क्या : कोरोना पेशेंट के उपचार के लिए 6 माह तक घर से दूर रही।
क्यों : खुद के डर और अवसाद से लड़ते हुए कोरोना मरीजों की देखभाल
अस्पताल में नयना वर्तक का पहला सप्ताह काफी तनावपूर्ण था। वार्ड में प्रवेश करने से पहले वह भगवान को याद किया करती थी। उन्हें पता था कि जहां वह काम कर रही हैं वहां वायरस की चपेट में आने का खतरा ज्यादा है। लेकिन दूसरी तरफ वह यह भी सोचती थी कि उन्हें मरीजों की सही देखभाल करनी है। क्योंकि वे भी उनकी तरह परिवारों से दूर थे।
कोविड-19 के दौर में किसी भी महिला नर्स के लिए वह समय बहुत ही मुश्किलों भरा होता है, जब वह अपने परिवार को घर पर छोड़कर कोरोना मरीजों की देखभाल के लिए अस्पताल जाती है। कुछ ऐसी ही स्थिति मुंबई के डोम्बीवली में रहने वाली 27 वर्षीया नयना वर्तक की थी। लेकिन उन्होंने पारिवारिक भावनाओं के आगे अपनी जिम्मेदारी को आगे रखा और सर्किय रूप से करोना मरीजों की सेवा में लग गईं। बीमार सास, बीमार मां, पति और दो छोटी बच्चियों को छोड़कर वह अस्पताल में कोरोना के मरीजों की देखभाल कर रही हैं। उनकी इसी भावना को देखते हुए OMH Healthcare Heroes Awards में ‘बियोंड दी कॉल ऑफ ड्यूटी- पैरामेडिक्स के लिए नॉमिनेट किया गया है।
बता दें कि बतौर स्टाफ नर्स नयना वर्तक वाशी के हीरानंदानी अस्पताल में COVID विंग में विभिन्न आयु समूहों के रोगियों की देखभाल में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं। नयना वर्तक का परिवार बहुत ही बड़ा है। मां, सास, ननद, पति और दो छोटी बच्चियां हैं। उनकी मां हृदय संबंधी समस्याओं से जूझ रही हैं। वहीं, सास का हाल ही में मास्टेक्टॉमी (कैंसर का इलाज) का इलाज हुआ है।
परिवार को छोड़कर अपनी जान जोखिम डालकर अस्पताल में मरीजों की सेवा करना नयना वर्तक के लिए काफी चुनौतीपूर्ण स्थिति थी। शुरुआत में उन्होंने परिवार वालों को बताया कि वह ज्यादा समय के लिए अस्पताल में नहीं जा रही हैं। लेकिन जब उनके परिवार वालों को पता चला कि वह लंबे समय तक वहीं रहने वाली हैं, तो वह अपनी आंसू नहीं रोक पाए। उनके पति जब भी काम करके घर पहुंचते तो वे सभी हर समय यही देखते कि नयना उनके साथ आई है या नहीं। इस दौरान नयना अपने परिवार से वॉइस और वीडियो कॉल के जरिए जुड़ी भी रहीं। वीडियो कॉल पर बात करते हुए उनकी सास कहती हैं कि हमारी बेटी अपनी जिम्मेदारी निभा रही है।
नयना वर्तक बताती हैं कि अस्पताल में उनका पहला सप्ताह काफी तनावपूर्ण था। वार्ड में प्रवेश करने से पहले वह भगवान को याद किया करती थी। उन्हें पता था कि जहां वह काम कर रही हैं वहां वायरस की चपेट में आने का खतरा ज्यादा है। लेकिन दूसरी तरफ वह यह भी सोचती थी कि उन्हें मरीजों की सही देखभाल करनी है। क्योंकि वे भी उनकी तरह परिवारों से दूर थे।
शुरुआती छह महीनों में सिस्टर नयना ने कई जिंदगियों को छुआ। एक मरीज के बारे में बताते हुए नयना वर्तक कहती हैं। “एक मरीज जोकि एक लड़की थी, मुझसे उम्र में थोड़ी बड़ी थी। एडमिट होने के एक दिन बाद से मैं उसे दीदी कहा करती थी। वह मेरे साथ सहज महसूस करती थी और मुझे अपने बच्चों के बारे में बताती थी। उसे छुट्टी देने के बाद, मैंने उसकी प्रतिक्रिया पढ़ी। उसने लिखा, “मेरा अनुभव स्वर्ग जैसा था। भगवान ने मेरे लिए एक दूत भेजा था।” यह पढ़कर मैं बहुत भावुक हो गई थी।”
इस तरह नयना वर्तक ने हीरानंदानी अस्पताल में कई मरीजों की निस्वार्थ भाव से सेवा की। नयना भले ही अपनी बेटियों को बहुत याद करती हैं और चाहती हैं कि वह उन्हें हमेशा गले लगाए रखें, लेकिन दूसरी ओर वह अस्पताल और उन रोगियों के लिए अपनी ड्यूटी करके खुश हैं, जो इस समय संकट में हैं। उनका मानना है कि वह जिन रोगियों की देखभाल कर रही हैं वो सभी उनके दूसरे परिवार की तरह हैं। उनका सफल उपचार और छुट्टी के समय उनके द्वारा कहे गए शब्द, उन्हें हमेशा प्रेरित करते हैं।
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