टीबी रोग को हफ्तेभर में सही करती है लौंग, जानें इस्तेमाल की विधि

लौंग सिर्फ एक मसाला नहीं है बल्कि यह एक दवा भी है। दांत से लेकर सांस तक की बीमारी में लौंग बहुत कारगर है। 
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टीबी रोग को हफ्तेभर में सही करती है लौंग, जानें इस्तेमाल की विधि


लौंग सिर्फ एक मसाला नहीं है बल्कि यह एक दवा भी है। दांत से लेकर सांस तक की बीमारी में लौंग बहुत कारगर है। हमारे-आपके सबके किचन में हमेशा मौजूद रहने वाली लौंग का उपयोग भारतीय पकवानों में बहुतायत में किया जाता है। साथ ही इसे औषधि के रूप मे भी उपयोग में लिया जाता है। एंटीसेप्टिक होने के कारण घरेलू उपचार में इसका स्थान अहम है। अच्छे लौंग की पहचान है उसकी खुशबू एवं तैलीयपन। लौंग ख़रीदते समय उसे दातों में दबाकर देखना चाहिए इससे इसकी गुणवत्ता पता चल जाती है। जो लौंग सुगंध में तेज, स्वाद में तीखी हो और दबाने में तेल का आभास हो, उसी को अच्छा मानना चाहिए। व्यापारी लौंग में तेल निकाला हुआ लौंग मिला देते है। अगर लौंग में झुर्रिया पड़ी हों तो समझे कि यह तेल निकाली हुई लौंग है।

लौंग के तत्व

लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ (वसा) और रेशे होते हैं। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन सी और ए जैसे तत्व भी इसमें प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा कई तरह के औषधीय तत्व होते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं।

लौंग मसाला ही नहीं, एक औषधि भी

लौंग का प्रयोग कई प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों के बनाने में भी किया जाता है। चीन के साथ ही साथ पश्चिम के अनेक देशों में हर्बल दवाइयां बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। भारतीय औषधीय प्रणाली में लौंग का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है। अनेक रोगों के निदान के लिए आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग साबुत, पीसकर, चूर्ण, काढ़ा तथा तेल के रूप में किया जाता है। 

आयुर्वेदिक मतानुसार लौंग तीखा, लघु, आंखों के लिए लाभकारी, शीतल, पाचनशक्तिवर्द्धक, पाचक और रुचिकारक होता है। यह प्यास, हिचकी, खांसी, रक्तविकार, टीबी आदि रोगों को दूर करती है। लौंग का उपयोग मुंह से लार का अधिक आना, दर्द और विभिन्न रोगों में किया जाता है। यह दांतों के दर्द में भी लाभकारी है। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा को बढ़ावा देती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय मसालों में लौंग सबसे अच्छा एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है। भोजन में प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट का इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। यह कृत्रिम एंटी ऑक्सीडेंट से ज्यादा बेहतर है। एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है।

जानें इसका प्रयोग कब करते हैं

  • एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में भी काफ़ी उपयोगी होता है। इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। लेकिन संवेदनशील त्वचा पर इसे नहीं लगाना चाहिए।
  • लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है। लौंग के तेल को त्वचा पर लगाने से सर्दी, फ्लू और पैरों में होने वाल फंगल इन्फेक्शन और त्वचा के कीड़े भी नष्ट होते हैं।
  • आंखों के पास या चेहरे पर निकली छोटी-छोटी फुंसियों पर लौंग घिस कर लगाने से फुंसियां और सूजन भी ठीक हो जाती हैं।
  • आंत्र ज्वर में दो किलो पानी में पाँच लौंग आधा रहने तक उबालकर छानकर इस पानी को दिन में कई बार पिलाएं।
  • एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फंकी लें। दो तीन बार लेने से ही सामान्य बुखार उतर जाएगा। चार लौंग पाउडर पानी में घोल कर पिलाने में तेज बुखार भी कम हो जाता है।
  • चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने में तेज ज्वर कम हो जाता है।
  • लौंग के तेल को तिल के तेल (सेसमी आयल) के साथ मिलाकर डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है।
  • लौंग मानसिक दबाव और थकान को कम करने का काम करता है। यह अनिद्रा के मरीजों और मानसिक बीमारियों जैसे कम होती याददाश्त, अवसाद और तनाव में उपयोगी होता है।
  • लौंग का तेल ख़ून को साफ़ करके ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। 
  • चार लौंग कूट कर एक कप पानी में डाल कर उबालें। आधा पानी रहने पर छान कर स्वाद के अनुसार मीठा मिला कर पी कर करवट लेकर सो जाएं। दिन भर में ऐसी चार मात्रा लें। उल्टियां बंद हो जाएंगी।
  • खसरा में दो लौंग को घिसकर शहद के साथ लेने से खसरा ठीक हो जाता है।

  • खाना खाने के बाद एक-एक लौंग सुबह, शाम खाने से या शर्बत में लेने से अम्ल-पित्त से होने वाले सभी रोगों में लाभ होता है। 15 ग्राम हरे आंवलों का रस, पांच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएं। ऐसी तीन मात्रा सुबह, दोपहर, रात को सोते समय पिलाएं। कुछ ही दिनों में आशातीत लाभ होगा। त्वचा के किसी भी प्रकार के रोग में इसे चंदन बूरादा के साथ मिलाकर लेप लगाने से फ़ायदा मिलता है। लौंग के तेल का इस्तेमाल मुंहासे के उपचार में भी किया जाता है।

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मुंह और गले की बीमारी

गले में दर्द हो तो कुछ लौंग की कलियों को पानी में उबालकर गरारा करने से गले की खराबी और पायरिया में लाभ मिलता है। गले की खराश में लौंग चबाना असरकारक होता है। दांत दर्द होने पर लौंग की एक कली दांत के नीचे रखने से दर्द से तुरंत आराम मिलता है। इसके एंटीसेप्टिक गुण दांतों के संक्रमण को कम करता है। लौंग एक ऐसा मसाला है जो दंत क्षय को रोकता है और मुंह की दुर्गंध को दूर भगाता है। दांत में कीड़ा है तो लौंग को कीड़े लगे दांतों पर रखना चाहिए या इसके तेल की फुरेरी लगानी चाहिए, इससे दांत दर्द भी मिट जाता है। कटी जीभ पर लौंग को पीसकर रखने से ठीक हो जाती है।

दमा में भी है कारगर

लौंग से दमे का बहुत प्रभावी इलाज होता है। दमा के रोगी 4-6 लौंग की कलियों को पीसकर 30 मिली / एक कप पानी में उबाल कर इसका काढ़ा बना ले और शहद के साथ दिन में तीन बार पीएं। इससे जमी हुई कफ निकल जाएगी और दमा से राहत मिलेगी। लहसुन की एक कली को पीस शहद के साथ मिलाएं और 4-5 लौंग के तेल की बूंदें डालें, सोने से पहले इसे एक बार लें। आराम मिलेगा।

ज्यादा सेवन हानिकारक

लौंग की प्रवृत्ति बेहद गर्म होती है। अत: अपने शरीर की प्रकृति को समझते हुए ही इसका सेवन करना चाहिए। अधिक मात्रा में इसका सेवन करना नुकसानदेय हो सकता है अत: लौंग ज़रूरत से अधिक नहीं खाना चाहिए। ज़्यादा लौंग खाने से गुर्दे और आंतों को नुकसान पहुंच सकता है। 

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