टीबी (Tuberculosis) एक संक्रामक बीमारी है जो ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से होती है। ज्यादातर लोगों में आम धारणा है कि टीबी की बीमारी सिर्फ फेफड़ों में होती है जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। टीबी की बीमारी आपके शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। समय रहते इस संक्रामक बीमारी बीमारी का इलाज कराने से मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो सकता है। कई मामलों में टीबी की पुरानी बीमारी (Chronic Tuberculosis) की वजह से फेफड़ों से जुड़े गंभीर रोग भी हो सकते हैं जिन्हें क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज (Chronic Respiratory Disease) के नाम से जाना जाता है। कई शोध और अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि टीबी जैसी गंभीर संक्रामक बीमारी के कारण लोगों में फेफड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियां जैसे ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी आदि हो सकती हैं। यह अक्सर भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर देखा जाता है। दरअसल जिस क्षेत्र में टीबी के रोगियों की संख्या ज्यादा होती है वहां पर ऐसे मरीजों में जिन्हें लंबे समय से टीबी की बीमारी होती है उन्हें फेफड़े से जुड़े गंभीर रोग हो सकते हैं। आइये विस्तार से जानते हैं टीबी की बीमारी और क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज के बीच संबंध के बारे में।
टीबी और फेफड़ों की गंभीर बीमारी के बीच संबंध (Correlation Between Tuberculosis and Chronic Respiratory Diseases)
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टीबी की बीमारी ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के संपर्क में आने से होती है और सबसे ज्यादा यह बीमारी फेफड़ों को प्रभावित करती है। फेफड़ों में होने वाली टीबी की समस्या को पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। लेकिन जब टीबी फेफड़े के बाहर शरीर के किसी दूसरे अंग में होती है तो इसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी का नाम दिया जाता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। अवध हॉस्पिटल के चेस्ट स्पेशलिस्ट और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ एस के मेहरा के मुताबिक जिन लोगों में पल्मोनरी टीबी की समस्या लंबे समय से होती है उनमें फेफड़े और सांस लेने से जुड़ी कई गंभीर समस्याओं का खतरा रहता है। दरअसल जब लोगों में समय से टीबी की बीमारी के बारे में पता नहीं चल पाता है तो ऐसे में मरीज को कई बार सांस लेने में दिक्कत, अस्थमा जैसी अन्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे मरीजों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीस/सीओपीडी या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग्स डिसीस होने का खतरा अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा होता है। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा, ऑक्यूपेशनल लंग डिजीज और पल्मोनरी हाइपरटेंशन आदि इससे जुड़ी बीमारियां होती हैं। टीबी के मरीजों में ये बीमारियां जीवनशैली से जुड़े कुछ अन्य कारणों से भी हो सकती हैं।
टीबी के मरीजों में क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज का खतरा होने के जोखिम कारक (Tuberculosis and Chronic Respiratory Diseases Risk Factors)
टीबी को एक गंभीर और संक्रामक श्वसन रोग माना जाता है। यह बीमारी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के संपर्क में आने से होती है। आमतौर पर टीबी की समस्या फेफड़ों में देखने को मिलती है लेकिन इस समस्या से शरीर के अन्य अंग जैसे गला, किडनी, रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क भी प्रभावित हो सकते हैं। जब यह बीमारी समय से पहचान में नहीं आती है और समय पर इसका इलाज नहीं होता है तो यह शरीर में गंभीर रूप धारण कर लेती है। इसके कारण यह बीमारी शरीर के अन्य हिस्से में भी फैल जाती है। टीबी के मरीजों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) या फेफड़ों से जुड़ी अन्य गंभीर बीमारियों का जोखिम अन्य लोगों के तुलना में जयादा होता है। कई बार मरीज का सही समय पर इलाज नहीं हो पाता है तो उसके फेफड़े डैमेज होने लगते हैं और सांस की नली में गंभीर समस्या देखने को मिलती है। टीबी के मरीजों में फेफड़ों से जुड़ी बीमारी के प्रमुख कारक इस प्रकार से हैं।
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- समय पर इलाज न होना।
- फेफड़ों के आसपास के हिस्से में संक्रमण का फैलना।
- टीबी के संक्रमण की वजह से श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचना।
- टीबी की बीमारी में तंबाकू का सेवन।
- टीबी की बीमारी में धूम्रपान।
- खानपान और जीवनशैली से जुड़े कारक।
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डॉक्टर टीबी की बीमारी के लक्षण दिखने पर मरीज को तुरंत जांच कराने की सलाह देते हैं। जांच की रिपोर्ट के आधार पर मरीज को एक्सपर्ट डॉक्टर की देखरेख में इलाज कराने की सलाह दी जाती है। टीबी जैसे गंभीर संक्रमण से बचाव के लिए चिकित्सक हमेशा संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में न जाने की सलाह देते हैं। जरूरी पड़ने पर मरीजों के संपर्क में जाने से पहले मास्क जरूर लगाना चाहिए। टीबी जैसी गंभीर और संक्रामक बीमारी के संपर्क में आने से बचने के लिए तंबाकू, गुटका और स्मोकिंग आदि से दूरी बनाए रखनी चाहिए। इस बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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