गुलियन बेरी सिंड्रोम (Guillain Barre Syndrome), एक दुर्लभ लेकिन गंभीर स्थिति है जिसमें शरीर की इम्यूनिटी नर्वस सिस्टम पर हमला करती है। यह समस्या आमतौर पर किसी वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन के बाद होती है। गुलियन बेरी सिंड्रोम के शुरुआती लक्षणों में कमजोरी, झुनझुनी और मांसपेशियों में दर्द शामिल होते हैं, जो शरीर के निचले हिस्से से शुरू होकर धीरे-धीरे ऊपर की ओर फैलते हैं। यह स्थिति व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है और कभी-कभी सांस लेने में परेशानी का कारण भी बन सकती है। हालांकि, समय पर इलाज से इसके असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इलाज की प्रक्रिया में डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री और लक्षणों की विस्तार से जांच करते हैं। साथ ही, नर्व कंडक्शन स्टडी, इलेक्ट्रोमायोग्राफी और लंबर पंक्चर जैसे कई टेस्ट्स के जरिए इसकी पुष्टि की जाती है। इस लेख में, हम आपको गुलियन बेरी सिंड्रोम की पहचान करने की प्रक्रिया पर विस्तार से जानकारी देंगे। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के केयर इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज की एमडी फिजिशियन डॉ सीमा यादव से बात की।
1. मेडिकल हिस्ट्री और लक्षणों की जांच- Medical History and Symptoms
- गुलियन बेरी सिंड्रोम का पता लगाने के लिए डॉक्टर सबसे पहले आपकी मेडिकल हिस्ट्री जानने की कोशिश करेंगे।
- इसके लक्षणों के लिए कमजोरी, झुनझुनी, मांसपेशियों का अकड़ना और सांस लेने में परेशानी शामिल हो सकती है।
- मांसपेशियों की ताकत, तालमेल और सेंसिटिविटी की जांच की जाती है।
- डॉक्टर यह भी देखते हैं कि क्या शरीर के एक हिस्से से शुरू हुई कमजोरी अन्य हिस्सों में फैल रही है।
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2. नर्व कंडक्शन स्टडी- Nerve Conduction Study
- यह टेस्ट नर्व्स के जरिए इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स के मूवमेंट को मापता है।
- नर्व कंडक्शन स्टडी में नर्व्स की गति धीमी हो जाती है, जो इस स्थिति का खास संकेत है।
- नर्व्स को होने वाले डैमेज या उसकी कार्यप्रणाली की कमी को समझने में यह टेस्ट मदद करता है।
3. इलेक्ट्रोमायोग्राफी- Electromyography
- इलेक्ट्रोमायोग्राफी, मांसपेशियों और नर्व्स के बीच होने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स की गतिविधि को मापता है।
- यह पता लगाने में मदद करता है कि समस्या नर्व्स में है या मांसपेशियों में।
4. लंबर पंक्चर- Lumbar Puncture
- इस प्रक्रिया में रीढ़ की हड्डी के चारों ओर से सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड का सैंपल लिया जाता है।
- गुलियन बेरी सिंड्रोम में सीएसएफ में प्रोटीन का स्तर बढ़ा हुआ पाया जाता है, जबकि वाइट ब्लड सेल्स सामान्य रहता है।
5. ब्लड टेस्ट और अन्य जांच- Blood Test and Other Test
- ब्लड टेस्ट से अन्य स्थितियों जैसे इंफेक्शन, मेटाबॉलिक समस्याएं या ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का पता लगाया जाता है।
- एमआरआई स्कैन कभी-कभी नर्व्स में सूजन या अन्य असामान्यताओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। हालांकि, यह गुलियन बेरी सिंड्रोम के लिए प्राथमिक टेस्ट नहीं है।
6. स्पेशल टेस्ट- Special Test
- डॉक्टर्स कभी-कभी फेफड़ों की कार्यक्षमता का आंकलन करते हैं, खासकर अगर मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही हो।
- कार्डियक मॉनिटरिंग भी की जा सकती है, क्योंकि गुलियन बेरी सिंड्रोम में दिल की धड़कन प्रभावित हो सकती है।
समय पर इलाज क्यों जरूरी है?
गुलियन बेरी सिंड्रोम तेजी से बढ़ने वाली स्थिति है, जो बिना इलाज के गंभीर रूप ले सकती है। समय पर इलाज कराने से मरीज को इम्यूनोथेरेपी, जैसे या प्लास्मा थेरेपी, से फायदा मिल सकता है। इससे नर्व डेमेज को रोका जा सकता है और रिकवरी की प्रक्रिया तेज हो सकती है।
अगर आपको या आपके किसी करीबी को कमजोरी, झुनझुनी या चलने में कठिनाई हो रही है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। गुलियन बेरी सिंड्रोम के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें। सही समय पर की गई जांच और इलाज से आप इस समस्या से उबर सकते हैं।
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