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शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स के बढ़ने या कम होने पर कौन-सी बीमारियां हो सकती हैं? डॉक्टर से जानें

ब्लड प्लेटलेट्स के कम या ज्यादा होने से दिल, पैर और फेफड़ों को नुकसान हो सकता है।
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शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स के बढ़ने या कम होने पर कौन-सी बीमारियां हो सकती हैं? डॉक्टर से जानें


जब भी किसी को डेंगू या चिकनगुनिया जैसी बीमारियां होती हैं, तो अक्सर सबसे पहले प्लेटलेट्स चेक किए जाते हैं। रोगी के सुबह और शाम को ब्लड सैंपल लिया जाता है और प्लेटलेट्स की संख्या देखी जाती है। अगर रोगी के प्लेटलेट्स कम हों, तो उसे दवाइयों के साथ पानी और फ्लूइड लेने को कहा जाता है ताकि प्लेटलेट्स बढ़ सकें। आमतौर पर लोगों को ये पता होता है कि प्लेटलेट्स ज्यादा होने चाहिए, लेकिन शायद ही कोई जानता है कि इनका आखिर शरीर में क्या काम होता है। इसके साथ ये भी जानना जरूरी है कि अगर प्लेटलेट्स ज्यादा हो जाएं, तो भी कई समस्याएं आ सकती हैं। इस बारे में हमने गुरुग्राम के आर्टेमिस अस्पताल के इंटरनल मेडिसन के सीनियर कंस्लटेंट डॉ. पी वेंकट कृष्णन से बात की।

ब्लड प्लेटलेट्स क्या करते हैं?

प्लेटलेट्स खून में ऐसी छोटी-छोटी कोशिकाएं होती हैं, जो खून को रोकने का काम करती हैं। जब किसी को चोट लगती है, तो वहां पर प्लेटलेट्स थक्के की तरह जम जाती हैं ताकि ज्यादा खून न बहे। आप इस तरह से कह सकते हैं कि ये बैंडेज का काम करती हैं। जब बात ब्लड प्लेटलेट्स की हो रही है, तो इस बात का ध्यान रखें कि शरीर में प्लेटलेट्स प्रचुर मात्रा में होना बहुत जरूरी है, नहीं तो छोटी सी चोट में ब्लीडिंग होने पर खून नहीं रुकेगा। ये कई मामलों में जानलेवा भी हो सकता है।

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प्लेटलेट्स की सामान्य रेंज

इस बारे में बात करते हुए डॉ. पी वेंकट कहते हैं कि एक व्यस्क के खून में 150000 से 450000 प्लेटलेट्स प्रति माइक्रोलीटर होना चाहिए। हालांकि, ये रेंज कुछ मामलों में किसी व्यक्तिगत और लैबरोटरी मैथेड्स के चलते थोड़ी अलग हो सकती है। ये प्लेटलेट्स शरीर के बोन मैरो, खून और तिल्ली में बनते हैं, और सबसे अच्छी बात यह है कि इंसान के शरीर में यह प्रक्रिया लगातार होती रहती है। इसलिए प्लेटलेट्स को लेकर ज्यादा चिंता की बात नहीं होती। अगर किसी भी तरह की बीमारी हो, जो प्लेटलेट्स पर असर डालती है, उस समय प्लेटलेट्स की संख्या को लेकर चिंता हो सकती है।

प्लेटलेट्स के बढ़ने के कारण बीमारियां

अगर प्लेटलेट्स असामान्य रूप से बढ़ते हैं, तो थ्रोम्बोसाइटोसिस का खतरा बढ़ सकता है। प्लेटलेट्स ज्यादा होने से खून में थक्के या गांठ बनने की संभावना बढ़ जाती है। प्राइमरी थ्रोम्बोसाइटोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें बोन मैरो में ज्यादा प्लेटलेट्स बनने लगते हैं। सेकेंडरी थ्रोम्बोसाइटोसिस में किसी बीमारी, चोट के कारण या तिल्ली न होने के कारण जरूरत से ज्यादा प्लेटलेट्स होने लगते हैं। रोगी को सिरदर्द, नाक या मुंह से खून आना और चक्कर आने लगते हैं। डॉ. पी वेंकट ने बताया कि प्लेटलेट्स ज्यादा होने पर कई तरह की समस्याएं होने लगती है।

  • इस स्थिति में दिल का दौरा, स्ट्रोक या डीप वेन थ्राम्बोयेसिस हो सकता है।
  • प्लेटलेट्स थक्के बनाने का काम करते हैं, लेकिन अगर प्लेटलेट्स ज्यादा हो जाएं, तो असामान्य रक्तस्त्राव हो सकता है।
  • रोगी के नाक या मुंह से खून आ सकता है।
  • पैर, फेफड़ों या दिमाग में खून के थक्के जम सकते हैं।

प्लेटलेट्स कम होने की वजह से बीमारियां

जरूरत से ज्यादा ब्लड प्लेटलेट्स कम होने की स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोपीनिया कहते हैं। यह समस्या जेनेटिकल या फिर अस्वस्थ जीवनशैली, बहुत अधिक केमिकल वाली जगह में रहना, या फिर किसी दवाई के कारण बोन मैरो कम प्लेटलेट्स बनाती है। कई बार ये भी देखा गया है कि बोन मैरो तो नियमित प्लेटलेट्स बनाती है, लेकिन शरीर उसे जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर लेता है। डॉ. पी वेंकट का कहना है कि अगर शरीर में प्लेटलेट्स कम हो जाएं, तो भी शरीर को बहुत नुकसान पहुंचता है। इसमें सबसे मुख्य दिक्कत दो होती हैं।

  • संक्रमण - कम प्लेटलेट्स में शरीर की इंफेक्शन से लड़ने की क्षमता बहुत कम हो जाती है। इससे कई तरह के संक्रमण होने के चांस बढ़ जाते हैं।
  • ब्लीडिंग - कम रेंज में प्लेटलेट्स होने से हल्की चोट से लेकर अंदरूनी गंभीर ब्लीडिंग हो सकती है।

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प्लेटलेट्स की जांच

अगर आपको प्लेटलेट्स को लेकर परेशानी हो रही है, तो डॉ. पी वेंकट के अनुसार आप इन तरीकों को अपना सकते हैं।

  • ब्लड टेस्ट कराएं - डॉक्टर से सलाह लेकर आप कम्पलीट ब्लड काउंड (CBC) टेस्ट कराएं।
  • रिपोर्ट डॉक्टर को दिखाएं - अगर प्लेटलेट्स कम या ज्यादा होंगे, तो डॉक्टर उसका कारण और इलाज की सलाह देंगे। खुद ही रिपोर्ट से परिणाम न निकालें और न ही बिना डॉक्टर की सलाह लिए कोई भी दवाई लें।

अगर बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो या चोट लगती रहे, तो जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलें क्योंकि बीमारी का जल्दी पता चलने पर उसका इलाज काफी प्रभावी तरीके से हो सकता है।

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