कुछ दुर्लभ बीमारियां ऐसी होती हैं, जो कई बार डॉक्टर्स को भी कंफ्यूज कर देती हैं। ऐसे में डॉक्टर भी इन्हें ठीक तरह से डायग्नोस नहीं कर पाते हैं। ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां 17 डॉक्टर्स 3 साल तक भी बच्चे की एक दुर्लभ बीमारी को नहीं पहचान सके। दरअसल, ऐलक्स दांतों के दर्द से परेशान था, जिसके बाद 3 साल तक डॉक्टर इस बीमारी का पता नहीं लगा पाए। इसके बाद ऐलक्स की मां ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के टूल चैटजीपीटी की मदद ली और इस बीमारी के बारे में पता लग सका।
चैटजीपीटी ने कैसे की मदद?
दरअसल, डॉक्टरों के लगातार टेस्ट कराने और हर जगह से निराश होने के बाद मां ने चैटजीपीटी को बच्चे में दिख रहे लक्षणों के बारे में बताया और इस समस्या के बारे में पूछा। इसके बाद एआई के इस टूल ने बच्चे को टेथर्ड कॉर्ड सिंड्रोम (Tethered Cord Syndrome) बीमारी से पीड़ित बताया। चैटजीपीटी ने इसे एक प्रकार की दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी बताया। एलेक्स की मां के मुताबिक कोविड के दौरान उसे कुछ भी खाने के बाद चबाने में तेज दर्द होता था, जिसके बाद से उसे डॉक्टरों को दिखाया गया, लेकिन बीमारी के बारे में पता नहीं लग सका।
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क्या है टेथर्ड कॉर्ड सिंड्रोम (What is Tethered Cord Syndrome)
दरअसल, टेथर्ड कॉर्ड सिंड्रोम एक प्रकार की न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जिसमें रीढ़ की हड्डी पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में स्पाइनल कॉर्ड रीढ़ की हड्डी के टिशुज से से बंध जाती है। ऐसे में रीढ़ की हड्डी में जकड़न आ जाती है और हिलने-डुलने में भी तकलीफ होती है। ऐसी स्थिति में कई बार नर्व्स डैमेज होने के साथ ही रीढ़ में तेज दर्द भी हो सकता है। आमतौर पर स्पाइनल कॉर्ड आसानी से हिलती है और लचीली भी होती है, लेकिन इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों में मूवमेंट करने में कठिनाई हो सकती है।
टेथर्ड कॉर्ड सिंड्रोम के लक्षण
- चलने-फिरने में समस्या
- पैरों और कमर का सुन्न होना
- पैर और कमर में तेज दर्द होना
- त्वचा पर चकत्ते पड़ना या फिर बदलाव आना
- शरीर पर किसी प्रकार का निशान पड़ना
- मसल लॉस होना
- मलत्याग में कठिनाई होना