दिल्ली सरकार ने पटाखों पर लगाया बैन, वायु प्रदूषण से होने वाली इन बीमारियों का जोखिम होगा कम

दिल्ली सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए पटाखों पर प्रतिबंध लगाया है। ऐसे में कुछ बीमारियों का खतरा भी कम हो सकेगा। 
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 दिल्ली सरकार ने पटाखों पर लगाया बैन, वायु प्रदूषण से होने वाली इन बीमारियों का जोखिम होगा कम

दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए दिल्ली सरकार ने पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब दिल्ली में पटाखों की बिक्री और खरीदी पर पूरी तरह से रोक लग गई है। हर साल दिवाली पर पटाखे जलाए जाने के कारण प्रदेश में वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता था। जिसके बाद से अस्थमा, हार्ट और फेफड़ों की समस्याओं के मरीजों की संख्या भी बढ़ जाती थी। 

प्रदूषण से मिलेगी राहत  

दिसंबर, जनवरी में पटाखों के कारण आमतौर पर प्रदूषण बढ़ जाता है, जिसे देखते हुए सरकार द्वारा पहले से ही इसकी रोकथाम के लिए कदम उठाया जा रहा है। सेंट्रल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक पटाखे जलाए जाने पर उनमें से कुछ जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डायॉक्साइड, कार्बन डाईऑक्साइड और कुछ मेटल सॉल्ट्स जैसे मैग्नीशियम, काडिमियम और एलुमिनियम आदि रिलीज होते हैं, जो न केवल प्रदूषण का कारण बनते हैं, बल्कि लोगों की सेहत को भी नुकसान पहुंचाते हैं।  

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कम होंगी ये बीमारियां 

फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, नोएडा के डॉक्टर रमन कुमार के मुताबिक पटाखे बैन होने से लोगों की सेहत पर अच्छा असर पड़ सकता है। आमतौर पर हम देखते हैं कि दिवाली पर पटाखे जलाए जाने पर अस्थमा और हार्ट से जुड़ी समस्याओं के मामले बढ़ जाते हैं। पटाखे बैन होने से प्रदूषण निश्चित तौर पर कम होगा, जिससे लोगों के स्वास्थ्य भी बेहतर हो सकेगा।दरअसल, पटाखे जलाए जाने पर हवा में बहुत सारे छोटे-छोटे दूषित कण फैल जाते हैं, जो आपके मुंह के रास्ते शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और फेफड़ों तक जा सकते हैं। ऐसे में स्वस्थ व्यक्ति को भी सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। वहीं, अगर आप अस्थमा के मरीज हैं तो ऐसे में स्थिति गंभीर भी हो सकती है। 

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अस्थमा और हार्ट से जुड़ी बीमारियों से मिलेगी राहत  

प्रदूषण बढ़ने पर एयर क्वालिटी इंडेक्स काफी कम हो जाता है। ऐसे में स्ट्रोक, कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम प्रभावित होना, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) और फेफड़ों का कैंसर होने के मामले काफी बढ़ जाते हैं। पटाखे बैन होने के बाद लोगों में ऐसी समस्याओं के मामले कम हो सकेंगे। यही नहीं इससे सांस लेने में कठिनाई, अस्थमा या फिर बच्चों में फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका भी काफी कम हो सकेगी।

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