की मृत्युदर घटाने के लिए भी है जरूरी
कम उम्र में शादी और गर्भवती होने का नुकसान सिर्फ महिलाओं को ही नहीं, बल्कि उनके होने वाले शिशुओं को भी उठाना पड़ता है। कई बार कम उम्र में गर्भवती हुई महिला से होने वाला शिशु भी कमजोर होता है और जन्मजात बीमारियों का शिकार होता है। इसके कारण ही भारत में हर 1 लाख में से 3 हजार शिशु जन्म के पहले साल में ही मर जाते हैं। संभव है कि महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाने से शिशु मृत्युदर में भी कमी आए।
खून की कमी है बहुत बड़ी समस्या
महिलाओं में खून की कमी यानी एनीमिया एक बहुत बड़ी समस्या है। युवा होने के बाद हर महीने माहवारी के रूप में महिलाओं के शरीर से खून निकल जाता है। इसके अलावा कई बार स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी शरीर में खून की कमी होती है। वहीं ज्यादातर महिलाओं में खानपान की अनियमितता, पौष्टिक खाने की कमी, गरीबी आदि भी शरीर में पोषक तत्वों की कमी और खून की कमी का कारण बनता है। ऐसी स्थिति में गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर से बहुत सारा खून निकल जाता है, जिससे गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है। इसलिए महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाने से उनके शरीर और सेहत को बेहतर विकास के लिए थोड़ा समय मिल सकता है।
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शिक्षा और करियर का मौका मिल सकता है
भारत में लड़कियों की शिक्षा भी एक बड़ी चुनौती है। भारत में 15 से 18 साल की उम्र की लगभग 40% लड़कियां ऐसी हैं, जो स्कूल नहीं जाती हैं। इनमें से बहुत सारी लड़कियों को आठवीं के बाद और 12वीं के बाद स्कूल भेजना बंद कर दिया जाता है। ऐसे में शादी की उम्र बढ़ने से परिवारों को बेटियों को पढ़ाने के लिए भी थोड़ा समय मिल जाएगा। यह तो आप भी समझ सकते हैं कि बेहतर शिक्षा भी कहीं न कहीं बेहतर स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है। वैसे अब बहुत सारे परिवार लड़कियों की शिक्षा को लेकर जागरूक हुए हैं। ऐसे में शादी की उम्र बढ़ाने से उन्हें करियर सेट करने में भी थोड़ी मदद मिल सकती है।
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