अक्सर आपने देखा होगा कि बचपन में बच्चे ठीक प्रकार से नहीं बोल पाते। लेकिन अगर बड़े होने पर इस प्रकार की समस्या नजर आए तो समझ जाइए कि यह ये स्पीच डिसऑर्डर के लक्षण हैं। वहीं कुछ एक्सपर्ट्स इससे न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर भी कहते हैं, जिसके कारण एग्जीक्यूशन नेटवर्क और स्पीच मोटर डेवलपमेंट नाकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं और बच्चे हकलाना (Stammering) शुरू कर देते हैं। आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि बच्चों में हकलाने का क्या कारण (Stammering Causes) हैं? साथ ही लक्षण (Stammering Symptoms) और उपचार भी जानेंगे। पढ़ते हैं आगे...
बच्चों में हकलाने के लक्षण (Stammering Symptoms)
बता दें कि आमतौर पर यह समस्या 2 साल से 5 साल की उम्र के बच्चों में देखी जाती है। लेकिन मां बाप को लगता है कि बच्चा अभी शुरुआती दौर में है इसलिए वे बोलना सीख रहा है लेकिन यह स्पीच डिसॉर्डर के शुरुआती लक्षण भी हो सकते हैं।
1 - स्पष्ट रूप से न बोल पाना।
2 - आधे शब्दों को खा जाना।
3 - अपनी बातों को दूसरे के सामने न रख पाना।
4 - मानसिक रूप से प्रभावित होना।
5 - जल्दी घबराना जाना।
6 - किसी भी गतिविधि में हिस्सा ना लेना।
7 - धीरे धीरे बोलना या रुकावट महसूस करना।
8 - बोलते वक्त मुंह का खुला रह जाना या शब्दों का न निकलना।
9 - र, क, ज आदि से शुरू होने वाले शब्दों को बार-बार दोहराना।
10 - किसी भी शब्द को बोलने में झिझकना।
11 - बात करते वक्त डरना
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बच्चों में हकलाने के कारण (Stammering Causes)
बता दें कि बच्चों में हकलाने की समस्या निम्न कारणों से हो सकती है-
1 - यह समस्या साइकोजेनिक भावनात्मक के कारण हो सकती है। पर यह समस्या अब तक कुछ प्रतिशत बच्चों में ही देखी गई है।
2 - जब किसी बच्चे के दिमाग में चोट लगती है या फिर स्ट्रोक की समस्या पैदा हो जाती है तब भी वे हकलाना शुरू कर देता है।
3 - जब परिवार में माता-पिता या कोई करीबी हकलाने की समस्या का शिकार हो जाता है तब भी बच्चे में परिवार के जीन के कारण समस्या हो जाती है।
4 - कुछ बच्चों की आदत में हकलाना बचपन से होता है, इस स्थिति को डेवलपमेंटल कहते हैं जो समय के साथ बढ़ता जाता है।
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बच्चों में हकलाने को कैसे ठीक करें (Stammering treatment)
1 - घर पर स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट की मदद से अभ्यास करते रहें। माता-पिता बच्चे में अखबार पढ़ने की आदल डालें। या उनसे इमला बुलवाएं।
2 - मनोचिकित्सक बच्चों की बात करने के तरीके को पहचानते हैं और उसके बाद उनमें आत्मविश्वास पैदा करते हैं और चिंता और डिप्रेशन को दूर करते हैं।
3 - स्पीच थेरेपी की मदद से भी बच्चे की समस्या ठीक की जाती है। बच्चा जिस भी शब्द पर अटकता है उस शब्द को बार-बार दोहराया जाता है, जिससे उच्चारण में मदद मिलती है।
4 - कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की मदद से भी बच्चे की समस्या को दूर किया जा सकता है। रिकॉर्डिंग के माध्यम से बच्चों की आवाज रिकॉर्ड की जाती है फिर उसे सुनाया जाता है।
5 - बच्चों को बताया जाता है कि वे बोलते वक्त कब रुकें और कब नहीं। बच्चों को जोर-जोर से शब्दों का उच्चारण करवाया जाता है। उनकी दिनचर्या में व्यायाम योग आदि को जोड़ा जाता है।
नोट - ऊपर बताए गए बिंदुओं से पता चलता है कि बच्चों में हकलाने की समस्या आम होती है। लेकिन अगर उनके बढ़ने के साथ यह समस्या दूर ना हो तो तुरंत एक्शन लेने की जरूरत है। ऐसे में आप मनोवैज्ञानिक के पास भी जा सकते हैं। आजकल मार्केट में कई ऐसी चीजें मौजूद है जो बच्चे को स्पीच थेरेपी में मदद कर सकती है। साथ ही हकलाने की समस्या को दूर कर सकती हैं।
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