SMA: 18 महीने के बच्चे को इस दुर्लभ बीमारी से बचाने के लिए लगाया गया 17.5 करोड़ का इंजेक्शन, जानें क्या है ये

एक दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी Spinal muscular atrophy (SMA) के चलते 18 महीने के बच्चे को 17.5 करोड़ रुपये का इंजेक्शन लगाना पड़ा।
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SMA: 18 महीने के बच्चे को इस दुर्लभ बीमारी से बचाने के लिए लगाया गया 17.5 करोड़ का इंजेक्शन, जानें क्या है ये


दुनिया में कुछ बीमारियां बेहद दुर्लभ होती हैं, जिनसे कई बार पार पाना तक मुश्किल हो जाता है। दिल्ली से ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां 18 महीने के बच्चे कनव को एक दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी Spinal muscular atrophy (SMA) के चलते 17.5 करोड़ रुपये का इंजेक्शन लगाना पड़ा। इस बीमारी को ठीक करने के लिए जोलगेनेस्मा इंजेक्शन (Zolganesma Injection) लगाने की सलाह दी जाती है। 

अमेरिका से मंगवाया गया जोलगेनेस्मा इंजेक्शन 

दरअसल, यह इंजेक्शन बेहद महंगा आता है और भारत में नहीं मिलता है। कनव को इंजेक्शन लगवाने के लिए इसे अमेरिका से मंगवाया गया। इसमें आम लोगों के साथ ही बड़े सेलिब्रिटी, राजनेता जैसे कपिल शर्मा और सोनू सूद लोग भी बढ़-चढ़कर आगे आए। इस बीमारी में कनव का चलना-फिरना और बोलना तक मुश्किल हो गया था। यह ऐसी बीमारी है, जिसके मरीज भारत में बेहद कम हैं। 

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क्या है स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी Spinal muscular atrophy (SMA) 

स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी एक बेहद ही दुर्लभ बीमारी है, जो बहुत कम बच्चों में देखी जाती है। भारत में अब तक इस बीमारी के कुल 9 मामले हैं, जिसमें दिल्ली में ऐसा मामला पहली बार देखा गया है। इस बीमारी में बचपन से ही बच्चे को चलने-फिरने, उठने-बैठने और खाने-पीने में तकलीफ होने लगती है। सही इलाज नहीं मिल पाने से अधिकांश मामलों में या तो बच्चे की जान चली जाती है या फिर उन्हें कुछ समय तक के लिए वेंटिलेटर पर भी रहना पड़ सकता है। इस बीमारी में न्यूरॉन्स प्रभावित हो जाते हैं, जिससे शरीर और दिमाग के बीच के तालमेल पर असर पड़ता है। यह बीमारी ब्रेन को नुकसान पहुंचाने के साथ ही सेल्स को नष्ट करना शुरू कर देती है। बच्चों के साथ ही बड़ों में भी ये समस्या हो सकती है। 

toddler

स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी के लक्षण 

  • इस बीमारी में आमतौर पर मांसपेशियों पर शरीर का नियंत्रण या तो कम हो जाता है या पूरी तरह से खो जाता है। 
  • ऐसी स्थिति में उम्र बढ़ने के साथ-साथ मसल लॉस होने लगता है। 
  • ऐसे में मरीज को चलने-फिरने में भी काफी कठिनाई होती है। वह अपने बोलने और कुछ भी करने की क्षमता भी खो बैठता है। 

कैसे होती है पहचान? 

इस तरह के लक्षणों को देखकर इसे बिलकुल भी नजरअंदाज न करें। ऐसे में चिकित्सक मरीज की मांसपेशियों की बायोफ्सी, ब्लड टेस्ट या फिर जीन्स के टेस्ट द्वारा इस बीमारी का पता लगाते हैं। टेस्ट के जरिए स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी के स्टेज का पता लगाया जा सकता है।

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