आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लड़कियों में जल्दी प्यूबर्टी आने की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इससे न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खासकर, प्रदूषण, अनहेल्दी लाइफस्टाइल और खराब खानपान की आदतें इस प्रक्रिया को प्रभावित कर रही हैं। पहले जहां यह प्रक्रिया 12 से 14 वर्ष की आयु के बीच शुरू होती थी, वहीं अब कई लड़कियों में 8 से 10 साल की आयु में ही प्यूबर्टी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। यह बदलाव न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है। जल्दी प्यूबर्टी से लड़कियों में हार्मोनल असंतुलन, मानसिक तनाव और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अधिकांश माता-पिता इस बदलाव के बारे में अनजान रहते हैं और इसे सामान्य समझते हैं, लेकिन यह जरूरी है कि हम इस मुद्दे को गंभीरता से लें। इस लेख में, योग गुरू स्मृति से जानिए, बेटियों में जल्दी प्यूबर्टी आने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
बेटियों में जल्दी प्यूबर्टी आने से रोकने के लिए क्या करें?
1. प्रदूषण और केमिकल से दूरी
योग गुरु स्मृति के अनुसार, गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान केमिकल्स से दूर रहना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही, यह सलाह दी जाती है कि माता-पिता को हार्श केमिकल्स वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। इसलिए, शैंपू, साबुन, डिश क्लीनर्स और डिओडरेंट्स जैसे उत्पादों को देखकर ही इस्तेमाल करें।
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2. शुद्ध दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स
शुद्ध दूध और अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन करना जरूरी है। यदि आपको दूध के सोर्स की जानकारी नहीं है, तो उसे नहीं लेना चाहिए। यह सुनिश्चित करें कि दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स शुद्ध और बिना किसी मिलावट के हों।
3. प्रोसेस्ड फूड्स से बचें
प्रोसेस्ड फूड्स का सेवन भी जल्दी प्यूबर्टी का कारण बन सकता है। इनमें हानिकारक रसायन और एडिटिव्स होते हैं जो हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं। इसलिए, ताजे और ऑर्गेनिक फूड्स को प्राथमिकता दें।
4. प्लास्टिक कंटेनरों से दूरी
प्लास्टिक कंटेनरों में भोजन या पेय रखने से बचें। ऐसा इसलिए, क्योंकि इनमें हार्मोनल डिसरप्टर्स हो सकते हैं। कांच या स्टेनलेस स्टील के कंटेनर का उपयोग करें।
5. स्क्रीन टाइम को सीमित करें
बच्चों को स्क्रीन टाइम कम से कम रखना चाहिए। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य और विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। माता-पिता को भी अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।
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6. फिजिकल एक्टिविटीज
बच्चों को फिजिकल एक्टिविटीज में शामिल करना जरूरी है। योग, तैराकी और अन्य खेलों जैसी एक्टिविटीज को बढ़ावा दें। इससे न केवल उनका शारीरिक विकास होगा, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।
7. प्राकृतिक तत्वों के संपर्क में लाएं
बच्चों को प्रकृति के साथ जोड़ना चाहिए। उन्हें नंगे पैर चलने, धूप में खेलने और खुले स्थानों में खेलने का अवसर दें। इससे उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होगा।
निष्कर्ष
उचित आहार, केमिकल्स से दूरी और फिजिकल एक्टिविटीज के माध्यम से हम इस समस्या को काफी हद तक कम कर सकते हैं। माता-पिता का इस दिशा में सकारात्मक योगदान और ध्यान बेहद जरूरी है। इन उपायों को अपनाकर हम बेटियों के विकास को सही दिशा में ले जा सकते हैं और उन्हें स्वस्थ, खुशहाल जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।
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