गॉलब्लैडर पित्ताशय और बाईल डक्ट कैंसर का निदान

पेट के ऊपरी हिस्से में यकृत के नीचे मौजूद पित्ताशय अर्थात गॉलब्लैडर एक छोटा, नाशपाती के आकार के अंग होता है, इसकी कोशिकाओं में अनियंत्रित बढ़त होने पर यह गॉलब्लैडर पित्ताशय और बाईल डक्ट कैंसर बन जाता है।
  • SHARE
  • FOLLOW
गॉलब्लैडर पित्ताशय और बाईल डक्ट कैंसर का निदान


पित्ताशय (गॉलब्लैडर) एक छोटा, नाशपाती के आकार का अंग होता है जो पेट के ऊपरी हिस्से में यकृत के नीचे मौजूद होता है। पित्ताशय में पित्त भरा रहता है, जो पाचन में मदद करने वाले यकृत द्वारा पैदा किया गया एक पाचक रस होता है। पित्ताशय पाचन के समय पित्त को बाईल डक्ट के जरिए छोटी आंत में छोड़ता है। बाईल डक्ट एक पतली नली होती है, जो यकृत और पित्ताशय को छोटी आंत में जोड़ती है। इन जगहों पर जब असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धी होती है तो यह गॉलब्लैडर पित्ताशय और बाईल डक्ट कैंसर कहता है।

 

अमेरिकन कैंसर सोसायटी के मुताबिक, पित्ताशय के 80 प्रतिशत कैंसर और बाईल डक्ट के 95 प्रतिशत कैंसर एडेनोकार्सिनोमा होते हैं, जो ग्रंथियों और नलिकाओं जिन्हें डक्ट्स भी कहा जाता है, की कोशिकाओं के कैंसर होते हैं। बाईल डक्ट एडेनोकार्सिनोमा (जिसे कोलेनजियोकार्सिनोमा के नाम से भी जाना जाता है) म्‍यूकस ग्लैंड्स से बनता है जो डक्ट्स में होती हैं और यह बाईल डक्ट के किसी भी हिस्से में पनप सकता है।

 

Gallbladder Pittashay Cancer in Hindi

 

हालांकि गॉलब्लैडर और बाईल डक्ट के कैंसर दुर्लभ होते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुमान के मुताबिक हर वर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 3,000 लोगों में बाईल डक्ट कैंसर पाया जाता है और जिनमें से गॉलब्लैडर कैंसर के 6,000 से 7,000 नए मामलों का निदान किया जाता है।

 

गॉलब्लैडर कैंसर पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक होता है। दरअसल पित्ताशय की पथरी वाले लोगों में गॉलब्लैडर कैंसर या बाईल डक्ट कैंसर होने का जोखिम अधिक होते हैं। बाईल डक्ट कैंसर के मामले एशिया में सबसे अधिक पाए जाते हैं। ये लिवर फ्ल्‍यूक पैरासाईट, स्लेरोसिंग कोलेनजाईटिस, अल्सिरेटिव कोलाईटिस और साइरोसिस तथा सिरोसिस संक्रमणों से जुड़े होते हैं।

 

गॉलब्लैडर और बाईल डक्ट कैंसर के लक्षण

शुरूआती अवस्था में गॉलब्लैडर कैंसर और बाईल डक्ट कैंसर के कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इनमें से अधिकांश कैंसरों का पता तब चलता है जब गॉलब्लैडर को पित्ताशय की पथरी (गॉलस्टोन्स) के उपचार के लिए हटाया जा रहा होता है। ये ट्यूमर शुरूआती अवस्था में सामान्य शारीरिक जांच के दौरान देखे या महसूस नहीं किए जा सकते और इनके स्क्रीनिंग टेस्ट नहीं किए जा सकते।

 

