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World Breastfeeding Week: बतौर वर्किंग मदर ब्रेस्टफीड कराना मेरे लिए बन गया था चैलेंज, इन तरीकों से किया मैनेज

वर्किंग मदर होने की वजह से मेरे लिए ब्रेस्टफीड कराना काफी चैलेंजिंग हो गया था। लेकिन फैमिली सपोर्ट की वजह से मेरी समस्या का समाधान हो सका।
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World Breastfeeding Week: बतौर वर्किंग मदर ब्रेस्टफीड कराना मेरे लिए बन गया था चैलेंज, इन तरीकों से किया मैनेज


Breastfeeding Tips for Working Mothers in Hindi: वर्किंग मदर्स के लिए हमेशा से अपने बच्चे को समय से ब्रेस्ट फीड कराना एक चैलेंजिंग टास्क बन जाता है। जाहिर है, सुबह जल्दी उठकर ऑफिस के लिए निकलना और शाम को देर से घर पहुंचना, इसके  लिए जिम्मेदार है। इस दौरान, बच्चा या तो क्रेच में रहता है या फिर घर के अन्य सदस्यों के साथ। ऐसी स्थिति में मां के लिए अपने तीन साल से कम उम्र के छोटे बच्चे को समय-समय पर ब्रेस्टफीड कराना संभव नहीं हो पाता। ऐसे में ऑफिस में मन लगाकर काम करना भी मुश्किल हो जाता  है। इतना ही नहीं, बच्चे को ब्रेस्टफीड नहीं करवा पाने के कारण महिला अपराधबोध में आ जाती है और बच्चे के विकास को लेकर चिंतित रहने लगती है। लगभग  हर वर्किंग मॉम अपनी लाइफ में कभी-न-कभी इस तरह की सिचुएशन फेस करती है। मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है। डिलीवरी के बाद करीब एक साल तो सब सही था, क्योंकि उस समय तक मैंने जॉब रिजॉइन नहीं की थी। लेकिन, जैसे ही मैंने नौकरी फिर से शुरू की, तो मानों मेरे सामने ढेर सारे  चैलेंजेस आ खड़े हुए। मैं आज आपको इस लेख में यह बताने वाली हूं कि वो चैलेंजेस क्या थे और मैंने किस तरह उन्हें  मैनेज किया और कब-कब अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड करवाया, ताकि मेरे जैसे ही वर्किंग मॉम को बच्चे को ब्रेस्टफीड न करवाने का गिल्ट न हो और वे अपनी फिजिकल और मेंटल हेल्थ का पूरा ध्यान रख सकें।

मेरे सामने आई कई चुनौतियां

breastfeeding challenges

जब मैंने ऑफिस रिजॉइन किया, तो सबसे पहले मेरे मन में यही सवाल आया कि आखिर मैं अपने बच्चे को समय पर ब्रेस्टफीड कैसे करा पाऊंगी? क्योंकि तब तक मेरे बेटा अगस्त्या ऊपरी चीजें, जैसे दाल या चावल, बहुत ज्यादा नहीं खाता था। पेट भरने के लिए वह मेरे ब्रेस्टफीड पर ही निर्भर रहता था। ऐसे में, जब मैंने ऑफिस रिजॉइन किया, तो मुझे यह डर सताने लगा कि अगर उसने मेरे पीछे से सही तरह से खाना न खाया या भूखा रह गया, तो क्या होगा? इसके अलावा, चूंकि मेरे मिल्क प्रोडक्शन काफी ज्यादा होता था, ऐसे में यह भी समस्या आ खड़ी हुई थी कि मैं 10-11 घंटे तक बिना दूध पिलाए, कैसे रह सकूंगी? यही नहीं, ब्रेस्टफीड नहीं करवा पाने के कारण, मुझे ब्रेस्ट में काफी दर्द होने लगता था और कई बार मिल्क प्रोडक्शन इतना ज्यादा हो जाता था कि अपने आप रिसने लगता था।

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मेंटल हेल्थ भी हुआ प्रभावित

मुझे फिजिकल प्रॉब्लम ही फेस नहीं करनी पड़ती थी, बल्कि मेरी मेंटल हेल्थ का भी इस पर काफी असर पड़ा था। दरअसल, दूध नहीं पिला पाने के कारण अक्सर काफी ज्यादा दर्द रहता था। दर्द के कारण, ऑफिस का काम भी कई बार प्रभावित हो जाता था, क्योंकि दर्द की वजह से मेरा ध्यान भटक जाता था और काम पर फोकस्ड नहीं रह पाती थी। ऊपर से बेटे के बारे में सोच-सोचकर परेशानी अलग होती थी। वैसे भी सुबह के समय जब मैं ऑफिस के लिए घर से निकलती थी, तब वह अक्सर रोता था। बतौर मां मेरे लिए यह सब असहनीय हो गया था।

