OMH HealthCare Heroes Awards: ISRC की वो टीम जिसने कोविड-19 के मिथकों को दूर करने का काम किया

आई एस आर सी (ISRC) के वैज्ञानिकों की टीम से मिलें जिन्होंने अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करके COVID-19 के बारे में फैले मिथकों को खत्म किया।
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OMH HealthCare Heroes Awards: ISRC की वो टीम जिसने कोविड-19 के मिथकों को दूर करने का काम किया

कोरोनो वायरस बहुत तेज गति से फैला और कुछ ही महीनों में इसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। जिन यात्रियों ने चीन से पलायन किया, उन्होंने ही वायरस को दुनिया के बाकी हिस्सों में फैला दिया। तब WHO ने इसे एक 'महामारी' घोषित कर दिया। आईएसआरसी की स्थापना कैसे हुई (ISRC) हाथ में कोई इलाज नहीं होने के कारण, इस नए वायरस के बारे में जानकारी की कमी के कारण अटकलें, घबराहट, व भयावह स्थिति होने के कारण इस वायरस के बारे में झूठी और नकली ख़बरें भी तेजी से फैलने लगी।  भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने फैसला किया कि उन्हें कोविड 19 से सम्बन्धित मिथकों के इस फैलाव को रोकना होगा और इस तरह से ISRC का गठन हुआ। 

ISRC

10 वैज्ञानिकों और एक मिशन आईएसआरसी (ISRC)

आईएसआरसी भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप, COVID-19 के समूह के रूप में यह मिशन शुरू हुआ, और अब वह 500 से अधिक वैज्ञानिकों, पोस्ट-डॉक्स और स्नातक छात्रों का एक आंदोलन बन गया है। आईएसआरसी (ISRC) को अवेयरनेस वॉरियर्स की श्रेणी में  कोविड 19 के बारे में गलत सूचना के खिलाफ अपनी अथक लड़ाई के लिए ओनली माय हेल्थ के हेल्थकेयर हीरोज अवार्ड्स के लिए नामांकित किया गया है। 

आईएसआरसी (ISRC) का गठन क्यों किया गया?

जितनी तेजी से Covid-19 संक्रमण फैल रहा था उस की तुलना में झूठी खबरें और तेजी से फैल रहीं थीं। सोशल मीडिया हर प्रकार की खबरों के द्वारा भर गया। जिनमें से कुछ सच्ची भी थी तो कुछ झूठी भी। सोशल मीडिया पर हर नई पोस्ट या हर मैसेज इस वायरस के इलाज से जुड़ा हुआ था। 

जब लॉक डाउन हो गया  तो हमें पता चल गया था कि अब हेल्थ केयर वर्कर्स बहुत व्यस्त रहने वाले हैं। परन्तु उन वैज्ञानिकों का क्या जो हेल्थ केयर सेंटर में नहीं जुड़े हुए है? तो ISRC के एक सदस्य कहते हैं कि, "इस संस्था को बनाने का यह ही विचार था कि उन वैज्ञानिकों द्वारा इस वायरस से जुड़ी सारी झूठी खबरों को खत्म किया जाए और लोगों को सही जानकारी मिल।"

डॉ रितिका सूद, रिसर्च कोऑर्डिनेटर निमहंस बंगलुरु कहती हैं कि, "वह इस संस्था में जुड़ीं, क्योंकि उन्हें लगता था कि वैज्ञानिकों की भी समाज में एक जिम्मेदारी है। खासकर इस स्थिति में जब एक वायरस के बारे में लोगों को इतनी गलत फहमी है। प्रोफेसर सुभोजित, रामालिंगम स्वामी फेलो स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंस ने भी ओनली माय हेल्थ टीम से बात की। वह कहते हैं कि, "एक ऐसे वायरस के बारे में जो इंसानों ने पहले कभी देखा या सुना; हमें साइंस की भाषा को साधारण लोगों को आसान भाषा में समझाने के लिए एक टीम की आवश्यकता महसूस हुई।"

वैज्ञानिकों को झूठी खबरे क्यों खत्म करनी चाहिए?

प्रोफेसर रामानुजन कहते हैं कि,"लोगों का मानना है कि यह वायरस हमें अपना शिकार बना लेगा। परंतु ऐसा नहीं है। वायरस आप को कभी अपना टारगेट नहीं बनाता है। उसके पास कोई दिमाग भी नहीं होता है। एक होस्ट के बिना वायरस कहीं और रह ही नहीं सकता है। इसलिए लोगों को यह सब बातें बताना बहुत जरूरी है। प्रोफ़ेसर सेन मानते हैं कि वैज्ञानिक ही झूठ व सच में फर्क करने वाले सबसे बेस्ट लोग होते हैं। 

यह कैसे किया गया? 

यह एक बहुत सारे वैज्ञानिकों का समूह था जो अलग अलग विषय में माहिर थे। अतः सभी वैज्ञानिक एक साथ मिल कर नई नई जानकारियां पता करते और समाचार पत्रों व सोशल मीडिया के द्वारा लोगों में वायरस के प्रति क्या क्या गलत फहमिया हैं उन्हें पता लगाते। इन सब जानकारियों के आधार पर वह एक सच्ची व सटीक जानकारी वाली रिपोर्ट तैयार करते और लोगों को उसके बारे में बताते। 

डॉक्टर का यह भी चैलेंज था कि गलत जानकारी से अधिक सही जानकारी लोगों तक पहुंचे। इसलिए उन्होंने वॉट्सएप आदि पर भी जानकारियां शेयर की। यदि आप को इन वैज्ञानिकों की टीम का काम अच्छा लगा है तो उन्हें जिताने के लिए उन्हें वोट दें।

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