जांडिस अर्थात पीलिया, बाईल डक्ट कैंसर का सबसे सामान्य लक्षण होता है और गॉलब्लैडर कैंसर वाले लगभग आधे मरीजों में निदान के समय जांडिस देखा जाता है। जांडिस में शरीर की त्वचा और आंखों में पीलापन आ जाता है। ऐसा तब होता है जब गुर्दे से पित्त (बाईल) नहीं निकलता जिससे बिलीरूबिन (बाईल में एक गहरा पीले रंग का केमिकल) का स्तर खून में बढ़ जाता है। बाईल और बिलीरूबिन से खुजली भी हो सकती है। हालांकि गॉलब्लैडर और बाईल डक्ट कैंसर वाले अधिकांश लोगों को जांडिस होता है, लेकिन फिर भी जांडिस के अधिकांश मामले कैंसर के नहीं बल्कि हेपेटाईटिस के होते हैं। इसके अलावा गॉलब्लैडर या बाइल डक्ट कैंसर के लक्षणों में कभी-कभी लगातार पेट दर्द भी शामिल होता है। इसमें होने वाला दर्द, पेट में ऊपरी दाएं हिस्से में महसूस होता है। इसके साथ  मतली, उल्टीं या फिर दोनों भी हो सकते हैं।

 

गॉलब्लैडर और बाईल डक्ट कैंसर से बचाव

यूं तो गॉलब्लैडर और बाईल डक्ट कैंसर से बचाव के कोई निश्चित उपाय नहीं हैं। हालांकि गॉलब्लैडर कैंसर के जोखिम नियंत्रित किए जा सकता है ताकि शरीर में यह बीमारी पैदा ही न हो पाए। इसके लिए अपने शरीर का वजन संतुलित रखना चाहिए और धूम्रपान से दूर रहना चाहिए। इसके अलावा लीवर फ्ल्यूक इन्फेक्शन और हेपेटाईटिस से बचाव और उपचार कर भी बाईल डक्ट कैंसर का जोखिम कम करता है।हेपेटाईटिस बी ग्रसित व्यक्ति के सम्पर्क में आते हैं तो जितनी जल्दी हो सके अपने डॉक्टर से इम्यूनोग्लोबिन शॉट या वैक्सीन के लिए उनुरोध करें।

 

पित्ताशय और बाईल डक्ट कैंसर का निदान

डॉक्टर आपके चिकित्सकीय इतिहास (मेडिकल हिस्ट्री) की जानकारी करेगा और शारीरिक जाँच करेगा। जाँच मुख्य रूप से पेट की की जाती है। डॉक्टर आपके पेट में किसी पिंड, मुलायम हिस्सों , तरल के संचय और बढ़े अंगों की जाँच  करेंगे। इसके अलावा पीलिया के लक्षण पहचानने के लिए डॉक्टर आपकी त्वचा और आँखों की जाँच करेगा और सूजन के विभिन्न हिस्सों  पर लिम्फ नोड्स की जाँच  भी करेगा। इसके निदान के लिए आपको निम्न परीक्षण कराने पड़ सकते हैं-

 

Gallbladder Pittashay Cancer in Hindi

 

ब्लड केमेस्ट्री टेस्ट

गुर्दे और गॉलब्लैडर के एंजाईम्स और बिलीरूबिन, जो कि बाईल को रंग प्रदान करने वाला केमिकल होता है, को जानने के लिए लैबोरेटरी टेस्ट किए जाते हैं। बिलीरूबिन का रक्त में ज्यादा पाया जाना बाईल डक्ट में किसी रूकावट या गॉलब्लैडर या गुर्दे की किसी बीमारी का संकेत दे सकता है। अल्कालाईन फॉस्फेट का बढ़ा हुआ स्तर भी बाईल डक्ट में अवरोध या गॉलब्लैडर की बीमारी का पता देता है। यदि इन पदार्थों के बढ़े हुए स्त‍र कैंसर या किसी अन्य कारण से हैं तो ब्लड टेस्ट से इसका पता नहीं चलता।

 

अल्ट्रॉसाउंड

अल्ट्रॉसाउंड से आधे गॉलब्लैडर कैंसर का पता चल जाता है और यदि पिंड काफी बढ़ गया है तो बाईल डक्ट में किसी रूकावट या ट्यूमर का पता भी इससे चल जाता है। शरीर के आंतरिक अंगों की छवि बनाने के लिए अल्ट्रा साउंड में ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। अल्ट्रॉसाउंड के साथ एंडोस्कोपी और लैप्रोस्कोपी भी की जा सकती है। इन प्रक्रियाओं की जरूरत कुछ ही मामलों में पड़ती है। एंडोस्कोपी में, एंडोस्कोप नाम की एक लचीली, व्यूइंग ट्यूब मुंह, पेट और छोटी आंत के शुरूआती हिस्से तक डाली जाती है जहां बाईल डक्ट खुलता है।

