Category : Covid Heroes
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कौन : हतरी बाईक्या : आशा विपरीत परिस्थितियों में आशा कार्यकर्ता ने कोरोना के प्रति जागरूक किया।
क्यों : देश की सबसे कम उम्र की आशा कार्यकर्ता ने पेश की मिशाल
कोरोना वायरस महामारी से पूरी दुनिया प्रभावित है। कोरोना से अब तक देश में लगभग एक लाख लोगों की जान जा चुकी है। 50 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। कोरोना पर काबू पाने के लिए एक तरफ जहां सरकार और संगठनों से लेकर आम जनता अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे हैं, वहीं डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी और सफाईकर्मी भी अपना योगदान दे रहे हैं। हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जरूरी सुविधा न होने के बावजूद कोरोना से जंग लड़ रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं, जिनका नाम मीडिया की चकाचौंध से कोसो दूर हैं। इनकी चर्चा के लिए कोई बड़ा मंच भी नहीं है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं उन लाखों महिलाओं की जिन्हें हम 'आशा कार्यकर्ता' के नाम से जानते हैं। ये वही आशा कार्यकर्ता जिन्हें 'मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता' के तौर पर जाना जाता है। आमतौर पर आशा कार्यकर्ताओं गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को लगने वाले टीके, दवाईयां और अन्य स्वास्थ्य मुद्दों के प्रति जागरूक करती हैं। इस कार्य में उनकी मदद करती हैं। फिलहाल ये कार्यकर्ता कोरोना महामारी के प्रति जागरूकता फैला रही हैं। कई कार्यकर्ता हैं जो आज भी कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रही हैं।
उन लाखों कार्यकर्ताओं में एक 'आशा कार्यकर्ता' मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव 'घुड़दल्या' से हैं, जिनका नाम हतरी बाई है। जिनकी कहानी काफी अलग और संघर्षपूर्ण है। हतरी बाई कोरोना महामारी के दौरान अपने गांव वालों को संक्रमण से बचाने के लिए एक योद्धा की तरह काम किया है। उनके इसी संघर्ष के लिए ओनली माय हेल्थ (जागरण न्यू मीडिया) की ओर से Rural Healthcare कैटेगरी में COVID Hero के तौर पर नामित किया गया है।
जानिए सबसे कम उम्र की आशा कार्यकर्ता हतरी बाई की कहानी
19 साल की हतरी बाई भारत की सबसे कम उम्र की आशा कार्यकर्ता हैं। हतरी का घर मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव घुड़दल्या में है। जहां आज भी सड़क और यातायात की पर्याप्त सुविधा नहीं है। हतरी अपने खुद के प्रयासों से प्रेगनेंट महिलाओं और नवजात शिशुओं की मदद करती हैं। मगर कोरोना काल में वह लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के उपाय बता रही हैं। लॉकडाउन के दौरान से ही उन्होंने न सिर्फ अपने गांव में बल्कि बाकी के गांवों में लोगों को जागरूक करने का काम किया।
नाव पर बैठकर ड्यूटी करने जाती हैं अस्पताल
घुड़दल्या गांव से सरकारी अस्पताल की दूरी 10 से 12 किलोमीटर है। मगर अस्पताल जाने के लिए कोई निर्धारित रास्ता नहीं है। अस्पताल तक पहुंचने के लिए उन्हें ऊंची-नीची पहाडियों और पथरीले रास्तों पर पैदल चलकर जाना पड़ता है। मगर उससे पहले 2 किलोमिटर तालाब का रास्ता नाव से तय करना पड़ता है। इसके लिए हतरी को प्रतिदिन 40 रूपए खर्च करने पड़ते हैं। नदी पार करने के बाद 8 से 10 किलोमीटर पैदल चलकर वह अस्पताल पहुंचती हैं।
कौन होते हैं आशा कार्यकर्ता?
दरअसल, शहर की तुलना में गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं अच्छी नहीं होती है, इसलिए गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार अलग-अलग कार्यक्रम चलाती है। इसी क्रम में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित जननी सुरक्षा योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैनात किए गए हैं। जिन्हें 'ASHA' के नाम से जाना जाता है। ASHA (आशा) का फुल फॉर्म Accredited Social Health Activist है। जिसका हिन्दी में अर्थ है 'मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता'। इन आशा कार्यकर्ताओं को सरकार द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है। सरकार इन्हें मानदेय देती है।
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