भारत समेत दुनिया के कई देशों में अब 5G network सुविधा लॉन्च हो गई है। 5जी दुनिया का सबसे आधुनिक और तेज नेटवर्क है। 5G स्मार्टफोन्स के बाजार में आने से लोग उत्साहित तो हैं लेकिन उनके मन में 5जी और स्वास्थ्य के प्रति चिंता भी देखने को मिल रही है। कुुछ लोगों में ऐसी अफवाह फैली है कि 5G नेटवर्क, शरीर में कैंसर या ब्रेन ट्यूमर का कारण बन सकता है। आपको बता दें कि 5जी नेटवर्क, हाई फ्रीक्वेंसी का उपयोग करता है जिससे इसकी स्पीड बढ़ती है। नेटवर्क में दो तरह के रेडिएशन होते हैं। पहला टॉवर से निकलने वाला और दूसरा मोबाइल से निकलने वाला रेडिएशन। 5G network के लिए ज्यादा बैंडविथ की जरूरत होती है तभी वो अच्छी स्पीड दे सकेगा। ओनलीमायहेल्थ की स्पेशल Fact Check सीरीज 'धोखा या हकीकत' में आइए जानते हैं, क्या 5G नेटवर्क के इस्तेमाल से कैंसर होता है? इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने लखनऊ के केयर इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज की एमडी फिजिशियन डॉ सीमा यादव से बात की।
क्यों हो रहा है 5G का विरोध?
फिलहाल दुनिया के 34 देशों के 378 शहरों में 5G network सेवा उपलब्ध है। ऐसा अनुमान है कि दुनियाभर में साल 2025 तक 60 फीसद मोबाइल यूजर्स इससे जुड़ सकते हैं। लेकिन कई लोग 5जी का विरोध कर रहे हैं। उनका मनना है कि इसके इस्तेमाल से मानव शरीर में कैंसर का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि मोबाइल टॉवर्स से निकलने वाला रेडिएशन हानिकारक होता है।डब्ल्यूएचओ ने भी माना है कि रेडिएशन से मानव शरीर के तापमान में वृद्धि होती है। आखिर लोगों की चिंता सही या नहीं इससे जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।
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क्या 5G के इस्तेमाल से कैंसर होता है?
राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की मानें, तो फोन या 5जी के कारण हमें किसी भी प्रकार के कैंसर के बनने का खतरा नहीं है। शोधकर्ताओं ने पाया कि फोन के इस्तेमाल से सेंट्रल नर्वस सिस्टम में ट्यूमर बनने जैसे कोई लक्षण अब तक देखे नहीं गए हैं। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएअई) की मानें, तो 5जी और कैंसर पर जो दावे किए जा रहे हैं, वो गलत हैं। अभी तक उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर कहा जा सका है कि फिलहाल 5जी नेटवर्क सुरक्षित है।
क्या 5G की फ्रीक्वेंसी डीएनए को नुकसान पहुंचाती है?
5G तकनीक की बात करें, तो इसमें 80 GHz तक की फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं 2G, 3G और 4G 0.7 और 2.7 GHz के बीच की फ्रीक्वेंसी पर काम करते हैं। ये चारों ही रेंज इतनी मजबूत नहीं है कि हमारे डीएनए को नुकसान पहुंचा सके। कॉस्मिक किरणे और एक्स-रे की फ्रीक्वेंसी ज्यादा होती है और डीएनए को नुकसान पहुंचने की संभावना बढ़ जाती है इसलिए कहा जाता है कि एक्स-रे या सीटी स्कैन का इस्तेमाल कम से कम किया जाना चाहिए।
5G तकनीक पर क्या कहता है WHO?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानें, तो 5जी में इस्तेमाल होने वाली फ्रीक्वेंसी पर फिलहाल सीमित रिसर्च की गई है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड के कारण स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है, इस पर शोध बाकि है। लेकिन फिलहाल ये कहा जा सकता है कि 5जी तकनीक से जुड़े कोई स्वास्थ्य जोखिम नहीं है। 5जी से जुड़े कुछ मिथक भी हैं जिनकी सच्चाई आपको पता होनी चाहिए। ऐसा दावा किया जा रहा था कि कोविड वैक्सीन में 5जी माइक्रोचिप है जबकि ऐसा नहीं है। अन्य दावे में बताया गया है कि 5जी का इस्तेमाल कोविड महामारी को ढकने के लिए हो रहा है। ये दावा भी झूठा है। तीसरे दावे में 5जी के कारण सिर में दर्द, माइग्रेन और चक्कर आने का दावा किया गया लेकिन ये भी सच नहीं है।
खुद चेक करें अपने फोन का रेडिएशन स्तर
अगर आप अपने फोन का रेडिएशन चेक करना चाहते हैं, तो ये बेहद आसान है। मोबाइल से *#07# डायल करें। स्क्रीन पर तुरंत रेडिएशन संबंधी जानकारी आ जाएगी। इसमें 2 तरह के रेडिएशन स्तर नजर आएंगे। पहला हेड और दूसरा बॉडी। हेड यानी फोन पर बात करते समय मोबाइल रेडिएशन का स्तर और बॉडी यानी फोन का इस्तेमाल करते समय या जेब में रखे फोन के रेडिएशन का स्तर। इस स्तर को सार वैल्यू कहा जाता है। आईफोन यूजर्स सार वैल्यू की जांच करने के लिए सेटिंग में जनरल के बाद लीगल ऑप्शन खोलें और आरएफ एक्सपोजर चेक करें।
कितना होना चाहिए मोबाइल का रेडिएशन स्तर?
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के ‘स्पेसिफिक एब्जॉर्प्शन रेट’ (सार) के मुताबिक, किसी भी स्मार्टफोन या स्मार्ट डिवाइस का रेडिएशन 1.6 वॉट प्रति किलोग्राम से ज्यादा नहीं होना चाहिए। अगर फोन की सार वैल्यू 1.6 W/kg से ज्यादा है तो अपना फोन तुरंत बदल लें।
क्या रेडिएशन से बचाव संभव है?
विशेषज्ञों की मानें, तो रेडिएशन से पूरी तरह से बचना संभव नहीं है। लेकिन कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं जैसे-
- नेटवर्क कमजोर होने या फिर बैटरी कम होने पर फोन न करें। इस दौरान रेडिएशन ज्यादा हो सकता है।
- जरूरत पड़ने पर ईयरफोन या हेडफोन का इस्तेमाल करें लेकिन आवाज तेज न रखें ताकि कानों को नुकसान से बचाया जा सके।
- फोन को चार्ज करते समय कभी बात न करें। चार्जिंग के दौरान भी मोबाइल रेडिएशन 10 गुना बढ़ जाता है।
5G Se Cancer Hota Hai? 4जी के मुकाबले 5जी की फ्रीक्वेंसी ज्यादा जरूर है लेकिन फिलहाल ये इंसान के शरीर में मौजूद टिशू तक पहुंचने लायक नहीं है। मौजूदा शोध के आधार पर ये कहना गलत होगा कि 5जी नेटवर्क के इस्तेमाल से कैंसर होता है। ज्यादा फ्रीक्वेंसी वाले रेडिएशन से कैंसर का खतरा होता है जिससे आयोनाइजिंग रेडिएशन कहते हैं जबकि फोन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन की श्रेणी में आता है।
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