 

लैप्रोस्कोपी, एक सीमित प्रकार की सर्जरी है, जिसमें लैप्रोस्कोप नाम के सर्जिकल उपकरण को शरीर में छोटा चीरा लगाकर अंदर डाला जाता है। गॉलब्लैडर की सही स्थिति जानने के लिए दोनों प्रक्रियाओं में अल्ट्रॉंसाउंड ट्रांसड्यूसर का इस्तेमाल होता है जिससे साधारण अल्ट्रॉसाउंड की अपेक्षा अधिक बेहतर छवियां मिल पाती हैं।

 

कंप्‍यूटेड टोमोग्रॉफी (सीटी)

इस टेस्ट में शरीर की विस्तृत, अनुप्रस्थ (क्रॉस-सेक्शनल) छवियां बनाने के लिए एक घूमती हुई एक्स–रे बीम का इस्तेमाल किया जाता है। सीटी स्कैन से गॉलब्लैडर के अंदर या इसके बाहर फैले ट्यूमर की पहचान होती है। इससे यह भी जानने में मदद मिल सकती है कि क्या ट्यूमर बाईल डक्ट, यकृत या पास के लिम्फ नोड्स तक फैल चुका है।

 

मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और एमआरसीपी

ये स्कैन, आंतरिक अंगों की अनुप्रस्थ (क्रॉस सेक्शिनल) छवियां निर्मित करते हैं, हालांकि ये रेडिएशन के बजाय रेडियो तरंगों और शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग करते हैं। अल्ट्रॉसाउंड और सीटी स्कैन की तुलना में ये अधिक सटीक छवियां बना सकते हैं और प्रभावी तरीके से यह दिखा सकते हैं कि कोई ट्यूमर केवल गॉलब्लैडर में ही है या पास में यकृत तक फैल गया है।

 

एक विशेष प्रकार की मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग, मैग्नेटिक रिजोनेंस कोलंजियोपैंक्रिएटोग्रॉफी (एमसीआरपी) छवि को बाईल डक्ट अलग दिखलाते हुए निर्मित करती है जो बाईल डक्ट कैंसर का पता लगाने का सर्वश्रेष्ठ अप्रवेश्य (नॉन-इन्वेसिव) तरीका है। हालांकि निदान की पुष्टि के लिए बॉयोप्सी कराने की भी जरूरत हो सकती है।


एंडोस्कोंपिक रिट्रोग्रेड कोलंजियोपैंक्रिएटोग्रॉफी (ईआरसीपी)

इस प्रक्रिया में एक लचीली ट्यूब को गले, एसोफैगस और पेट से गुजारते हुए मुख्य बाईल डक्ट में पहुंचाया जाता है। एक्स–रे छवि में बाईल डक्ट को देखने के लिए कांट्रास्ट डाई को थोड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता है जो बाईल डक्ट का संकरा होना या इसमें कोई रूकावट होना दिखा सकता है।

 

ईआरसीपी का लाभ यह है कि किसी रूकावट वाले हिस्से की बॉयोप्सी के लिए उसी उपकरण का ही उपयोग किया जा सकता है। ईआरसीपी के दौरान स्टेंईट नामक एक उपकरण डालते हुए भी रूकावट को ठीक किया जा सकता है जो कई बार सर्जरी की जरूरत खत्म कर देता है। स्टेंएट एक वॉयर मेश ट्यूब होती है जो बाईल डक्ट को खुला रहने में मदद करती है।

 

यदि कैंसर गॉलब्लैडर या बाईल डक्ट में पाया गया है तो सर्जरी जरूरी हो जाती है। अंतिम रूप से, निदान पक्का करने के लिए, ट्यूमर या पिंड से की बायोप्सी की जाती है।

Read Next

मिट्रल वाल्व प्रोलैप्स क्‍या है

Disclaimer

How we keep this article up to date:

We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.

  • Current Version