वर्तमान में प्रोबोयोटिक का इस्तेमाल दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञों की मानें, तो प्रोबायोटिक्स दवाओं एवं उत्पादों का अंधाधुंध इस्तेमाल हानिकारक हो सकता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने प्रोबायोटिक के बढ़ते बाजार और इससे हो सकने वाले नुकसान को गंभीरता से लेते हुए नए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार प्रोबायोटिक्स के अधिक इस्तेमाल करने से डायरिया और पेट में दर्द व गंभीर स्किन एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यही नहीं कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए प्रोबायोटिक्स का अधिक उपयोग घातक सकता है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रोबायोटिक्स का बाजार 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। लोग विज्ञापन देखकर व बिना जानकार की सलाह के अपनी मर्जी से ही प्रोबायोटिक उत्पाद धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं। जबकि ज्यादातर लोगों को इसके इस्तेमाल के सही तरीके व सावधनियों और रखरखाव की सही जानकारी नहीं है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रोबायोटिक्स में एंटीबायोटिक्स के दुष्प्रभाव अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया से होते हैं। प्रोबायोटिक एक प्रकार का खाद्य पदार्थ है, जिसमें जीवित बैक्टीरिया या सूक्ष्मजीव होते हैं।
प्रोबायोटिक का भारतीयों पर क्या प्रभाव होगा, इसके बारे में अभी शोध नहीं होता है। भारत में प्रोबायोटिक उत्पादों का बाजार हर साल 40 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इस समय हमारे देश में प्रोबायोटिक का लगभग 120 करोड़ रुपये का बाजार है।
पहले से बीमार व्यक्ति द्वारा इसके सेवन किये जाने पर जो जीवाणु हमारे शरीर में मौजूद नहीं हैं, उनके सेवन से उस बीमार व्यक्ति को नुकसान हो सकता है। लंबी बीमारी से ग्रस्त लोगों में प्रतिरोधक क्षमता पहले ही कम होती है। ऐसे में नए जीवाणुओं से संक्रमण की आशंका भी होती है।
विशेषज्ञों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के अग्नाशय (पेनक्रियास) में सूजन हो, तो उसके लिए प्रोबायोटिक खतरनाक हो सकता है। प्रोबायोटिक में जीवाणु काफी अधिक संख्या में होते हैं, जो अधिक आक्सीजन की मांग करते हैं। अग्नाशय में सूजन के कारण पहले से कम रक्त प्रवाह होता है, और फिर प्रोबायोटिक के कारण स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
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