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कैसे किया मैनेज

how to manage breastfeeding challenge

शुरुआती कुछ दिनों भले बहुत चुनौतीपूर्ण थे। लेकिन, जैसे-जैसे वक्त बीता, मैंने जाना कि इस समस्या को सुलझाया जा सकता है। मुझे अपने बेटे को कब-कब ब्रेस्टफीड करवाना है, सबसे पहले मैंने इस पर ध्यान दिया। इसके लिए, मुझे अपनी  फैमिली का पूरा सपोर्ट मिला। मैं ऑफिस जाने से पहले अपने बेटे को ब्रेस्टफीड कराती थी और इसी तरह ऑफिस से लौटने के बाद भी उसे सबसे पहले अपना दूध पिलाती थी। हालांकि, शाम के समय दूध पिलाने से पहले मैं अपने ब्रेस्ट और निप्पल की अच्छी तरह क्लीनिंग जरूर करती थी। मेरे लिए उसकी सेफ्टी का ध्यान रखना भी आवश्यक है। सारा दिन घर से बाहर रहना और शरीर में धूल-मिट्टी चिपकना आम बात है। अगर सफाई का ध्यान न रखा जाए, तो कपड़े में चिपके डस्ट अंदर तक जा सकते हैं, जिससे ब्रेस्ट और निप्पल में जर्म्स या बैक्टीरिया चिपक सकते हैं। वहीं, अगर आपने बिना धोए बच्चे को दूध पिला दिया, तो उसकी तबियत बिगड़ सकती है। खैर, इसके बाद रात को सोते समय भी बच्चे को दूध की जरूरत होती है, तब भी उसे दूध पिला दिया करती थी। लेकिन, वर्किंग ऑवर्स भी मेरे लिए कम चैलेंजिंग नहीं थे। इस समय मेरा दूध रिसता रहता था। इस तरह की स्थिति से बचने के लिए मैं अक्सर ऑफिस के वॉशरूम में जाकर ब्रेस्ट प्रेस करके अपना दूध निकाल दिया करती थी और वॉशिंग बेसिन में बहा दिया करती थी, ताकि मेरे कपड़े खराब न हों।

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परिवार का मिला पूरा साथ

ऑफिस जाने के बाद बेटे को मिल रहे अधूरे पोषण को लेकर चिंता बनी रहती थी। ऊपर से रोजाना मेरा काफी दूध वेस्ट हो जाता था, यह बात भी मुझे अखरती थी। लेकिन, मेरे पीछे से मेरी सास नीता टैगोर ने मेरे बेटे का पूरा ध्यान रखा। जब मैं सुबह 9 बजे निकलती थी, तो उसे दूध पिला दिया करती थी। इसके हर दो-दो घंटे बाद वह बेटे को कुछ पौष्टिक बनाकर देती थीं, ताकि उसके शारीरिक विकास में कमी न आए। इसी तरह, जब मैं ऑफिस से घर लौटती थी, वह इस बात का ख्याल रखती थीं कि मैं दूध जरूर पिऊं और मेरे आहार में पोषक तत्वों की कमी न हो। यही नहीं, उन्होंने मुझे वो सभी जरूरी चीजें खिलाईं, जिससे मेरा ब्रेस्ट मिल्क कभी कम न हो।

नई मांओं के लिए सलाह

"आज के समय में तकनीक ने काफी तरक्की कर ली है। ऐसे में अगर मांएं चाहें, तो वे अपने ब्रेस्टमिल्क को एक ऐसे कंटेनर में निकालकर सुरक्षित रख सकती हैं, जिसे स्पेशली ब्रेस्टमिल्क स्टोर करने के लिए डिजाइन किया जाता है। विशेषज्ञों की मानें, तो स्टोर ब्रेस्टमिल्क को चार घंटे के अंदर बच्चे को पिला देना चाहिए। इसका मतलब, यह है कि अगर आप सुबह ब्रेस्टमिल्क को कंटेनर में स्टोर करें, तो बच्चे को करीब दो-तीन घंटे के अंदर उस दूध को पिलाया जा सकता है। इसके अलावा, जिस तरह मैंने अपनी लाइफस्टाइल को मैनेज किया और मुझे फॅमिली ने सपोर्ट किया, वैसा ही आप भी कर सकती हैं। ब्रेस्टफीडिंग आसान हो जाएगी। साथ ही, बच्चे के साथ आपका बॉन्ड भी मजबूत होगा।" वृंदावन और नई दिल्ली स्थित मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की चिकित्सा निदेशक, स्त्री रोग और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शोभा गुप्ता भी इन बातों पर सहमति जताती हैं।

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